नई दिल्ली: हिंदी की वरिष्ठ कथाकार गीतांजलि श्री ने 26-27 मई की आधी रात को दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों में शामिल बुकर प्राइज मिलने के बाद कहा कि इसे पाकर वो विस्मित और विनम्र महसूस कर रही हैं. तो ‘विस्मित’ और ‘विनम्र’ दोनों ही शब्दों ने लोगों का ध्यान खींचा. श्री हिंदी की पहली लेखक हैं जिन्हें बुकर पुरस्कार मिला है.
बीते महीने 3 अप्रैल को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में गीतांजलि श्री की किताब रेत समाधि के अंग्रेज़ी अनुवाद ‘टूम ऑव सैंड ‘ के बुकर की लांग लिस्ट में शामिल होने पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें वरिष्ठ लेखिका सईदा हमीद ने किताब के एक अंश का जब पाठ किया तो उसने सभी को गीतांजलि श्री के लेखन की विलक्षण शैली से ‘विस्मित ‘कर दिया. वहीं इतने बड़े सम्मान की लिस्ट में आने के बाद भी श्री की ‘विनम्रता ‘ देखते ही बनती थी.
यही विनम्रता बीती रात भी देखने को मिली जब श्री ने बुकर पुरस्कार पाने के बाद अपने वक्तव्य में कहा, ‘ये मेरे लिए बिल्कुल अप्रत्याशित है. मैंने कभी बुकर का सपना नहीं देखा था और मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं यह पुरस्कार हासिल कर सकती हूं.’
‘यह बहुत बड़े स्तर की मान्यता है जिसको पाकर मैं विस्मित हूं. मैं प्रसन्न, सम्मानित और विनम्र महसूस कर रही हूं.’
श्री ने अपने व्यक्तव्य में कहा, ‘मुझसे कहा गया कि ये लंदन है और मैं हर बात के लिए तैयार रहूं. ये बारिश भी हो सकती है, ये बर्फ़ हो सकती है, यहां बादल भी हो सकते हैं, यहां सूरज भी हो सकता है, यहां बुकर भी हो सकता है. तैयारी से आना.’
मुझसे कहा गया कि ये लन्दन है और मैं हर बात के लिए तैयार रहूँ। ये बारिश भी हो सकती है, ये बर्फ़ हो सकती है, यहाँ बादल भी हो सकते हैं, यहाँ सूरज भी हो सकता है, यहाँ बुकर भी हो सकता है। तैयारी से आना।
-गीतांजलि श्री#GeetanjaliShree #2022InternationalBooker @thebookerprizes pic.twitter.com/Ri36CM67aD
— Rajkamal Prakashan ? (@RajkamalBooks) May 27, 2022
गीतांजलि श्री के अनुसार, ‘मैं एक भाषा और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हूं और यह मान्यता विशेष रूप से हिंदी साहित्य की पूरी दुनिया और समग्र रूप से भारतीय साहित्य को व्यापक दायरे में लाती है. यह इस तथ्य की तरफ भी ध्यान दिलाता है कि साहित्य की एक विशाल दुनिया है जिसे अभी भी खोजा जाना बाकी है.’
इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ अंग्रेजी में प्रकाशित (मूल या अनूदित) और ब्रिटेन या आयरलैंड में प्रकाशित कृति को ही दिया जाता है. ‘रेत-समाधि’ हिन्दी उपन्यास है, जिसके डेजी रॉकवेल द्वारा किए गए अंग्रेजी अनुवाद को इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ मिला है. मूल उपन्यास को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. राजकमल प्रकाशन के संपादक सत्यानंद निरुपम ने कहा कि यह हिंदी समाज की सामूहिक उपलब्धि और हिंदी किताबों की दुनिया का गौरवशाली क्षण है.
इस उपन्यास को गीतांजलि श्री ने हिंदी की मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती को समर्पित किया है.
सोबती के अनुसार, रेत समाधि का प्रतीक और आत्मिक भाषा विकास अनजाने में ही एक दूसरे की स्थापनाओं का आधार बनते हैं. लेखक और जेएनयू में प्रोफेसर रहे पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा था कि यह गाथा हमारी संवेदना को समृद्ध करती है. वहीं वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी ने कहा था, ‘गीतांजलि ने यथार्थ की आम धारणाओं को ध्वस्त किया है और एक अनूठा यथार्थ रचा है और हमारे आस-पास के यथार्थ से मिलता जुलता है और उसके सरहदों के पार भी जाता है.’
