नई दिल्ली: देश भर के ग्रामीण परिवारों को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए मोदी सरकार की एक प्रमुख योजना ‘नल से जल’ को पहले महामारी ने धीमा कर दिया था और अब रूस-यूक्रेन युद्ध इसे समय पर पूरा होने से रोक रहा है. योजना की डेडलाइन साल 2024 है.
इस योजना में मौजूदा वाटर सप्लाई सिस्टम को अपग्रेड करने के अलावा, लाभार्थी परिवारों को कार्यात्मक नल कनेक्शन प्रदान करने के लिए पाइपलाइन बिछाने जैसे जल आपूर्ति बुनियादी ढांचे का निर्माण शामिल है.
केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल और स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस) के वरिष्ठ अधिकारी और नल से जल योजना का संचालन कर रहे वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया भर में व्यापार को बाधित किया है. इसका नतीजा यह रहा कि पाइपों के निर्माण में उपयोग किए जाने वाले दो प्रमुख कच्चे माल -पेट्रोकेमिकल्स और स्टील- की कीमतों में तेजी से इजाफा हुआ.
उन्होंने कहा कि कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोतरी से प्लास्टिक निर्माता भी पीवीसी (पॉलीविनाइल क्लोराइड), एचडीपीई (उच्च घनत्व पॉलीथीन), और जीआई (जस्ती लोहा) पाइप की कीमतें बढ़ाने के लिए मजबूर हो गए.
अधिकारियों ने यह भी कहा कि जहां तीन राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों ने सौ फीसदी कवरेज हासिल कर लिया है, वहीं उत्तर प्रदेश समेत 13 राज्य एक चुनौती बने हुए हैं.
डीडीडब्ल्यूएस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘राज्य हमें बता रहे हैं कि उन्हें या तो पीवीसी, एचडीपीई और जीआई पाइप लाइन सप्लायर से पर्याप्त बोलियां (बिड) नहीं मिल रही हैं या आपूर्तिकर्ता स्टील और पेट्रोकेमिकल्स की बढ़ती लागत के कारण अत्यधिक उच्च कीमतों का हवाला दे रहे हैं. राज्यों को इतनी अधिक दरों पर पाइप खरीदना मुश्किल हो रहा है.’
अधिकारी ने कहा कि इसने नल से जल योजना के कार्यान्वयन को धीमा कर दिया है. उन्होंने बताया, ‘हम मार्च 2020 से कोविड की वजह से योजना में आए व्यवधान से मुश्किल से उबर पाए थे. इस दौरान काम ठप हो गया था. अब यह युद्ध है जो योजना को प्रभावित कर रहा है. यह निश्चित रूप से न केवल इस वित्तीय वर्ष बल्कि 2024 की डेडलाइन पर भी असर डालेगा.’
अधिकारी ने कहा कि जल शक्ति मंत्रालय राज्यों के साथ चर्चा कर रहा है कि योजना के पूरा होने में देरी से कैसे निबटा जाए और कैसे योजना के कार्यान्वयन में तेजी लाई जाए. अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम उम्मीद कर रहे हैं कि इस योजना में अब आगे कोई रुकावट नहीं आएगी.’
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13 राज्य बने चुनौती
अगस्त 2019 में शुरू किए गए नल से जल कार्यक्रम का कुल परिव्यय 3.60 लाख करोड़ रुपये है, जिसमें केंद्र की हिस्सेदारी 2.08 लाख करोड़ रुपये की है. बाकी 1.52 लाख करोड़ रुपये का बोझ राज्यों के कंधों पर है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जब 2019 में यह योजना शुरू की गई थी, तब 19.22 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से केवल 3.23 करोड़ (17 प्रतिशत) के पास ही नल के पानी के कनेक्शन थे. मंत्रालय का लक्ष्य बाकी 16 करोड़ (83 प्रतिशत) परिवारों को साल 2024 तक कवर करना था.
जल शक्ति मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि गोवा, तेलंगाना, हरियाणा, पुडुचेरी, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के सौ फीसदी घरों में अब नल के पानी के कनेक्शन हैं.
उन्होंने कहा कि चुनौती 13 राज्यों के साथ है, जहां 95 प्रतिशत काम लंबित है. इस सूची में सबसे ऊपर उत्तर प्रदेश है, जहां केवल 13.83 प्रतिशत घरों में नल के पानी का कनेक्शन है.
देरी से प्रभावित अन्य राज्यों में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड शामिल हैं.
जल शक्ति मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘अब हम यूपी पर ध्यान दे रहे हैं, जहां योजना में काफी देरी हो रही है. यह सबसे बड़ा राज्य है और कार्यान्वयन में किसी भी देरी का असर इसके समग्र लक्ष्य पर पड़ेगा. कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए राज्य के अधिकारियों के साथ नियमित बैठकें की जाती हैं.’
अधिकारी ने कहा, ‘नल से जल योजना शुरू होने के तुरंत बाद, कोविड के कारण काम ठप हो गया था. फिर चुनाव की घोषणा की गई और आचार संहिता लागू हो गई. उस दौरान कोई काम नहीं हो सका. लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार अब सूखा प्रभावित बुंदेलखंड और अन्य क्षेत्रों पर ध्यान दे रही है.’
यूपी के अलावा, जल शक्ति मंत्रालय राजस्थान, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में भी उन इलाकों को लेकर चिंतित है, जहां पीने के पानी की उपलब्धता एक बुनियादी मुद्दा बना हुआ है.
एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब तक यहां पानी का इंटर-बेसिन ट्रांसफर नहीं होता, तब तक ये तीनों राज्य हर घर में 55 एलपीसीडी (प्रति व्यक्ति प्रतिदिन) पानी उपलब्ध कराने के जल जीवन मिशन के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएंगे’
अधिकारियों ने कहा कि तीन राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ नियमित बैठकें की जा रही हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि पानी की कमी वाले क्षेत्रों में पानी कैसे उपलब्ध कराया जाए.
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