नई दिल्ली: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में 5 नंवबर को एक गैर हिंदू असिस्टेंट प्रोफेसर फिरोज खान की नियुक्ति के विरोध में संकाय के छात्र कई दिन से धरने पर बैठे हैं.
7 नंवबर को शुरू हुए इस धरने के बाद यूनिवर्सिटी ने इस नियुक्ति को लेकर एक स्पष्टीकरण जारी करते हुए साफ कहा था, ‘काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना इस उद्देश्य से की गई थी कि यह विश्वविद्यालय जाति, धर्म, लिंग और संप्रदाय आदि के भेदभाव से ऊपर उठकर राष्ट्रनिर्माण हेतु सभी को अध्ययन व अध्यापन के समान अवसर देगा.’ लेकिन इसके बावजूद छात्र अपनी मांग पर अड़े हुए हैं. गौरतलब है कि प्राचीन शास्त्रों, ज्योतिष और वेदों व संस्कृत साहित्य को पढ़ाने वाले इस संकाय की स्थापना 1918 में हुई थी.
‘गैर-हिंदू प्रोफेसर की नियुक्ति मदन मोहन मालवीय की परंपरा के खिलाफ’
कुलपति ने विषय विशेषज्ञों, विभागाध्यक्ष, विजिटर नॉमिनी, संकाय प्रमुख और ओबीसी पर्यवेक्षक की एक बैठक बुलाई थी. इस मीटिंग के बाद साफतौर पर कहा गया था कि ये नियुक्ति चयन समिति ने पारदर्शी प्रक्रिया के तहत सर्वसम्मति से की है.
इस धरने को लीड कर रहे संस्कृत संकाय के छात्र चक्रपाणि ओझा ने दिप्रिंट से बात करते हुए अपना पक्ष रखा, ‘हमारे दो आरोप हैं. सबसे पहला तो ये कि ये नियुक्ति षडयंत्र से की गई है. इंटरव्यू और पूरा प्रोसेस फिरोज खान के हिसाब से तय किया गया है. दूसरा आरोप ये है कि जब बीएचयू के शिलालेख पर लिखा है कि संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में गैर हिंदू ना ही अध्ययन कर सकता है और ना ही अध्यापन तो एक मुस्लिम की नियुक्ति क्यों की गई.’ बता दें कि चक्रपाणि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के मेंबर हैं.
धरने पर बैठे एक दूसरे पीएचडी छात्र शुभम तिवारी ने दिप्रिंट से बात करते हुए बताया, ‘इस संकाय में शिक्षक नहीं गुरू होते हैं. यहां सब चोटी रखते हैं, बड़ों के पैर छूते हैं और हवन करते हैं. जिस मुस्लिम प्रोफेसर को नियुक्त किया गया है, उनके फेसबुक अकाउंट पर धर्म के कॉलम में मुसलमान लिखा हुआ है. अगर उन्हें डिपार्टमेंट में जगह दी जाती है तो छात्रों के साथ भेदभाव होगा.’
‘कहीं नहीं लिखा है कि किसी खास धर्म के प्रोफेसर की नियुक्ति नही हो सकती’
वीसी राकेश भटनागर ने इस मसले पर दिप्रिंट को बताया, ‘ये देश कानून के हिसाब से चलता है. कानून की नजर में हम सब समान हैं. हम किसी के धर्म या जाति को देखकर किसी की उम्मीदवारी तय नहीं कर सकते. संबंधित विभाग ने एक असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला था. उस विज्ञापन में ये कहीं नहीं लिखा था कि किसी खास धर्म का ही व्यक्ति मान्य होगा. जो लोग चयनित हुए, उनमें से एक उम्मीदवार को सर्वसम्मति से नियुक्त किया गया है.’
धरने पर बैठे छात्रों की मांग को लेकर भटनागर आगे जोड़ते हैं, ‘वो लोग मुझसे मिले थे और ज्ञापन सौंपा था. उसके बाद मैंने रजिस्ट्रार से सारे नियम कानून चेक करवाए हैं. किसी भी नियम को ताक पर रखकर ये नियुक्ति नहीं हुई है. हां उन्हें धरना करने का पूरा अधिकार है तो वो करें. ‘
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चक्रपाणि के शिलालेख वाली बात पर वो कहते हैं, ‘हर विश्वविद्यालय के अपने ऑर्डिनेंस और ऐक्ट होते हैं. मैंने चेक करवा लिया है. कहीं भी ये नहीं लिखा है कि किसी खास धर्म के प्रोफेसर की नियुक्ति किसी खास विभाग में नहीं हो सकती.’