हिंदी जगत के लेखक, गीतांजलि श्री को बुकर पुरस्कार मिलने को भारतीय भाषाओं के लिए एक बड़ी परिघटना मान रहे हैं और कह रहे हैं कि आज हिंदी की असल सुबह हुई है वहीं स्त्री लेखन और अनुवाद के लिए भी ये सम्मान बड़ी उपलब्धि है.
निरुपम बताते हैं, ‘स्त्रियों का लेखन इस सदी में मुख्य स्वर होगा, क्योंकि उनके पास यथार्थ का अकथ कच्चा माल है और संवेदना की गहनता, वैचारिक तीक्ष्णता, साहस भी उनकी विशिष्टता है.’
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‘हिंदी की आज सुबह हुई है’
गीतांजलि श्री का जन्म 12 जून 1957 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुआ. उनकी प्रारंभिक शिक्षा यूपी के विभिन्न शहरों में हुई क्योंकि उनके पिता सिविल सर्वेंट थे. बाद में उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. किया.
रेत समाधि उनकी पहली किताब है जो यूके में प्रकाशित हुई है. गीतांजलि श्री के उपन्यास- ‘माई’, ‘हमारा शहर उस बरस’, ‘तिरोहित’, ‘खाली जगह’, ‘रेत-समाधि’ और चार कहानी-संग्रह ‘अनुगूंज’, ‘वैराग्य’, ‘प्रतिनिधि कहानियां’, ‘यहां हाथी रहते थे’ छप चुके हैं.
श्री के अंग्रेज़ी में एक शोध-ग्रंथ ‘बिटवीन टू वर्ल्ड्स: ऐन इंटेलेक्चुएल बायोग्राफी ऑफ प्रेमचंद ‘ समेत अनेक लेख प्रकाशित हुए हैं. इनकी रचनाओं के अनुवाद भारतीय और यूरोपीय भाषाओं में हुए हैं. वह थियेटर के लिए भी लिखती हैं. दिलचस्प है कि श्री को बॉलीवुड के पुराने गीतों को गाना और गुनगुनाना बेहद पसंद है.
श्री की पहली कहानी बेल पत्र 1987 में हिंदी की साहित्यिक पत्रिका हंस में छपी थी. उसके बाद 1991 में अनुगूंज नाम से छोटी कहानियों का संग्रह भी छपा लेकिन उनका उपन्यास माई ने उन्हें लोकप्रियता दिलाई.
दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी की प्रोफेसर और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अनामिका बताती हैं कि उत्तर भारत को केंद्र बनाकर माई में कस्बे की मां पर लिखा गया जिसमें तीन पीढ़ियों को दर्ज किया गया.
माई का अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, उर्दू समेत कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है लेकिन 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद श्री का दूसरा उपन्यास ‘हमारा शहर उस बरस’ छपा जिसे अनामिका डॉक्यू-नोवेल बताती हैं. उसके बाद उनका तीसरा उपन्यास तिरोहित छपा जिसमें स्त्री समलैंगिकता के विषय को संकेतों के जरिए दर्ज किया. अनामिका बताती हैं, ‘समलैंगिकता…किन उदासियों और किन संघर्षों के बीच दो पीढ़ी की स्त्रियां मिलती है….उसे गीतांजलि श्री ने तिरोहित में दर्ज किया.’
वहीं 2006 में श्री का चौथा उपन्यास खाली जगह छपा जिसका अंग्रेज़ी में अनुवाद निवेदिता मेनन ने किया है. इन उपन्यासों का फ्रेंच और जर्मन भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका है. श्री को वनमाली राष्ट्रीय पुरस्कार, कृष्ण बलदेव वैद पुरस्कार, कथा यू.के. सम्मान, हिंदी अकादमी साहित्यकार सम्मान और द्विजदेव सम्मान मिल चुका है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में प्राध्यापक और लेखक-अनुवादक प्रभात रंजन ने कहा कि गीतांजलि श्री को पुरस्कार मिलने से गंभीर साहित्य के प्रति रुझान बढ़ेगा और इससे पहले जो इसे खारिज कर दिया जा रहा था, उसमें बदलाव आएगा.
