scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमदेश‘राइजिंग’ दिल्ली-कैसे लैंड पॉलिसी के बदलावों ने नए हाई-राइज अपार्टमेंट कल्चर को बढ़ावा दिया

‘राइजिंग’ दिल्ली-कैसे लैंड पॉलिसी के बदलावों ने नए हाई-राइज अपार्टमेंट कल्चर को बढ़ावा दिया

डीएलएफ, यूनिटी, पार्श्वनाथ, गोदरेज, टीएआरसी जैसे तमाम निजी रियल एस्टेट डेवलपर्स पारंपरिक तौर पर कम ऊंची इमारतों वाले इस शहर की सूरत बदलकर उसे हाई-राइज सिटी बना रहे हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: करीब एक दशक पहले की ही बात है कि लक्जरी हाई-राइज अपार्टमेंट और पेंटहाउस मुंबई, बेंगलुरु या हैदराबाद जैसे महानगरों या ‘मिलेनियम सिटी’ गुरुग्राम जैसे महानगरों की पहचान हुआ करते थे, जबकि अपेक्षाकृत कम घनत्व वाली राजधानी दिल्ली में इनका नितांत अभाव ही दिखता था.

लेकिन बिल्डिंग संबंधी मानक क्या बदले राजधानी की सूरत ही बदलने लगी. पिछले 13 सालों में लक्जरी हाई-राइज आवासीय अपार्टमेंट बनने में जबर्दस्त तेजी आई है और अब तो इनकी बाढ़ ही आ गई लगती है. देखते ही देखते दिल्ली की सूरत एकदम बदल जाने की वजह हैं कुछ निजी डेवलपर्स.

शहर तेजी से बढ़ने और जमीन की भारी कमी को देखते हुए ही दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और केंद्र सरकार ने जमीनी हकीकत के साथ कदमताल बनाए रखने का फैसला किया. और 2013 में दिल्ली के ‘मास्टरप्लान’ को संशोधित करके इमारतों की ऊंचाई संबंधी पाबंदियों में छूट दी गई, जिससे डेवलपर्स के लिए दिल्ली में हाई-राइज आवासीय परियोजनाएं शुरू करने का रास्ता साफ हुआ.

डीएलएफ, यूनिटी, पार्श्वनाथ, गोदरेज, टीएआरसी और अन्य निजी डेवलपर्स कई प्राइम लोकेशन पर हाई-राइज अपार्टमेंट बनाकर पांरपरिक तौर पर लो-राइज सिटी की सूरत को बदलने में लगे हैं. वहीं, हालिया सालों में राष्ट्रीय राजधानी के आवासीय क्षेत्र पर डीडीए की पकड़ कमजोर होती गई है.

डीएलएफ के पूर्व सीईओ और अब उसी फर्म के सलाहकार राजीव तलवार ने दिप्रिंट को बताया, ‘दिल्ली के बाजार केवल दो-मंजिले हुआ करते थे और सभी घर सिंगल-फ्लोर होते थे, लेकिन अब वे सब चार गुना बढ़ गए हैं.’

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

उन्होंने कहा, ‘आपकी लो-राइज आवासीय कॉलोनियां या इमारतें 10 मंजिली थीं, जैसे फिरोज शाह रोड पर 50 साल पुरानी इमारत. और चार गुना का मतलब है 40 मंजिली इमारत. मुझे लगता है कि यह सब वक्त का तकाजा है. आजादी के समय जनसंख्या और मिलेनियम आबादी के बारे में सोचें और आपको इसका जवाब खुद-ब-खुद मिल जाएगा.’

2009 में डीएलएफ मोतीनगर में 39-मंजिले स्ट्रक्चर वाले कैपिटल ग्रीन्स के साथ दिल्ली में हाई-राइज कांप्लेक्स बनाने वाला पहला कॉमर्शियल रियल एस्टेट डेवलपर बना.

यूनिटी ग्रुप के मालिक हर्षवर्धन बंसल के अनुसार, वह डीएलएफ ही था जिसने दूसरे खिलाड़ियों को इस बाजार में आने को प्रेरित किया.

बंसल ने कहा, ‘यह (हाई-राइज कल्चर) उससे पहले दिल्ली में नहीं था. शांतिपूर्ण जीवन, और ध्वनि और वायु प्रदूषण से दूर रहने के लिए जमीन से 30-40 मीटर ऊपर रहना जरूरी होता जा रहा था. कई अन्य देशों के बुनियादी ढांचे का सर्वेक्षण कर चुके हमारे वास्तुकारों ने ऊंची-ऊंची इमारतें बनाने की सलाह दी. मुझे भी लगता है कि दिल्ली को दुबई और सिंगापुर की तरह विकास की जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा, कोविड से पहले लोग घरों में रहने की स्थिति को लेकर बहुत ज्यादा परवाह नहीं करते थे. लेकिन अब जबकि वर्क फ्रॉम होम एक आम बात हो गई है, लोग अपने रहने के लिए बड़ा और लग्जरी घर चाहते हैं.’

