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Friday, 29 March, 2024
होमदेशअपने नुक़सान गिन रहा है दंगा-प्रभावित खरगौन, जला हुआ PMAY का घर, टूटे हुए सपने, मुर्दा जानवर और जला हुआ पैसा

अपने नुक़सान गिन रहा है दंगा-प्रभावित खरगौन, जला हुआ PMAY का घर, टूटे हुए सपने, मुर्दा जानवर और जला हुआ पैसा

खरगौन के सांप्रदायिक रूप से अतिसंवेदनील दंगा-प्रभावित इलाक़ों की गलियों में ईंटें, कांच, और टाइल्स के टुकड़े झुलसी हुई चूड़ियां, अनाज, कपड़े, और जलाई हुई दुकानों तथा घरों के दूसरे अवशेष बिखरे पड़े हैं.

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खरगौन: आयशा ख़ान- उन सांप्रदायिक दंगों से बचकर निकली महिला, जिनसे पिछले रविवार को मध्यप्रदेश का खरगौन ज़िला दहल गया- अपने बेडरूम के दरवाज़े पर क़ुरान के जले हुए पन्नों को हाथ में लिए रो रही हैं. उन्होंने दंगों में सब कुछ गंवा दिया है- अपना घर, अपनी बचत, बेटी की शादी के लिए रखे 1,50,000 रुपए के गहने- और अब खाने और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रही हैं. उनके जले हुए घर में अनाज, जले हुए बर्तन, और करेंसी नोट्स बिखरे हुए हैं- जो उन्होंने बेटी मुस्कान की शादी के लिए बचाए हुए थे. वो सात लोग एक साथ रहते हैं, जिनमें उनका पोता भी शामिल है.

राम नवमी जुलूस के दौरान जिस समय तलब चौक में दंगे भड़ते, तो आयशा के परिवार ने बस इफ्तार ख़त्म ही किया था. उन्हें अपने घर के बाहर कुछ भारी आवाज़ें सुनाई पड़ीं, जैसे ऊंचाई से कोई पत्थर गिर रहे हों, और जब वो बाहर निकलीं तो उन्होंने वहां क़रीब 300 लोगों की भीड़ देखी.

उन्होंने भीड़ को समझाने की कोशिश की- ‘यहां पर कोई दंगाई मौजूद नहीं है, हमें अकेला छोड़ दीजिए,’ लेकिन किसी ने नहीं सुनी. वो जल्दी से अंदर गईं, दरवाज़े पर ताला लगाया और अपने पति और ससुर के साथ वहां से निकल गईं. अगली सुबह पड़ोसियों ने उन्हें ख़बर दी, कि उनके घर में आग लगाकर उसे लूट लिया गया था.

आयशा खान कुरान के जले हुए पन्नों को पलट कर दिखाते हुए। फोटो: बिस्मी तस्कीन | दिप्रिंट

उन्होंने बताया, ‘उन सबके हाथों में हथियार थे और वो मास्क पहने हुए थे. अब मेरे पास कोई आसरा नहीं है. मेरे बेटे 5,000-6,000 रुपए कमाते हैं और अस्पतालों और कारख़ानों में क्लीनर का काम करते हैं.’

चार दंगों की गवाह

ये दूसरा दंगा है जो आयशा और दूसरे बहुत से लोगों ने पिछले छह महीनों में देखा है. खरगौन सांप्रदायिक रूप से बेहद संवेदनशील इलाक़ा है, और यहां पहले भी दंगे हो चुके हैं. पहले दंगे कथित रूप से 1921 में हुए थे, जिसके बाद कई और दंगे हुए. सबसे ख़राब दंगे वो थे जो राम शिला कार्यक्रम के दौरान 1989 में, एक दशहरे के दौरान 2015 में, एक 2021 में ईद मिलाद-उन-नबी पर, और एक सितंबर 2021 में हुआ. उनमें से बहुत से लोग अब इससे तंग आ चुके हैं, और अपने पुश्तैनी घरों को बेंचकर कहीं और बस जाना चाहते हैं.

