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Tuesday, 23 April, 2024
होमदेश‘ऋषि सुनक भृगु गोत्र वाले सनातनी हैं’—हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस ने ब्रिटेन के नए पीएम के बारे में क्या कहा

‘ऋषि सुनक भृगु गोत्र वाले सनातनी हैं’—हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस ने ब्रिटेन के नए पीएम के बारे में क्या कहा

दिप्रिंट अपने राउंडअप में बता रहा है कि पिछले हफ्ते हिंदुत्व समर्थक मीडिया ने विभिन्न घटनाओं और सामयिक मुद्दों को कैसे कवर किया और उन पर क्या टिप्पणियां की.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के हिंदी मुखपत्र पांचजन्य ने अपने एक लेख कहा है कि ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक चूंकि वैदिक आचार्य भृगु की गोत्र परंपरा वाले से एक सनातनी (हिंदू) हैं, इसलिए वह न तो अपने देश की ‘बिगड़ती’ अर्थव्यवस्था से घबराकर पलायन भागेंगे, और न ही अपने विरोधियों से डरकर चुप बैठेंगे.

लेख में कहा गया है, ‘उनका भारतीय जीन उन्हें स्वत: स्फूर्त करता रहेगा और हर तरह की चुनौतियों का सामना करके अंतत: सफलता हासिल करेंगे.’ साथ ही आगे कहा गया है कि सुनक का 25 अक्टूबर को प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचना सभी को ‘शानदार भारतीय ज्ञान परंपरा’ की याद दिलाता है.

लेख में ऋषि के अंतिम नाम ‘सुनक’ को एक भारतीय ऋषि के साथ जोड़ा गया है, जिन्हें ‘ऋषि शौनक’ कहा जाता था, और जो ऋषि शुनक नामक एक अन्य ऋषि के पुत्र होने के कारण शौनक कहलाए थे.

ऋषि सुनक के अलावा, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का तीसरी पार जनरल सेक्रेटरी पद हासिल करना, ग्लोबल हंगर इंडेक्स और भगवद् गीता पर कांग्रेस नेता शिवराज पाटिल की टिप्पणी आदि भी हिंदू दक्षिणपंथी प्रेस में सुर्खियों में रहा. दिप्रिंट अपने राउंडअप में बता रहा है कि पिछले हफ्ते हिंदुत्व समर्थक मीडिया ने विभिन्न घटनाओं और सामयिक मुद्दों को कैसे कवर किया और उन पर क्या टिप्पणियां की.


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सुनक की ‘जाति और धार्मिक आस्था’

आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के एक लेख में भारतीय विपक्षी नेताओं को लताड़ लगाई गई, जिन्होंने ब्रिटेन में एक ‘अल्पसंख्यक’ राजनेता सुनक के सत्ता में आने के मौके का इस्तेमाल यह सवाल उठाने के लिए किया कि क्या भारत में ऐसा संभव हो सकता है.

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मैगजीन ने एक लेख में कांग्रेस नेताओं से कहा कि ब्रिटिश पीएम की ‘जाति और धार्मिक आस्था’ से परे जाकर भी देखें. राजनीतिक टिप्पणीकार अंबा चरण वशिष्ठ ने दावा किया कि सुनक का इस पद पर पहुंचना हर भारतीय के लिए खुशी की बात है, लेकिन विपक्ष इसमें भी राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है.

वशिष्ठ ने लिखा, ‘बहुत दुख की बात है कि उनकी (कांग्रेस की) चिंता सिर्फ यही है कि ब्रिटेन के इस घटनाक्रम का राजनीतिक लाभ कैसे उठाएं. ऐसा लगता है कि देश के राजनेता यह दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं कि ऋषि सुनक के पास अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखने के अलावा कोई और योग्यता ही नहीं है. उनकी अदूरदर्शिता खुलकर विश्व समुदाय के सामने आ गई है.’

लेख में खास तौर पर कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं शशि थरूर और पी. चिदंबरम का जिक्र किया गया और उनके ‘बयानों को हास्यास्पद’ करार दिया गया.

