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Sunday, 22 December, 2024
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चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर एसए बोबडे बोले, ‘खुद में सुधार का एक उपाय’ भर था

एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एम बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ ने मीडिया के सामने आकर सरकार आलोचना की थी.

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जोधपुर : प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने शनिवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों द्वारा पिछले साल किया गया संवाददाता सम्मेलन महज .

गौरतलब है कि एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एम बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ ने 12 जनवरी 2018 को संवाददाता सम्मेलन किया था. इसमें उन्होंने कहा था कि शीर्ष न्यायालय में सबकुछ ‘ठीकठाक नहीं’ है और कई ऐसी चीज़ें हुई हैं जो अपेक्षित से कहीं कम हैं.

बाद में, उसी साल न्यायमूर्ति रंजन गोगोई तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) दीपक मिश्रा के सेवानिवृत्त होने पर इस शीर्ष पद पर नियुक्त हुए थे.

यहां राजस्थान हाईकोर्ट के नये भवन के उद्घाटन के दौरान न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा, ‘मेरा मानना है कि इस संस्था (न्यायपालिका) को खुद में सुधार करना चाहिए और नि:संदेह यह उस समय किया गया, जब संवाददाता सम्मेलन किया गया था जिसकी काफी आलोचना हुई थी. यह खुद में सुधार करने के एक उपाय से ज्यादा कुछ नहीं था और मैं इसे उचित ठहराना नहीं चाहता.’

सीजेआई ने कहा, ‘सभी न्यायाधीश प्रतिष्ठित थे और विशेष रूप से न्यायमूर्ति (रंजन) गोगोई ने काफी क्षमता का प्रदर्शन किया तथा न्यायपालिका का नेतृत्व किया.’

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एक संस्था के तौर पर न्यायपालिका को अवश्य ही न्याय तक सभी लोगों की पहुंच बनाने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए, जिसके लिए मौजूदा ढांचे को मजबूत किया जाए तथा विवादों का वहनीय, त्वरित एवं संतोषजनक समाधान के नये तरीके तलाशने चाहिए.

सीजेआई ने कहा कि इसके साथ-साथ ‘हमें बदलावों और न्यायपालिका के बारे में पूर्वधारणा से भी जरूर अवगत रहना चाहिए.’

उन्होंने कहा कि देश में हुई हालिया घटनाओं ने एक पुरानी बहस फिर से छेड़ दी है, जहां इसमें कोई संदेह नहीं है कि फौजदारी न्याय प्रणाली को फौजदारी मामलों के निपटारे में लगने वाले समय के प्रति अपनी स्थिति एवं रवैये पर अवश्य ही पुनर्विचार करना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘न्याय कभी जल्दबाजी में फटाफट नहीं होना चाहिए. न्याय को कभी प्रतिशोध का रूप नहीं लेना चाहिए. मेरा मानना है कि न्याय उस वक्त अपनी विशेषता या स्वरूप खो देता है जब यह बदले का रूप धारण कर लेता है. खुद में सुधार लाने के उपायों की न्यायपालिका में जरूरत है लेकिन उन्हें प्रचारित किया जाए या नहीं, यह बहस करने का विषय है.’

सीजेआई ने कहा, ‘हमें न सिर्फ मुकदमे में तेजी लाने के लिए तरीके तलाशने होंगे, बल्कि इन्हें रोकना भी होगा. ऐसे कानून हैं जो मुकदमे से पूर्व की मध्यस्थता मुहैया करते हैं.’

उन्होंने कहा कि मुकदमा-पूर्व अनिवार्य मध्यस्थता पर विचार करने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि आश्चर्य है कि मध्यस्थता में डिग्री या डिप्लोमा का कोई कोर्स उपलब्ध नहीं है.

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