वे कहते हैं, ‘हिंदी की दोपहर, शाम और रात तो थी लेकिन हिंदी की असल सुबह आज हुई है.’
उन्होंने कहा, ‘हिंदी के लेखकों को लोकप्रिय लेखन से थोड़ी पहचान मिल सकती है लेकिन बड़ी अंतरराष्ट्रीय पहचान गंभीर साहित्य से ही मिलती है. बुकर सम्मान दिखाता है कि साहित्यिक भाषा की अंग्रेज़ी में स्वीकृति बढ़ी है. वहीं वे ये भी मानते हैं कि इससे हिंदी की दुनिया में कोई बड़ा बदलाव नहीं आएगा.’
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साइलेंस, भाषा की विलक्षणता और अनुवाद
रेत समाधि उपन्यास पाठकों के बीच शुरुआत से ही अलग तरह का प्रभाव बनाने लगता है. इसकी शुरुआती लाइन में ही लिखा गया है, ‘एक कहानी अपने आप को कहेगी. मुकम्मल कहानी होगी और अधूरी भी, जैसा कहानियों का चलन है. दिलचस्प कहानी है. उसमें सरहद है और औरतें, जो आती हैं, जाती हैं, आरम्पार. औरत और सरहद का साथ हो तो खुदबखुद कहानी बन जाती है.’
किताब में भाषा की अलग तरह की विलक्षणता दिखती है. इसकी अनुवादिका डेजी रॉकवेल ने तभी कहा था, ‘रेत समाधि एक जटिल और समृद्ध उपन्यास है जिसे बार-बार पढ़ने पर भी आश्चर्य और रोमांच गहराता है. मैं यह निस्संदेह कह सकती हूं क्योंकि अनुवाद करते करते मैंने खुद इसे बार-बार पढ़ा है. उसको पूरी तरह समझने मे देर लगती है इसलिए कि हमारे छोटे जलेबी–दिमाग यह काम अकेले में नहीं कर सकते हैं.’
प्रभात रंजन ने दिप्रिंट को बताया कि बंगाली और अंग्रेजी के लेखक अरुनावा सिन्हा ने डेजी रॉकवेल को अंग्रेज़ी प्रकाशक से मिलवाया था.
सत्यानंद निरुपम कहते हैं, ‘हिंदी किताबों के अनुवाद में अब अन्य भारतीय भाषाओं के प्रकाशकों की भी दिलचस्पी बढ़ेगी. अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दूसरी भाषाओं के अनुवादक, प्रकाशक का ध्यान खींचते हैं. यह एक बड़ा अवसर है, जब हिंदी किताबों की शो-केसिंग वैश्विक स्तर पर दमखम के साथ की जा सकती है.’
वे कहते हैं, ‘अनुवाद को भारत में हमेशा से गंभीरता से लिया जाता रहा है. सर्जनात्मक अनुवाद को प्रोत्साहित करने के लिए जो कुछ किया जाना चाहिए, वह अपर्याप्त तो है लेकिन उससे भी बड़ी दिक्कत यह है कि उसको लेकर समाज में, मीडिया में, कोई खास दिलचस्पी नहीं है.’
‘हिंदी में या कहीं भी अनुवाद को लेकर गंभीरता का दौर तब आएगा, जब शिकवा शिकायत से बाहर निकलकर, मिलजुलकर कुछ ठोस काम किया जाएगा.’
हालांकि अनामिका बताती है कि गीतांजलि श्री ने अपने लेखन के जरिए कई संकीर्णताओं को लांघा है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘श्री के लेखन का रेंज बहुत बड़ा है. रेत समाधि में बहुत सारे रूपकों के जरिए बात कही गई है, जहां दरवाजा, छोटा बच्चा, बूढ़ी औरत, हिजड़ा भी बात करता है. वहीं समाज के बहुत सारे उपेक्षित और वंचित लोगों की आवाज़े भी बात करती हैं.’