बंसल की कंपनी यूनिटी ने ही करोल बाग में अमरेलिस का निर्माण किया है. चार टावरों वाले इस आवासीय परिसर में हर टॉवर की ऊंचाई 182 मीटर है और ये 47 मंजिलें हैं. इस आवासीय परिसर को शहर में ‘सबसे ऊंची इमारत’ का दर्जा हासिल है.

इस तरह के लक्जरी अपार्टमेंट अपनी सुविधाओं और खासियतों की वजह से लोगों को काफी लुभाते हैं. डीएलएफ कैपिटल ग्रीन्स के सबसे कम कीमत वाले 2/3/4 बीएचके लक्जरी अपार्टमेंट की रेंज 1.9 करोड़ रुपये से लेकर 9 करोड़ रुपये तक होती है. न्यू पटेल नगर में लीला स्काई विला सबसे महंगा है, जिसमें 3/4/5/8 बीएचके ‘5-स्टार ब्रांडेड घर’ हैं, जिनकी शुरुआत ही 6 करोड़ रुपये से होती हैं, और इसमें 8 बीएचके की कीमत करीब 50 करोड़ रुपये है. डीएलएफ के किंग कोर्ट आवास 10 से 30 करोड़ की रेंज में आते हैं.

वहीं, लीला विला की कीमत वहां मिलने वाली सुविधाओं के आगे कुछ नहीं है जिनका उनका दावा है, यहां रहना किसी बेहद आलीशन होटल से कम अनुभव नहीं कराएगा. यहां हाउसकीपिंग, लॉन्ड्री, वैलेट रूम सर्विस, स्पा, हेलीपैड कैफे बार, और देश में हाईक्लास ग्लास-बॉटम पूल उपलब्ध है. किंग्स कोर्ट का प्राइस टैग दक्षिण दिल्ली के टोनी ग्रेटर कैलाश-2 जैसी प्राइम लोकेशन के अनुरूप ही है.

ओखला में गोदरेज प्राइमा, पुष्पांजलि में टीएआरसी त्रिपुंद्रा, करोल बाग में यूनिटी की अमरेलिस, आजादपुर में एम2के विक्टोरिया गार्डन और मोती नगर में डीएलएफ मिडटाउन सभी 2 से 10 करोड़ रुपये की रेंज में आते हैं.

दिल्ली में जहां लैंड पॉलिसी में बदलावों को हाई-राइज कल्चर बढ़ने के पीछे एक बड़ी वजह माना जाता है, वहीं कुछ एक्सपर्ट कहते हैं कि निर्माण प्रतिबंधों में ढील और डेवलपमेंट का निजीकरण होने का एक कारण यह भी है कि डीडीए पर्याप्त, और अच्छे किस्म के आवास मुहैया कराने की अपनी जिम्मेदारी निभाने में ‘नाकाम’ रहा है.

घोस्ट टाउन से लेकर लग्जरी कॉम्प्लेक्स तक

बंसल ने बताया कि कैसे सबसे अधिक डिमांड वाले क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण आसान हुआ, क्योंकि दिल्ली के ‘प्रदूषणकारी’ उद्योग शहर से बाहर हो गए थे, जो कि 2021 के मास्टर प्लान में शामिल औद्योगिक को आवासीय क्षेत्र में बदलने वाले (आईटीआर) सेट-अप के तहत अनिवार्य था. इसकी वजह से जो औद्योगिक जमीनें घोस्ट प्लाट बन गई थीं, उन्हें आवासीय, कॉमर्शियल और आईटी क्षेत्रों में बदला जा सकता था.

बंसल ने बताया, ‘करमपुरा में स्वतंत्र भारत मिल्स होती थी जहां डीएलएफ ने अपना प्रोजेक्ट बनाया था. आजादपुर में एनटीसी मिल की जमीन पर एम2के का विक्टोरिया गार्डन बना. करोल बाग में जहां हमने अमरेलिस का निर्माण किया था, दिल्ली क्लॉथ एंड जनरल मिल्स (डीसीएम) में काम करने वालों के आवास हुआ करते थे.’

