रायपुर: उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी- चार महीने में राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री- की जड़ें संघ परिवार से जुड़ी हैं और शीर्ष पर पहुंचने का यह सफर उन्होंने लगभग तीन दशकों में तय किया है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवक रहे धामी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत संघ की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के एक कार्यकर्ता के तौर पर की थी. दो बार विधायक बने धामी राज्य के कुमाऊं क्षेत्र की खटीमा विधानसभा सीट से मौजूदा विधायक हैं.
गुरुवार को उन्हें एकदम आश्चर्यजनक ढंग में उत्तराखंड के सीएम के रूप में नामित किया गया क्योंकि एक ‘संवैधानिक संकट’ के कारण तीरथ सिंह रावत के पद छोड़ने पर बाध्य होने से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सामने केवल चार महीनों में ही एक नया मुख्यमंत्री चुनने की मजबूरी आ गई थी.
राज्य के भाजपा नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि अपने सहयोगियों के बीच बेहद सम्मानित और ‘सज्जन’ व्यक्ति धामी के नाम की घोषणा पार्टी विधायक दल की बैठक में की गई और उसे मंजूरी मिल गई.
हालांकि, उन्होंने कहा कि अगले विधानसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय होने के बीच प्रशासनिक अनुभव की कमी और छोटे कार्यकाल के कारण उन्हें आगे बढ़ने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया, ‘जब केंद्रीय मंत्री और केंद्रीय पर्यवेक्षक नरेंद्र सिंह तोमर ने उनका नाम सामने रखा तो विधायक दल की बैठक मौजूद लगभग 57 विधायकों में से किसी ने भी उनकी उम्मीदवारी का विरोध नहीं किया.’
नेता ने कहा, ‘हालांकि, धामी सहज उपलब्ध नेता हैं और राज्य की नौकरशाही में सभी वरिष्ठ अधिकारियों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध भी बनाए रखते हैं, लेकिन प्रशासनिक अनुभव की कमी और 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले काम करने के लिए बेहद कम समय होने के कारण उनके लिए इसका प्रबंधन मुश्किल हो सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘उनकी सबसे बड़ी चुनौती अब राज्य में नौकरशाहों को साधना होगा, जो पिछले चार वर्षों में अपनी मनमर्जी से काम करते रहे हैं.’
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धामी के एक पारिवारिक मित्र के अनुसार, शुक्रवार को अपने पूर्ववर्ती के इस्तीफे से पहले ही उन्हें इस बात की जानकारी थी कि उन्हें क्या जिम्मेदारी मिलने जा रही है.
उक्त व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘भाजपा नेतृत्व ने धामी को 4-5 दिन पहले ही दिल्ली बुलाया था. अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन्हें पार्टी के फैसले के बारे में बता दिया था. उसी दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के अन्य नेताओं के साथ भी उनकी मुलाकात हुई थी.’
कौन हैं धामी?
पुष्कर सिंह धामी मूल रूप से पिथौरागढ़ जिले के पहाड़ी कनालीचिना गांव के निवासी हैं, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र कुमाऊं के मैदानी इलाकों खासकर खटीमा में केंद्रित रहा है.
दिप्रिंट के पास मौजूद उनके बायोडाटा के मुताबिक, 45 वर्षीय धामी विधि स्नातक हैं, और मानव संबंध प्रबंधन और इंडस्ट्रियल रिलेशन में स्नातकोत्तर हैं.
उत्तराखंड राज्य के गठन से पहले उन्होंने 1990 और 1999 के बीच लखनऊ यूनिवर्सिटी में अध्ययनरत रहने के दौरान एबीवीपी नेता के रूप में काम किया.
धामी को आधिकारिक तौर पर पहला काम 2002 में मिला था जब राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने उन्हें अपने ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) की जिम्मेदारी सौंपी.
भाजपा के 2002 में पहला राज्य चुनाव हारने के बाद वह उत्तराखंड में भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के पहले अध्यक्ष बने और 2002 से 2008 तक लगातार दो बार इस पद पर रहे. यहां तक कि एबीवीपी और भाजयुमो में अपने कार्यकाल के दौरान भी धामी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में एक नियमित आरएसएस स्वयंसेवक के रूप में काम करते रहे.
राज्य में भाजपा की गुटबाजी की राजनीति के बीच कोश्यारी खेमे के कट्टर समर्थक माने जाने वाले धामी को केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का भी करीबी माना जाता है.
वह पहली बार 2012 में राज्य विधानसभा के लिए चुने गए थे. 2017 में उन्होंने कांग्रेस के भुवन कापड़ी को हराया, जो गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं, और स्थानीय स्तर पर एक बड़े नेता हैं.
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