इसमें कहा गया, ‘गृह और वित्त मंत्रालय संभाल चुके विद्वान पूर्व मंत्री पी. चिदंबरन ने देश में ‘बहुसंख्यकवाद’ की आलोचना की, वहीं शशि थरूर ने यह पूछ लिया कि भारत में मुसलमानों और ईसाइयों के लिए सुनक की तरह शीर्ष पद पर पहुंचना संभव हो सकता है या नहीं.’

वशिष्ठ ने इस लेख में सवाल उठाया, ‘इन दोनों नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए हाल ही में कराए गए चुनावों के दौरान यह मांग क्यों नहीं उठाई कि पार्टी को ‘बहुसंख्यकवाद’ से दूर रहना चाहिए और किसी मुस्लिम या ईसाई को पार्टी का नेतृत्व सौंपना चाहिए.’


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‘लोकतांत्रिक देशों को शी से सतर्क रहना होगा’

ऑर्गनाइजर ने अपने ताजा अंक में एक संपादकीय में लिखा है कि जिनपिंग को पिछले महीने 20वीं पार्टी कांग्रेस में तीसरी बार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) का जनरल सेक्रेटरी चुना जाना अभूतपूर्व है, हालांकि यह अप्रत्याशित नहीं था.

इसमें कहा गया है कि ‘भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों’ को ‘कम्युनिस्ट तानाशाह’ के खिलाफ सतर्क रहना होगा.

सीपीसी की पार्टी कांग्रेस के नतीजों का हवाला देते हुए संपादकीय में कहा गया कि ‘शी जिनपिंग खुद को अमेरिकी नेतृत्व वाली विश्व व्यवस्था के लिए एक चुनौती के तौर पर पेश करने के लिए संघर्ष का रास्ता अपना सकते हैं. निस्संदेह, जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल में पहले से ही अस्थिर विश्व व्यवस्था की अनिश्चितता और बढ़ेगी. शी का तीसरा कार्यकाल चीन के सहयोगी पाकिस्तान और उत्तर कोरिया जैसे देशों को उत्साहित करने वाला है. इस नेता की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं मानवता को एक और शीत युद्ध की ओर धकेल सकती हैं, जैसा स्टालिन और माओ के समय में हुआ था.’

केरल में सरकार बनाम राज्यपाल, भगवद् गीता पर शिवराज पाटिल की टिप्पणी

ऑर्गनाइजर का एक लेख केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान की तरफ से नौ स्टेट यूनिवर्सिटी के कुलपतियों को इस्तीफा देने के लिए कहे जाने पर केंद्रित रहा. इसमें सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की सराहना की गई जिसने प्रक्रियात्मक खामियों के आधार पर एक वीसी की नियुक्ति रद्द कर दी थी और जिसके बाद ही आरिफ मोहम्मद खान ने यह कदम उठाया.

इसमें कहा गया है, ‘केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान पिछले कई माह से यह कहते आ रहे हैं कि पिनरई विजयन सरकार एकदम खुले तौर पर कुलपतियों की राजनीतिक नियुक्तियों के जरिए यूनिवर्सिटी कैंपस को मार्क्सवादी विचारधारा पनपने का केंद्र बना रही है और अब सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने उनकी इसी राय पर मुहर लगाई है.’

लेख के मुताबिक, ‘तिरुवनंतपुरम स्थित कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (केटीएम) की कुलपति की नियुक्ति रद्द करके सुप्रीम कोर्ट ने न केवल वीसी नियुक्ति में प्रक्रियात्मक खामियां उजागर की है, बल्कि एलडीएफ सरकार को यह भी याद दिलाया है कि वीसी पद पर किसी उच्च शैक्षणिक साख वाले गैर-राजनीतिक व्यक्ति को नियुक्त किया जाना जरूरी है.’