1996 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में दिल्ली को घातक प्रदूषण और यातायात संबंधी समस्याओं से बचाने के लिए यहां चलने वाले तमाम ‘घातक/हानिकारक/भारी उद्योगों’ को एनसीआर के अन्य शहरों में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया. उन्हें मुआवजे देने का वादा किया गया और नोएडा, अलवर, मेरठ और लोनी जैसे क्षेत्रों में उपयुक्त संपत्तियों की एक सूची भी सौंपी गई.

आदेश में कहा गया था, ‘दिल्ली 1951 से ही जनसंख्या वृद्धि दर्ज कर रही है. जैसे-जैसे शहर बढ़ता गया, जलापूर्ति और सीवेज जैसे आवश्यक बुनियादी ढांचे के प्रबंधन के अलावा इसकी भूमि, आवास, परिवहन संबंधी समस्याएं भी बढ़ी हैं. दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक बन गया है. शहर में वाणिज्यिक, औद्योगिक, अनधिकृत कॉलोनियां, पुनर्वास कॉलोनियां और अनियोजित आवास काफी ज्यादा बढ़ गए हैं और एक तरह से शहर पर बोझ बन चुके हैं…राजधानी शहर को अतिरिक्त बोझ और दबाव से मुक्त करने का एकमात्र तरीका यही है कि जनसंख्या, उद्योगों और आर्थिक गतिविधियों में कमी लाई जाए.’

टीएआरसी के प्रबंध निदेशक और सीईओ अमर सरीन ने दिप्रिंट से बातचीत में बताया की कि लैंड पॉलिसी में बदलाव उनके समूह सहित सभी डेवलपर्स के लिए कैसे फायदेमंद रहा, क्योंकि दिल्ली स्थित पुष्पांजलि फार्म्स में टीएआरसी त्रिपुंद्रा की परियोजना उस भूमि पर है जो पहले एक औद्योगिक इकाई के लिए आवास होता था. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने अन्य रास्ते भी खोले जिससे ऊंची-ऊंची इमारतों के निर्माण में मदद मिली.

सरीन ने बताया, ‘3,000 वर्ग मीटर से अधिक भूमि क्षेत्र पर हाई-राइज बिल्डिंग बनाने की अनुमति दी गई. एफएआर (फ्लोर एरिया रेशियो) और अतिरिक्त भूमि क्षेत्र में छूट देकर डीडीए और एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) दोनों के उपनियमों को काफी हद तक हमारे अनुकूल बनाया गया. यह हमारे लिए उपभोक्ताओं को अल्ट्रा-लक्जरी अपार्टमेंट उपलब्ध कराने का रास्ता खोलता है.’

उन्होंने कहा, ‘मंजूरी हासिल करना आसान हो गया है. दिल्ली में अथॉरिटी की तरफ से काफी उदारता के साथ अनुमति मिल जाती है, खासकर जब आप हमारी तरह डेवलपमेंट कर रहे होते हैं, परिसर में पूरी सेफ्टी और सिक्योरिटी के साथ. अब स्थानीय सरकार की तरफ से बेहतर सड़कों, कनेक्टिविटी और जल आपूर्ति का इंतजाम किए जाने की जरूरत है, बाकी सब कुछ अपनी जगह पर ठीक है.’

एफएआर किसी इमारत के कुल फ्लोर एरिया और भूमि के जिस टुकड़े पर उसे बनाया गया, उसके बीच के अनुपात को कहते हैं. 2014 में, 750 वर्ग मीटर से 1,000 वर्ग मीटर तक के भूखंडों के लिए एफएआर 150 प्रतिशत से बढ़ाकर 200 प्रतिशत कर दिया गया, जबकि 1,000 वर्ग मीटर और उससे अधिक के भूखंडों के लिए एफएआर 120 प्रतिशत से बढ़ाकर 200 प्रतिशत कर दिया गया था.

इसी तरह, 1,000 वर्ग मीटर और उससे अधिक के भूखंडों के लिए ग्राउंट कवरेज 40 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया, और 750-1,000 वर्ग मीटर के भूखंडों के लिए यह 50 प्रतिशत पर बना रहा. मास्टर प्लान 2021 के तहत भूमि के अधिकतम उपयोग के लिए ऊंचाई जैसे अनावश्यक प्रतिबंध हटा दिए गए.

मास्टरप्लान में कहा गया, ‘व्यक्तिगत औद्योगिक भूखंडों पर पुनर्विकास/पुनर्निर्माण की अनुमति देते समय संबंधित परिसर के डेवलपमेंट कंट्रोल नार्म मसलन ग्राउंड कवरेज, एफएआर आदि का पालन किया जाएगा और ऊंचाई पर कोई पाबंदी नहीं होगी. ऊंचाई एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया/अग्निशमन विभाग आदि की आवश्यकताओं के मुताबिक तय होगी.’