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उनके घर से 500 मीटर की दूरी पर पन्नालाल चंदोर का घर है. 11 लोगों का ये परिवार जिसमें चार बच्चे शामिल हैं, पांच दशकों से संजय नगर में रह रहा है. ज़मीन पर पड़ी हुई शिवलिंग की प्रतिमा उठाकर दिखाते हुए, कि किस तरह उनके पूजा स्थल को नष्ट किया गया, उन्होंने कहा, ‘मैंने चार दंगे देखे हैं- 1989, 2015 और पिछले साल सितंबर में. उन्होंने हमारे घर में सिलिंडर में धमाका कर दिया’.

पन्नालाल चंदोर जले हुए शिवलिंग को पकड़कर पूछते हैं कि उन्हें और कितने दंगे देखने पड़ेंगे। फोटो: बिस्मी तस्कीन | दिप्रिंट

संजय नगर में चंदोर समेत बहुत से लोगों ने लिख दिया है, ‘ये मकान बिकाऊ है’. ‘अब बहुत हो गया’. गणेश चौक के पास जमीदार मोहल्ले में दूसरे कई लोगों ने अपने घर बिक्री पर लगा दिए हैं.

खरगौन के अधिकतर दंगा-ग्रस्त इलाक़ों की गलियों में ईंटें, कांच और टाइल्स के टुकड़े झुलसी हुई चूड़ियां, अनाज, कपड़े, और जलाई हुई दुकानों तथा घरों के दूसरे अवशेष बिखरे पड़े हैं.

पुलिस ने बताया कि कम से कम 26 घर, एक दर्जन वाहन, कम से कम छह दुकानें, एक गोदाम, और कई धार्मिक-स्थलों में या तो तोड़फोड़ की गई या उनमें आग लगा दी गई. सांप्रदायिक टकराव में 30 लोग घायल हुए जिनमें टाउन इंस्पेक्टर बीआई मंडलोई, पूर्व पुलिस अधीक्षक सिद्धांत चौधरी, और 16 वर्षीय शिवम शुक्ला शामिल हैं.

हिंसा के इस मामले में अभी तक कुल मिलाकर 51 एफआईआर दर्ज की गईं हैं, और अभी तक 148 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं.

संजय नगर सबसे प्रभावित

दंगे में सबसे अधिक प्रभावित इलाक़े संजय नगर में, आइशा की सबसे नज़दीकी पड़ोसी अक़ीला बी ने अभी अपना घर बनाया था, जिसका निर्माण उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिले पैसे से किया था. उन्होंने भी दंगे में वैसे तो अपना सब कुछ खो दिया, लेकिन सबसे ज़रूरी चीज़ थे उस ज़मीन का पट्टा और उनके पति की पेशन के कागज़ात.

उन्होंने बताया, ‘सुबह क़रीब 7:00-7:30 बजे का वक़्त था. मेरा 22 साल का बेटा और मैं घर में अकेले थे. हमें कुछ समझ में नहीं आया कि क्या करें. हमने लाइटें बंद कर दीं और ख़ामोश लेट गए. उन सबके पास हथियार थे. फिर हमने घर बंद किया और भागकर पास की मस्जिद में चले गए’. अक़ीला बी अपनी विधवा बहू सलमा तीन पोते-पोतियों और एक बेटे के साथ रहती हैं, जिसकी इसी साल शादी होने वाली थी.

दंगा प्रभावित संजय नगर में जले नोट।। फोटो: बिस्मी तस्कीन | दिप्रिंट

भीड़ ने न केवल उनके घर को जला दिया, बल्कि उनके 2,00,000 रुपए भी लूटकर जला दिए, जो उन्होंने बेटे की शादी के लिए बचा रखे थे. गुज़र-बसर के लिए वो भीख मांगती हैं, और उनका बेटा एक मोबाइल भोजनालय चलाता है. सलमा, जिसने दो साल पहले अपने पति को खो दिया था, अब बेबसी से एक अंधेरे भविष्य की ओर देख रही है. अपने आंसू पोंछते हुए और अपने सबसे छोटे बच्चे को गोद में लिए वो कहती है, ‘हम इस सबसे कैसे उबरेंगे?’

