(नरेश कौशिक)
नयी दिल्ली, 12 मार्च(भाषा) साहित्य अकादमी द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित ‘साहित्योत्सव 2025’ में साहित्य प्रेमियों, विशेषकर युवाओं की नगण्य उपस्थिति पर वरिष्ठ लेखकों और विद्वानों ने गहरी निराशा जाहिर की है। उनका कहना था कि अकादमी को ज्यादा से ज्यादा लोगों, विशेष रूप से युवाओं को इस विशाल आयोजन से जोड़ने के लिए व्यापक पैमाने पर प्रसार प्रसार करने की जरूरत है।
केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश के कुलपति प्रोफेसर टी.वी.कट्टामणि ने साहित्योत्सव में दर्शकों और साहित्य प्रेमियों की नगण्य उपस्थिति की बात स्वीकार की । उनका कहना था कि दिल्ली विश्वविद्यालय के 70 से अधिक कॉलेज हैं और इनके छात्रों, अध्यापकों और शोधार्थियों को साहित्योत्सव का फायदा उठाना चाहिए था लेकिन उनकी कोई मौजूदगी नहीं थी।
प्रो. कट्टामणि ने कहा कि अकादमी साहित्योत्सव पर भारी धनराशि खर्च करती है लेकिन साहित्य प्रेमी उस अनुपात में इससे नहीं जुड़ पाए हैं। इसके लिए अकादमी को चाहिए कि राजधानी के विश्चविद्यालयों में इसका प्रचार उचित तरीके से किया जाए ताकि साहित्यिक अभिरूचि के लोग इससे अधिक से अधिक लाभान्वित हो सकें।
केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के तहत कार्यरत साहित्य अकादमी द्वारा सात से 12 मार्च तक ‘साहित्योत्सव2025’ का आयोजन यहां रवीन्द्र भवन में किया था। इसमें 100 से अधिक सत्रों में देश के विभिन्न राज्यों से 700 से ज्यादा प्रसिद्ध लेखकों और विद्वानों ने भाग लिया।
कई लेखकों का कहना था कि कुछ सत्रों में मंच पर मौजूद वक्ताओं की संख्या सभागार में उपस्थित दर्शकों/श्रोताओं या साहित्य प्रेमियों से ज्यादा थी।
बेंगलुरू निवासी मराठी, हिंदी और कन्नड़ की प्रोफेसर तथा अनुवादक कीर्ति रामचंद्र ने पाठकों/ श्रोताओं की नगण्य उपस्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि विश्वविद्यालयों के साहित्य विभागों के माध्यम से युवाओं को लक्षित कर इसका प्रचार प्रसार किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनों के मुख्य लाभार्थी छात्र और युवा पीढ़ी ही होती है और वही इससे नहीं जुड़ेंगे तो आयोजन का मकसद खत्म हो जाता है।
‘सांस्कृतिक रूप से भिन्न भाषाओं में साहित्यिक कृतियों के अनुवाद में चुनौतियां’ सत्र में मंच पर मौजूद सात वक्ताओं के मुकाबले में सभागार में दस दर्शक भी नहीं थे।
वहां मौजूद एक प्रकाशक ने कहा कि दस दर्शकों में भी ज्यादातर वे लोग थे जो दिल्ली से बाहर से साहित्योत्सव में भाग लेने आए थे। स्थानीय दर्शकों की उपस्थिति नगण्य थी।
उत्तर भारत के एक प्रमुख हिंदी प्रदेश की साहित्य अकादमी से जुड़े एक शीर्ष अधिकारी ने दर्शकों या साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति नगण्य होने के सवाल पर भाषा से बातचीत में कहा,‘‘ हालत बहुत दयनीय है। दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया विश्वविद्यालय समेत तमाम बड़े बड़े तकनीकी संस्थान हैं जहां अकादमी को साहित्योत्सव का उचित तरीके से प्रचार प्रसार करना चाहिए था।
उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘‘ सामान्य जन को साहित्य से जोड़ने के लिए प्रयास करना पड़ता है। अकादमी को कई बार सुझाव दिया गया है कि राजधानी से बाहर निकल कर कार्यक्रम करो लेकिन ये जाना ही नहीं चाहते।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ बाल साहित्य के सत्र में कैमरामैन सहित सभागार में केवल दस लोग थे। हम केवल कोरे भाषण देने थोड़ा आते हैं, अच्छे दर्शक हों तो वक्ता को भी बोलने में अपनी सार्थकता महसूस होती है। ये तो बिल्कुल ऐसा था कि ‘जंगल में मोर नाचा, किसने देखा।’’
ग्यारह मार्च को ‘भारत का लोक साहित्य’ सत्र में दर्शकों की संख्या करीब पचास थी। इस पर दक्षिण भारत से आए एक विद्वान ने चुटकी लेते हुए कहा कि ‘लंच के कारण इतने ज्यादा लोग हैं’ जबकि एक अन्य विद्वान ने पचास लोगों की मौजूदगी को सत्र की सफलता करार दिया।
यहां उल्लेखनीय है कि राजधानी दिल्ली में ही निजी संस्थानों के बैनर तले आयोजित होने वाले साहित्योत्सवों में दर्शकों और साहित्य प्रेमियों की भारी भीड़ उमड़ती है और महंगा टिकट लेकर भी लोग इन साहित्य उत्सवों में जाते हैं।
पिछले काफी सालों से साहित्योत्सव में लगातार भाग ले रहे एक प्रकाशक ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि साहित्य अकादमी उचित प्रचार प्रसार नहीं करेगी तो लोग कैसे आएंगे।
एक सवाल पर उन्होंने कहा,‘‘ ये लोकप्रिय साहित्योत्सव नहीं है जहां सिलेब्रिटी या नामचीन लेखकों को बुलाया जाता है। इसे लोकप्रिय बनाने के लिए अकादमी को सोशल मीडिया मंचों का अधिक से अधिक इस्तेमाल करना चाहिए।’’
एक अन्य युवा साहित्यकार ने कहा कि साहित्य अकादमी का मूल काम श्रेष्ठ साहित्यकारों की रचनाओं को पुरस्कृत करना और उन्हें सभी भारतीय भाषाओं में पहुंचाना है। अपनी यह जिम्मेदारी वह बखूबी निभा रही है लेकिन दर्शकों के नजरिए से देखें तो, विशेष रूप से नयी पीढ़ी इतने बड़े समारोह से नहीं जुड़ नहीं पायी है।
साहित्योत्सव में आने वाले लोगों के संबंध में एक डेटाबेस होने पर जोर देते हुए एक अन्य साहित्यकार ने कहा कि डेटा बेस के माध्यम से अकादमी को लोगों को आमंत्रित करना चाहिए।
‘अस्मिता : भारतीय उपन्यासों /कहानियों में नारीवाद’ विषय पर आयोजित सत्र में मौजूद एक श्रोता ने कहा कि यहां सत्रों में चर्चा का स्तर अकादमिक ज्यादा है, शायद ये भी एक कारण है कि दर्शक अपेक्षित रूप में इससे जुड़ नहीं पाए।
छह दिवसीय साहित्योत्सव में शिरकत करने वाले साहित्य प्रेमियों, दर्शकों, श्रोताओं का आंकड़ा प्राप्त करने के लिए साहित्य अकादमी से कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
इस बार साहित्योत्सव में ‘21वीं सदी में भारतीय एलजीबीटीक्यू लेखकों के साहित्यिक कृतित्व पर परिचर्चा, ‘वैश्विक साहित्यिक परिदृश्य में भारतीय साहित्य’, आदिवासी साहित्यिक रचनाओं में सृजन मिथक पर परिचर्चा’, ‘बाल पुस्तकों के लेखकों के समक्ष चुनौतियां’ समेत करीब सौ सत्रों का आयोजन किया गया।
साहित्य अकादमी से अपनी काव्य रचना ‘टोकरी में दिगंत’ के लिए पुरस्कृत वरिष्ठ एवं सम्मानित कवयित्री अनामिका ने कहा कि भारतीय साहित्य के इतने आयाम हैं कि श्रोता विभिन्न सत्रों में बंट जाते हैं और ‘‘हमें इसकी आलोचना के बजाय इसके सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए।’’
भाषा नरेश नरेश माधव
माधव
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