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Friday, 22 November, 2024
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विश्लेषकों की राय, तेल और कोयले की बढ़ती कीमतें भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए पैदा कर सकती हैं जोखिम

विश्लेषकों ने कहा कि मुद्रास्फीति के और बढ़ने का जोखिम है और वृद्धि केवल दो साल की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से ही सुधरेगी, जिससे नीति सामान्य स्तर पर पहुंचेगी.

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मुंबई: जिंसों की बढ़ती कीमतों से भारत के सामने वृहत आर्थिक मोर्चे पर जोखिम पैदा हो सकता है. इसमें मुद्रास्फीति और आर्थिक वृद्धि शामिल हैं. इसमें महंगाई दर पहले से ही ऊंची बनी हुई है. एक विदेशी ब्रोकरेज कंपनी ने बृहस्पतिवार को यह कहा.

मॉर्गन स्टेनली के विश्लेषकों ने कहा कि तेल की कीमतें 14 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 83 डॉलर प्रति बैरल हो गयी है और कोयले की कीमत भी 15 प्रतिशत के उछाल के साथ 200 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गयी है.

उन्होंने कहा, ‘ऊर्जा की कीमतों, विशेषकर तेल के मामले में वृद्धि और उच्च मुद्रास्फीति से धीमी वृद्धि की चिंताएं जन्म ले रही है. साथ ही इससे यह भी आशंका बढ़ गयी है कि शायद इसके कारण मौद्रिक नीति सख्त हो सकती है.’

विश्लेषकों ने कहा कि मुद्रास्फीति के और बढ़ने का जोखिम है और वृद्धि केवल दो साल की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से ही सुधरेगी, जिससे नीति सामान्य स्तर पर पहुंचेगी.

उन्होंने कहा कि अगले कुछ महीने में पांच प्रतिशत के स्तर से नीचे रहने के बाद मार्च 2022 में समाप्त होने वाली तिमाही तक मुद्रास्फीति 5.5 प्रतिशत की ओर जाएगी और ऊर्जा की कीमतों विशेषकर तेल के मामले में निरंतर वृद्धि से मुद्रास्फीति के बढ़ने का जोखिम है.

तेल की कीमतों में 10 प्रतिशत की वृद्धि से सीपीआई (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) मुद्रास्फीति में 0.40 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है. चूंकि भारत अपनी तेल की मांग का 80 प्रतिशत हिस्सा आयात करता है, ऐसे में तेल की कीमतों में 10 प्रतिशत की वृद्धि से चालू खाता घाटा (सीएडी) बढ़कर जीडीपी का 0.30 प्रतिशत हिस्सा हो सकता है.

उन्होंने कहा, हालांकि, अच्छे निर्यात से यह सुनिश्चित होगा कि वित्त वर्ष 2021-22 में चालू खाते का अंतर एक प्रतिशत तक सीमित रहे.


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