डीडीए के अतिरिक्त आयुक्त, के. श्रीरंगन ने कहा, ‘इसकी शुरुआत पहले केवल पुरानी दिल्ली में हुई लेकिन फिर बढ़ती आबादी के मद्देनजर वसंत कुंज, जसोला, साउथ एक्सटेंशन जैसे क्षेत्रों और फिर रोहिणी, द्वारका और नरेला जैसे उप-शहरों में भी इसे अपनाया गया.’

उन्होंने कहा, ‘आवास की मांग होने पर आपूर्ति की भी जरूरत होती है. आप विदेश जाते हैं, तो आपको शहर के बीच में ऊंची-ऊंची इमारतें दिखाई देती हैं, और बाहरी क्षेत्रों में ऐसे घर होते हैं जो छोटे और छोटे होते जाते हैं. दिल्ली में शहर का केंद्र लुटियंस जोन है. हम किस नीति से लुटियंस में रहने वालों को हटाकर इसके बजाये ऊंची इमारतें बना सकते हैं?’

उन्होंने कहा कि वर्टिकल डेवलपमेंट भी जरूरी होता है क्योंकि दिल्ली निश्चित सीमाओं के साथ एक लैंडलॉक शहर है, और इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डरों को अन्य लाभों के साथ-साथ औद्योगिक भूमि पर निर्माण की अनुमति दी है.


यह भी पढ़ें-मोदी के नेतृत्व के लिए तैयार है दुनिया, भारत के लिए काफी अहम हैं अगले 25 साल: केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह


डीडीए की नाकामी?

एमिटी यूनिवर्सिटी के आरआईसीएस स्कूल ऑफ बिल्ट एनवायरनमेंट के सीनियर एकेडमिक एडवाइजर के.टी. रवींद्रन के मुताबिक, हालांकि दिल्ली की शक्लो-सूरत में बदलाव अपरिहार्य था, डीडीए आवास उपलब्ध कराने के अपने मूल कर्तव्य में विफल रहा है. उन्होंने कहा कि विकास के लिए निजीकरण की जरूरत का बहाना नहीं बनाया जा सकता.

उन्होंने जनसंख्या बढ़ने संबंधी तर्क को भी खारिज कर दिया और कहा कि अगर इतनी ही मांग थी, तो नरेला में सरकारी अपार्टमेंट और शहर में अन्य कम आय वाले आवासों में से आधा खाली क्यों पड़े थे. उन्होंने कहा, इसकी वजह निर्माण की खराब गुणवत्ता और प्रबंधन संबंधी दिक्कतें हैं.

रवींद्रन ने कहा, ‘प्रबंधन और गवर्नेंस संबंधी काफी खामियां हैं. इस तरह की योजनाएं लाना, ऊंचाई संबंधी प्रतिबंधों को हटाना आदि सब अपनी विफलताओं को छिपाने की एक कोशिश है.’

उन्होंने कहा, ‘ऊंचाई संबंधी पाबंदी केवल तभी हट सकती है जब आपकी तरफ से उन इमारतों के लिए मुहैया कराए जा रहे बुनियादी ढांचे में कुछ सेवाओं में वृद्धि की पर्याप्त क्षमता हो—जैसे जल आपूर्ति, सड़क और सीवेज प्रबंधन आदि जो कि सरकार के अधीन आती हैं. विकास/पुनर्विकास के क्षेत्रों का चयन मनमाने ढंग से किया जा रहा है. असीमित बुनियादी ढांचे के निर्माण की अनुमति दी जा रही है, लेकिन शहरी व्यवस्थाओं का इंतजाम नहीं किया जा रहा है. पहले मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की क्षमता बढ़ाएं, फिर आगे बढ़ें और निर्माण को बढाएं.’

डीएलएफ कैपिटल ग्रीन्स में रहने वाले कई लोगों ने पास ही स्थित नजफगढ़ नाले से निकलने वाले जहरीले धुएं की शिकायत की है. ऐसे ही एक निवासी 43 वर्षीय पवन कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि इसने कैसे उनके घर में एयर कंडीशनर और अन्य उपकरणों को बुरी तरह प्रभावित किया है. पवन कुमार ने कहा, ‘नाले से बदबू आना तो एक समस्या ही है. उससे निकलने वाला जहरीला धुंआ एसी पाइप को भी खराब करता है. ऐसे में हर साल एसी को ठीक कराने की जरूरत पड़ती है, जो कि एक अतिरिक्त खर्च है.’