29 अभ्यर्थियों में से सबसे योग्य को चुना गया
संस्कृत संकाय के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर उमाकांत चतुर्वेदी दिप्रिंट से हुई बातचीत में कहते हैं, ‘इस पोस्ट के लिए 29 लोगों ने फॉर्म भरे थे, जिसमें से 10 लोगों का इंटरव्यू के लिए सेलेक्शन हुआ था. इंटरव्यू के दिन 9 लोग ही हाजिर हुए. उन 9 लोगों में चयनित हुआ अभ्यर्थी सबसे ज्यादा योग्य था. बाकी अभ्यर्थियों को 10 में से 0 और 2 नंबर मिले तो चयनित अभ्यर्थी को 10 नंबर मिले.’
गुरुवार को वीसी ने इस मामले को लेकर एक और मीटिंग बुलाई है. हालांकि संस्कृत संकाय के विभागाध्यक्ष का ये भी कहना है कि अगर विश्वविद्यालय के नियमों कोे फेरबदल कर मदन मोहन मालवीय की भावनाओं का सम्मान करना है, तो उन्हें कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन वो जोर देकर कहते हैं, ‘जिस अभ्यर्थी का चयन किया गया है वो सबसे योग्य था.’
‘अपमानित और असुरक्षित महसूस हुआ’
दिप्रिंट से बातचीत में प्रोफेसर फिरोज खान(29) कहते हैं, ‘जब मैंने राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में दाखिला लिया था, तब मैं अपने बैच में इकलौता मुसलमान था. मुझे कभी मुसलमान टाइप का फील नहीं हुआ. लेकिन बीचएयू में नियुक्ति होने पर मुझे महसूस कराया जा रहा है कि मुसलमान होने के नाते मैं एक खास विषय नहीं पढ़ा सकता. मेरे माता-पिता को जब ये खबर पता चली तो रातभर रोते रहे. मुझे अपमानित महसूस हुआ है.’
जयपुर से 32 किलोमीटर दूर बगरू गांव में रहने वाले फिरोज के पिता गौशालाओं के लिए भजन गाते हैं. फिरोज के पिता ने भी संस्कृत की पढ़ाई की है और उनके छोटे भाई ने भी बाहरवीं तक संस्कृत ही पढ़ी है. राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान जयपुर में वो तीन साल गेस्ट फैकल्टी के तौर भी पढ़ा चुके हैं. यहीं से उन्होंने पिछले साल संस्कृत में पीएचड़ी कंप्लीट की है.
वो आगे कहते हैं, ‘बीएचयू के विद्या धर्म संकाय में मैं संस्कृत साहित्य पढ़ाउंगा, जिसमें नाटक और उपन्यास शामिल हैं. अगर उन्हें गैर हिंदू शिक्षक नहीं चाहिए था तो पद के लिए दिए गए विज्ञापन में साफ-साफ बताना था. मैं इस पद के लिए आवदेन ही नहीं करता. अगर बात धांधलेबाजी की है तो मैं एक खुले मंच पर जनता के सामने इंटरव्यू देने के लिए तैयार हूं.’
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आखिर में वो सातवीं कक्षा में पढ़े एक श्लोक को याद करते हुए अपनी बात खत्म करते हैं,’नहि वैरेण वैराणि शाम्यन्तीह कदाचन, अवैरेण च शाम्यन्ति एष धर्म सनातन: अर्थात द्वेष से द्वेष की शांति कभी नहीं हो सकती, बैर छोड़ने से ही बैर खत्म होगा और यही सनातन धर्म है.’
बिल्कुल सही, गैर हिन्दु को हमारे धर्म के बारे मे न तो जानकारी है न ही उसे पढ़ाने देना चाहिए।
Actually, this appointment is due to political stand, if there are no Hindu teacher in jamiya islamia, aligarh why Muslim in bhu
ये बिल्कुल बेहूदा बात है कि कोई मुस्लिम संस्कृत भाषा विभाग में अध्यापन नहीं कर सकता।मेरे लिए ये गर्व कि बात है कि एक मुस्लिम मेरे धर्म संस्कृति,दर्शन सेप्रभवित होकर इसमें शामिल होता है।रहीम,रसखान को भी हमने सम्मान दिया था
No
We should appreciate him for learning Sanskrit language despite being a Muslim.
Those who are doing this in the name of Hindu religion are doing big disservice ti Hindus
Yogayata ke aage jati aur dharm ka koi aadhar nahi hai.
Koi avasakta nahi hai aise logo se sikchh lene ki jo hamara dharm ko n apnate hue hame hi dharm ki sikchh de.
TB to Mr Jha, ghr wapsi bhi nhi honi chahiye. Aap log to BHU Ko ek jaati vishesh tk hi simit rkhna chahte hain humesa se.
We should respect them .?