पारू बाजपति ने, जो एक दिहाड़ी मज़दूर है और आइशा तथा अक़ीला दोनों की पड़ोसी है, कहा, ‘हम भाग गए थे बस इसीलिए ज़िंदा बच गए. अब इन सबको फिर से वापस किराए के घरों में रहना पड़ेगा’.


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जानवरों को भी नहीं छोड़ा

तावड़ी मोहल्ले में, दो भाई जो खारगौन पुलिस बल से रिटायर हुए हैं, अपनी जली हुई बाइक्स देख रहे हैं. रिटायर्ड पुलिस हेड कॉन्सटेबल बशीर अहमद (2015) और रिटायर्ड असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर नसीर अहमद (2020) ने बताया, कि दंगाई बाथरूम और मेन गेट से अंदर घुस आए थे.

नासिर ने कहा, ‘वो मेन गेट के ऊपर से कूदकर अंदर आए, हमारी संपत्ति को तबाह किया और हमारी बकरियों तक को नहीं छोड़ा. जब उनपर पेट्रोल बन फेंके गए, तो उनमें से तीन बकरियां तकलीफ से चिल्लाते हुए मर गईं’.

रेशमा, जो अपने मां-बाप के साथ मस्जिद कमेटी से किराए पर लिए घर में रहती है, ख़ाली कबर्ड दिखाती है. वो ख़ाली डब्बे हाथ में लिए है, और लॉकर का ताला खोलकर कहती है, ‘वो सारे गहने और पैसा लूटकर ले गए’.

रेशमा ने कहा,‘मैं नमाज़ पढ़ने ही जा रही थी, कि किसी ने मुझे बताया कि एक ख़ून की प्यासी भीड़ बाहर इंतज़ार कर रही है. मैं अपने भाई की तलाश में बाहर निकल गई, और पूरी रात आसरे की तलाश में एक से दूसरे मोहल्ले जाने में गुज़ार दी’. दंगाइयों ने उसकी दो बकरियों को मार डाला, जो उसकी आमदनी का अकेला ज़रिया थीं, और गैस सिलिंडर भी ले गए.

रेशमा की एक पड़ोसन राजकोर बाई, उन टूटी हुई टाइलों की तरफ इशारा करती है, जो उसने अपना नया घर बनाने के लिए ख़रीदी थीं. उसने बताया कि वो अपने पुराने घर में फंस गई, जहां से कुछ पुलिसकर्मियों ने उसे बचाकर निकाला. उसने बताया, ‘उन्होंने मेरा बेड तोड़ दिया और सारे पैसे ले गए- 70,000 रुपए’. वो अपने पांच बेटों और एक बेटी के साथ रहती है.

राजकोर ने कहा, ‘अब हम अपनी बाक़ी पूरी ज़िंदगी इस छोटे से घर में फंसे रहेंगे’. एक दूसरे घर की ओर इसारा करते हुए उसने कहा, ‘हनीफ भाई का भी बहुत नुक़सान हुआ है’. हनीफ ख़ान और उनके दो भाई अपने परिवारों के साथ एक साथ रहते हैं. उनके घर के टूटे हुए मुख्य दरवाज़े पर गिरी आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त एक घड़ी, अभी भी टिक-टिक कर रही है, जब हनीफ के पिता कल्लू ख़ान वहां पर कुछ क़ानूनी कागज़ात की तलाश में जूझ रहे हैं.

दंगाइयों को सज़ा देने में भेदभाव

ज़मीन पर, दिप्रिंट ने जब दंगा-प्रभावित लोगों से पूछा तो हर किसी ने एक ही बात कही, ‘हमें नहीं मालूम कि मास्क लगाए हुए वो लोग कौन थे’, या ‘वो ठग थे जो पेट्रोल बम और हथियार लिए हुए थे’.

