नयी दिल्ली, चार सितंबर (भाषा) भारत में सड़क दुर्घटना की जांच अक्सर ‘दोषी’ चालकों पर केंद्रित होती है, जबकि जांच के तरीके बुनियादी हैं और उनमें गहनता का अभाव है जिससे दुर्घटना के लिए जिम्मेदार कारकों की व्यापक समझ नहीं हो पाती। एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
बिना किसी गति नियंत्रण उपायों के बस्तियों से गुजरने वाले राजमार्गों के खंडों पर ‘ब्लैक स्पॉट’ का एक बड़ा हिस्सा, शहर की सड़कों पर पैदल यात्री पथों और साइकिल ट्रैक की कमी, बस स्टॉप और अधिक भीड़ वाले क्षेत्रों के पास सुरक्षित क्रॉसिंग सुविधाओं की कमी और सीट बेल्ट तथा हेलमेट का कम उपयोग रिपोर्ट में उजागर की गई खामियों में शामिल हैं।
रिपोर्ट का अनावरण बुधवार को सड़क दुर्घटनाओं में चोटों की रोकथाम और सुरक्षा बढ़ाने के लिए आयोजित 15वें विश्व सम्मेलन में किया गया।
यह दस्तावेज जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया द्वारा तैयार किया गया है और सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन के भारत कार्यालय द्वारा इसका समर्थन किया गया है।
इसमें कहा गया, ‘‘सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा 4 ई – इंजीनियरिंग (सड़क और वाहन), इन्फोर्समेंट (प्रवर्तन), एजुकेशन (शिक्षा) और (इमरजेंसी केयर) आपातकालीन देखभाल – में सन्निहित कई सड़क सुरक्षा पहल लागू हैं।’’
इसके अनुसार, ‘‘हालांकि, यह एक अलग दृष्टिकोण है और क्रमबद्ध सोच, सतत विकास तथा समानता के दृष्टिकोण से दायरे को सीमित करता है, जो सड़क सुरक्षा और सतत विकास पर त्वरित कार्रवाई के लिए बहुत जरूरी है।’’
रिपोर्ट में कहा गया है कि राजमार्गों पर दुर्घटना अवरोधों की अनुपस्थिति या अपर्याप्तता एकल-वाहन दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार होती है।
इसके अनुसार, ‘‘सड़क दुर्घटना की जांच अक्सर ‘गलती करने वाले’ चालक, निवारक साक्ष्य, व्यवस्थित सड़क डिजाइन और बुनियादी ढांचे पर केंद्रित होती है। सड़क दुर्घटनाओं के लिए जांच के तरीके बुनियादी हैं और उनमें गहनता की कमी है, जिससे दुर्घटना के लिए जिम्मेदार कारकों की व्यापक समझ नहीं हो पाती है।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘नियमित सड़क सुरक्षा ऑडिट और निरीक्षण लगातार नहीं किए जाते हैं, जिससे सड़क बुनियादी ढांचे में सुरक्षा से समझौते करने वाले ऐसे खतरे और खामियां रहती हैं जिनकी अनदेखी की जाती है।’’
भाषा वैभव देवेंद्र
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