नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समर्थित शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने केंद्र सरकार से मांग की है कि सभी शिक्षण संस्थानों में स्वदेशी को आवश्यक बनाया जाए. इसके लिए संस्था ने स्कूल यूनिफॉर्म में खादी के इस्तेमाल और शैक्षणिक संस्थानों में भारतीय व्यंजन परोसे जाने को ज़रूरी बनाए जाने की वकालत की है.
इस विषय में न्यास के प्रमुख अतुल कोठारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘देश भर में करोड़ों स्कूल जाने वाले छात्र हैं. अगर वो खादी पहनते हैं तो ये हमारे खादी उद्योग और अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा होगा’.
इसी के साथ उन्होंने कहा, ‘देश के सभी शैक्षणिक संस्थानों को देसी व्यंजन खिलाने पर ज़ोर देना चाहिए.’ इसके लिए न्यास ने प्रधानमंत्री कार्यालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय को एक ज्ञापन सौंपा है.
शिक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक भारत में 645 जवाहर नवोदय विद्यालय हैं जिनमें 2,74,916 छात्र पढ़ते हैं. वहीं, केंद्रीय विद्यालयों की संख्या 1,235 है जिनमें 13,15,708 छात्र पढ़ते हैं. इनके अलावा 23,000 सीबीएसई स्कूलों में दो करोड़ के करीब छात्र पढ़ते हैं.
न्यास इन्हीं नंबरों का हवाला देते हुए स्कूलों में स्वदेशी की वकालत कर रहा है जिससे अर्थव्यवस्था में मज़बूती की संभावना जताई जा रही है.
न्यास का कहना है कि अगर सभी शिक्षण संस्थाओं में संभव ना हो तो कम से कम सरकारी संस्थानों में तो स्वदेशी के इस्तेमाल को ज़रूरी बनाया ही जाना चाहिए. इस विषय पर अतुल कोठारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘पीएम ने भी आत्मनिर्भरता की बात कही है. आत्मनिर्भरता स्वदेशी से ही आएगा. गांधी समेत सभी स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वदेशी की वकालत की थी. इससे हमारे यहां रोज़गार पैदा होगा और देश का पैसा देश में रहेगा.’
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शिक्षा नीति में बदलाव की भी सलाह
न्यास द्वारा सौंपे गए ज्ञापन में वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए प्रस्तावित शिक्षा नीति (एनईपी) में भी बदलाव की मांग की गई है. न्यास का कहना है कि ‘कोरोना महामारी’ की वजह से देश में लगभग दो महीनों से समस्त शिक्षण संस्थान बंद हैं और इस बीच नई शिक्षा नीति के प्रारूप को भी अंतिम रूप दे दिया गया है.
कोरोनावायरस को ‘चीनी कोरोना विषाणु’ करार देते हुए न्यास ने कहा, ‘इसकी वजह से जन्मी परिस्थितियों, भविष्य की चुनौतियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर नई शिक्षा नीति के प्रारूप में परिवर्तन करने और उसके बाद ही इसे घोषित करने की ज़रूरत है.’
कोठारी ने वर्तमान चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए प्रस्तावित एनईपी में बदलाव के सुझाव भी दिए हैं. प्रस्ताव में कहा गया है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में ऑनलाइन शिक्षा एवं कौशल शिक्षा का समावेश किया जाना चाहिए. ‘स्वदेशी स्वावलंबन अर्थव्यवस्था’ को शिक्षा पाठ्यक्रम में जोड़ा जाना चाहिए.
उन्होंने ये उम्मीद भी जताई की स्वावलंबन से भारत निर्यात के मामले में चीन की स्थिति में होगा. उन्होंने कहा, ‘स्वावलंबन के रास्ते हम चीन की तरह निर्यात करने की स्थिति में होंगे. हालांकि, चीन अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए निर्यात का सहारा लेता है लेकिन हम दुनिया की मदद करने के लिए ऐसा करते हैं. हमारा स्वभाव कभी भी साम्राज्यवादी नहीं रहा.’
उनके मुताबिक अगर हर देश स्वावलंबी बने तो इसका स्वागत होना चाहिए और दावा किया कि प्राचीन काल में भारत के गांव तक स्वावलंबी थे. हालांकि, उनका ये भी कहना है कि हर देश वर्तमान परिस्थिति में स्वावलंबी बनने की स्थिति में नहीं है. ऐसे में भारत उनकी ज़रूरतों के लिए एक अहम पड़ाव साबित हो सकता है.
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वैश्विक परिदृश्य में भारत के एक निर्यातक के तौर पर भूमिका की अहमियत पर ज़ोर देते हुए उन्होंने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) विवाद का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि भारत ने अमेरिका को एचसीक्यू देने के लिए पहली बार में इसलिए मना किया क्योंकि वो पहले अपने पड़ोसियों की मदद करना चाहता था और फिर किसी मज़बूत की मदद के लिए आगे बढ़ना चाहता था.
‘लोकल के लिए वोकल’ के बाद बढ़ी स्वदेशी की चर्चा
देश के नाम अपने पिछले संबोधन में पीएम नरेंद्र मोदी ने ‘लोकल के लिए वोकल’ का नारा दिया और देश की जनता से आत्मनिर्भर बनने की अपील की. उनकी इस अपील के बाद देश के कई क्षेत्रों में लोकल चीज़ों को प्रथामिकता देने और आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाए जाने की झलक दिखी.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जिस 20 लाख़ करोड़ के पैकेज को विस्तृत रूपी से साझा करने के लिए पांच दिनों का समय लिया उसमें भी लोकल और आत्मनिर्भर भारत की झलकियां दिखीं. वहीं गृह मंत्रालय ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए तय किया कि बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ़), सेंट्रल रिज़र्व पुलिस फ़ोर्स (सीआरपीएफ़) और अन्य केंद्रीय पुलिस बलों की कैंटीन में स्वदेशी चीज़ें ही बिकेंगी.