लेख में आगे कहा गया कि ‘अनुचित’ राजनीतिक नियुक्तियों के जरिए जो वीसी बनते हैं, वो आगे चलकर सत्ताधारी दलों के राजनीतिक हितों को ही आगे बढ़ाते हैं. साथ ही आरोप लगाया गया कि सभी दक्षिणी राज्यों यही स्थिति है, जैसे आंध्र प्रदेश में वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली सरकार की तरफ से नियुक्त किए गए वीसी ‘सत्तारूढ़ दल की राजनीतिक बैठकों के लिए पूरी उदारता के साथ यूनिवर्सिटी कैंपस मुहैया करा रहे हैं.’

25 अक्टूबर को दैनिक जागरण में प्रकाशित एक लेख में उत्तर प्रदेश के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी के नेता हृदय नारायण दीक्षित ने पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री और कांग्रेस नेता शिवराज सिंह पाटिल के उस दावे पर तीखी प्रतिक्रिया जताई, जिसमें उन्होंने कहा था कि भगवद गीता में भी जिहाद की अवधारणा शामिल है.

दीक्षित ने अपने लेख में कहा, ‘इस्लामी परंपरा में कुरान पर अलग-अलग व्याख्या की अनुमति नहीं है. लेकिन भगवद गीता को लेकर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है. सभी अपने-अपने नजरिए से गीता की व्याख्या करते रहे हैं…लेकिन गीता में जिहाद की बात करना या तो छवि खराब करने की कोशिश है या फिर धर्मनिरपेक्ष राजनीति में शीर्ष पर पहुंचने की महत्वाकांक्षा.


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ग्लोबल हंगर इंडेक्स ‘भ्रामक’

दक्षिणपंथी लेखक मिनहाज मर्चेंट ने हिंदी अखबार दैनिक भास्कर में एक लेख में ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) को ‘भ्रामक’ बताया. पिछले ही माह जारी जीएचआई-2022 के मुताबिक, 121 देशों में भारत की रैंकिंग इस साल 2021 के 101वें स्थान से फिसलकर 107वें स्थान पर पहुंच गई है.

मर्चेंट ने लिखा कि यह सर्वेक्षण चार मापदंडों पर निर्भर है, जिनमें तीन मापदंड पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए हैं और केवल को एक ही वयस्कों के लिए निर्धारित किया गया है.

उन्होंने आगे लिखा, ‘इसे ग्लोबल हंगर इंडेक्स क्यों कहा जाता है? स्वाभाविक-सी बात है कि यह बच्चों से जुड़ा हंगर इंडेक्स है. क्या छोटे बच्चों में पोषण की कमी को पूरी आबादी में भूख की स्थिति से जोड़ा जा सकता है? निश्चित तौर पर नहीं.’

‘सांप्रदायिकता से लड़ने के लिए बौद्धिक योद्धाओं की जरूरत’

हिंदी अखबार स्वदेश को दिए एक इंटरव्यू में आरएसएस से संबंद्ध संगठन प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे. नंदकुमार ने कहा, ‘हमें ‘बौद्धिक योद्धा तैयार करने की जरूरत है.’

उनका दावा है कि सांप्रदायिकता का मूल कारण एकेश्वरवाद रहा है और, स्कूलों, कॉलेजों और अन्य संस्थानों में इसे ही प्रचारित किया जा रहा है.

नंदकुमार ने कहा, ‘यह एक विकृत विचारधारा है जो भारत के लिए खतरा है. वे खुद को सत्य मानते हैं और दूसरों को असत्य. इसलिए जरूरी है कि हम बौद्धिक योद्धा तैयार करें. गुलामी की हर निशानी को मिटा दें और उस जगह को भारतीय ज्ञान परंपरा से भरें.’

उन्होंने वोक यानि ‘अति-जागरूकता’ वाली संस्कृति पर भी निशाना साधा और कहा कि यह राष्ट्र-विरोधी विचारधारा है जो एक नए भेष में सामने आई है. उन्होंने आगे कहा, ‘ये संस्कृति सामान्य ट्रेड यूनियन नेताओं से लेकर न्यायपालिका में बैठे लोगों तक फैली है, और पारिवारिक मूल्यों को लेकर उनकी अपमानजनक टिप्पणी सार्वजनिक मंच पर सुनी जा सकती है. अब भारत के प्रति प्रेम भी संप्रदायवाद बन गया है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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