यूनिटी के बंसल ने बताया कि औद्योगिक भूमि के साथ कुछ समस्याएं जुड़ी होती हैं जैसे सड़कों ठीक से बनी नहीं होतीं, झुग्गी-झोपड़ियां बसी होती है और हरित क्षेत्रों का भी अभाव होता है. लेकिन उनका मानना है कि आने वाले सालों में सरकार इन मुद्दों का समाधान भी निकालेगी.

एक शहरी नीति और योजना विशेषज्ञ, जिन्होंने मास्टर प्लान 2041 के मसौदे पर काम किया है, ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट के साथ बातचीत में कहा कि प्लान के तहत सिंगल रेजिडेंशियल यूनिट की जगह ऐसे ‘ग्रुप हाउसिंग’ सेटअप (हाई-राइज) को प्रोत्साहित किया जा रहा है क्योंकि दिल्ली में जगह तो सीमित ही है.

उन्होंने कहा, ‘हर ग्रुप हाउसिंग के लिए 15 प्रतिशत एफआरए अनिवार्य तौर पर आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आवास के लिए निर्धारित किया जाता है—जो सरकार की तरफ से तय लाभार्थी (आधे सामुदायिक सेवा कर्मी) होते हैं. कोई भी डेवलपर लाभ कमाने के बारे में ही सोचेगा. उन्हें सामाजिक आवास में कोई दिलचस्पी नहीं होगी. इसलिए, स्वाभाविक है कि उन्हें हाई-राइज टाइपोलॉजी पसंद आती है.’

मास्टर प्लान 2021 में मिले प्रोत्साहनों का डेवलपर्स न केवल स्वागत करते हैं, बल्कि इन्हीं को आधार बनाकर उन आलोचकों को जवाब भी देते हैं जो उनके सस्ती दरों पर आवास उपलब्ध नहीं कराने को लेकर सवाल खड़े करते हैं.

डीएलएफ के तलवार का तर्क है कि 2050 तक, दिल्ली की आबादी इसकी क्षमता से बहुत ज्यादा होगी और ऐसे में सभी के लिए जगह उपलब्ध होना सुनिश्चित करने के लिए ऊंची इमारतें बेहद जरूरी हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि वर्टिकल डेवलपमेंट शहर के लिए अच्छा है, क्योंकि इससे हरित क्षेत्र बना रहना सुनिश्चित हो सकेगा. अगर क्षैतिज विकास किया जाए तो यह ज्यादा जगह घेरेगा, जिससे हरित क्षेत्र के लिए पर्याप्त जगह नहीं बचेगी.

बहरहाल, दिप्रिंट ने जब डीएलएफ और गोदरेज फ्लैटों की री-सेल में लगे कुछ रियल एस्टेट एजेंटों से बात की तो पाया कि बिल्डिंग कॉम्प्लेक्स के एक कोने में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए बनाए गए फ्लैट या तो किराए पर दे दिए गए है फिर इसके मालिकों ने इन्हें बेच दिया है.

सिविल लाइंस में पार्श्वनाथ के ला ट्रोपिकाना जैसे कुछ प्रोजेक्ट में तो ईडब्ल्यू के लिए फ्लैट बनाए ही नहीं गए. लॉ ट्रॉपिकाना के प्रोजेक्ट इंचार्ज परमजीत सिंह के मुताबिक, यह परियोजना 2010 में आई थी.

श्रीरंगन ने कहा, ‘अगर आप दिल्ली में रहने वालों की आय को देखें, तो शहर में बहुत सारे अमीर मिल जाएंगे. पैसे वाले लोग कहेंगे कि जब वे गरीबों को रोजगार दे रहे हैं, तो उन्हें रहने के लिए उचित घर क्यों नहीं मिल रहे? नहीं तो वे विदेश चले जाते. जो लोग उन घरों (हाई-राइज) को खरीद सकते हैं, खरीद रहे हैं. यही अर्थशास्त्र है. सरकार सब कुछ नियंत्रित नहीं कर सकती. किफायती आवास हैं (जो डीडीए उपलब्ध कराता है), और लग्जरी घरों की भी आवश्यकता है, और कोई न कोई तो उन्हें बनाएगा ही. हमारे पास दूसरों को दिखाने के लिए भी कुछ होना चाहिए.’

उन्होंने दिल्ली के रिंग रोड पर विशाल आवासीय परिसर ईस्ट किदवई नगर रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट का हवाला देते हुए कहा कि सरकार ने भी नए प्रावधानों के तहत ऊंचे टॉवर बनाने शुरू कर दिए हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें-‘केजरीवाल की आलोचना करना काफी नहीं’, दिल्ली MCD चुनावों में BJP का फोकस अपने ‘सुशासन’ पर होगा


share & View comments