राज्य सरकार ने दंगाइयों से नुक़सान की वसूली के लिए, मध्य प्रदेश लोक एवं निजी संपत्ति को नुकसान का निवारण एवं नुक़सानी की वसूली विधेयक, 2021 के अंतर्गत अपना पहला दो-सदस्यीय दावा ट्रिब्युनल स्थापित किया है.

हिंसा के तुरंत बाद ही खरगौन ज़िला प्रशासन ने एक डिमोलिशन मुहिम शुरू कर दी, और चुन-चुनकर उन इलाक़ों में गया जहां सबसे अधिक दंगा हुआ था और जहां ‘अवैध’ ढांचे मौजूद थे, संघर्ष में शामिल लोगों को सबक़ सिखाया जा सके.

खारगौन विधायक रवि जोशी ने ज़िला प्रशासन और पुलिस बल की आलोचना करते हुए कहा, ‘वो क़ानून व्यवस्था की स्थिति को संभाल नहीं सके’.

जोशी ने कहा, ‘उसकी बजाय वो दंगों के बाद कर्फ्यू क्षेत्र में घरों को लोड़ने में लग गए’. जोशी ने कहा कि शोभायात्रा के दौरान ही अतिरिक्त बल तैनात किया जाना चाहिए था’.

घटनाक्रम

रविवार की सुबह, जब रघुवंशी समाज की अगुवाई में रामन नवमी शोभायात्रा तलब चौक पहुंची, तो उन्होंने देखा कि सड़क पर बैरिकेड्स लगाकर उनके लिए जगह सीमित कर दी गई थी. रैली के एक आयोजक मनोज रघुवंशी ने दिप्रिंट को बताया, कि शोभायात्रा के सदस्यों और पुलिस के बीच इसे लेकर तीखी बहस हुई थी. तत्कालीन एसपी सिद्धार्थ चौधरी ने ऐसी किसी तकरार से इनकार किया.

बीजेपी ज़िला उपाध्यक्ष श्याम महाजन ने कहा, ‘हमने पुलिस से बैरिकेड्स हटाने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी, और हमसे बदसलूकी करने लगे. हमें मुड़ने के लिए जगह चाहिए थी- हमारा रूट हमेशा से यही रहा है’.

रघुवंशी के अनुसार, रैली के दौरान तो कोई घटना नहीं हुई, लेकिन इस तकरार के बाद अफवाह फैल गई कि पुलिस ने एक हिंदू यात्रा को वहां से गुज़रने नहीं दिया, चूंकि वो एक मुस्लिम इलाक़ा है. उन्होंने कहा, ‘अगर ऐसा न होता तो दंगे कभी न होते’.

बीएल मंडलोई ने कहा कि रैली में 2 बजे से 5 बजे तक की देरी हो गई. ‘पत्थरबाज़ी तलब चौक पर शुरू हुई. दोनों तरफ से पथराव शुरू हो गया और भीड़ हिंसक हो गई’. सिद्धार्थ चौधरी ने कहा कि भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया, लेकिन आधी रात तक स्थिति को क़ाबू में नहीं लाया जा सका.

कई चश्मदीदों ने बताया कि शुरू में रैली के लोगों से अनुरोध किया गया था, कि मस्जिद के सामने डीजे की आवाज़ को धीमा कर लें. तलब चौक पर एक भारी भीड़ भगवा झंडे लेकर जमा हो गई थी. कुछ ही देर में पत्थरबाज़ी शुरू हो गई, जो कुछ लोगों के मुताबिक़ मस्जिद के पीछे की कुछ छतों से हुई थी. उसके बाद तो खारगौन में खलबली मच गई. हिंसा खारगौन से 8 किमी. दूर कुकदोल गांव तक फैल गई, जहां मंगलवार को कुछ लोगों के एक समूह ने एक मुस्लिम परिवार की कथित तौर पर पिटाई की, और बलात्कार करने की धमकियां दीं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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