नयी दिल्ली, 15 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून का उद्देश्य पारदर्शिता लाना है और अगर कोई जानकारी देने पर कानूनी तौर पर पाबंदी न लगी हो, तो उसे मांगे जाने पर सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
उच्च न्यायालय ने कहा कि सूचना मांगने के पीछे के मकसद पर सवाल उठाना कानून के तहत सही नहीं है।
उच्च न्यायालय ने कोविड-19 के प्रकोप के मद्देनजर दो अप्रैल, 2020 को केंद्र सरकार की ओर से शुरू किए गए आरोग्य सेतु मोबाइल ऐप का विवरण मांगने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
अदालत ने कहा, ‘आरटीआई अधिनियम केवल यह कहता है कि यदि कोई जानकारी है, तो इसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए जब तक कि यह आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (सूचना के प्रकटीकरण से छूट) के तहत किसी भी खंड द्वारा संरक्षित न हो। अन्यथा इस देश का कोई भी व्यक्ति या नागरिक जानकारी प्राप्त करने का हकदार है।’
न्यायाधीश सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, “मकसद आदि के बारे में प्रश्नचिह्न लगाना अधिनियम के तहत नहीं है। इसलिए जब जानकारी अन्यथा दी जानी है, तो कानून में संशोधन करना होगा ताकि मकसद पर सवाल उठाया जा सके। अधिनियम का उद्देश्य पारदर्शिता लाना है।”
उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी तब की जब केंद्र सरकार के वकील ने सूचना मांगने के याचिकाकर्ता के मकसद और एजेंडे पर सवाल उठाने की कोशिश की।
याचिकाकर्ता और आरटीआई कार्यकर्ता सौरव दास ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के 24 नवंबर, 2020 के आदेश को भी चुनौती दी है, जिसमें शिकायतकर्ता को सुने बिना एमईआईटीवाई अधिकारियों के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया।
भाषा जोहेब माधव
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