उन्होंने कहा कि रेत समाधि का अनुवाद आसान नहीं है क्योंकि हिंदी का छंद और ताल पकड़ना अंग्रेज़ी में आसान नहीं है. वो कहती हैं कि अंग्रेज़ी अनुवाद में बात छोटी जरूर हुई है लेकिन अनुवादक और मूल लेखिका के बीच एक बहनापा दिखाई पड़ा है.
अनामिका कहती हैं कि उत्तर औपनिवेशिक परिदृश्य में अनुवाद की बड़ी भूमिका होती है. उन्होंने कहा, ‘अनुवाद और स्त्री लेखन के लिए ये एक बड़ा क्षण है. अब बाहर के देश के लोग नई भाषाएं सीख रहे हैं और उसका अपनी भाषा में आदान-प्रदान कर रहे हैं.’
उन्होंने कहा कि हिंदी पट्टी के बहुत कम लोग हैं जो द्विभाषी हैं. सब अपनी भाषा पढ़ते हैं और उसी में लिखते हैं.
लेकिन प्रभात रंजन सवाल उठाते हैं कि भारत में अनुवाद को रचनात्मक कर्म की तरह क्यों नहीं किया जाता है और कहते हैं कि रेत समाधि के अनुवाद को अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिलने से अनुवाद के क्षेत्र को लेकर भी गंभीरता बढ़ेगी.
गीतांजलि श्री के लेखन शैली पर उन्होंने कहा, ‘उनके लेखन में साइलेंस और वाक्यों के बीच चुप्पियों का अलग ही महत्व है. हिंदी किताब में तो ये साफ तौर पर उभरकर आई हैं लेकिन अनुवादिका इसे नहीं पकड़ पाई लेकिन उन्होंने चुप्पियों को मुखर बना दिया.’
सत्यानंद निरुपम बताते हैं कि रेत समाधि की बनत और कहन की शैली उसे विशिष्ट बनाती है. उसमें भारतीय कथा परंपरा की गूंज है, भाषा का देशज संस्कार है तो लीक से बाहर चलने की ठसक है.
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‘एक उदास संतुष्टि’
गीतांजलि श्री को कई लेखकों ने प्रेरित किया है जिनमें निर्मल वर्मा, इंतिज़ार हुसैन, श्रीलाल शुक्ल, विनोद कुमार शुक्ल हैं. हिंदी के इतर कोएज़ी, फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की, हेमिंग्वे, गेब्रियल गार्सिया मार्केज, कुंदेरा आदि हैं. वो मानती हैं कि महाभारत ने उनकी जिंदगी बदली है क्योंकि उसमें हर तरह की हर तरीके से कह देने वाली कहानियां हैं.
गीतांजलि श्री ने पुरस्कार मिलने के बाद कहा कि बुकर पुरस्कार मिलने के बाद ये उपन्यास कई और लोगों तक जाएगा जो कि अन्यथा नहीं पहुंच पाता. उन्होंने कहा, ‘इसके पुरस्कृत होने में एक उदास संतुष्टि है. रेत-समाधि इस दुनिया की प्रशस्ति है जिसमें हम रहते हैं, एक विहंसती स्तुति जो आसन्न कयामत के सामने उम्मीद बनाए रखती है.’
बता दें कि रेत समाधि एक 80 साल की बूढ़ी दादी की कहानी है जो बिस्तर से उठना नहीं चाहती और जब उठती है तो नया बचपन, नई जवानी, सामाजिक वर्जनाओं-निषेधों से मुक्त, नए रिश्तों और नए तेवरों में पूर्ण स्वच्छंदता आ जाती है.
इस पुरस्कार की ज्यूरी में शामिल फ्रैंक वाईन ने कहा, ‘यह भारत और विभाजन का एक चमकदार उपन्यास है, लेकिन जिसकी मंत्रमुग्धता और उग्र करुणा यौवन और उम्र, पुरुष और महिला, परिवार और राष्ट्र को एक बहुरूपदर्शक में बुनती है.’
प्रभात रंजन कहते हैं, ‘रेत समाधि एक बड़े विजन की कहानी है जिसे पढ़कर आसानी से समझना मुश्किल है. इस किताब में विभाजन के बाद और उसके समाज का विजन है.’
श्री ने बुकर सम्मान पाने के बाद कहा, ‘जब से यह किताब बुकर की लांग लिस्ट में आई तब से हिंदी के बारे में पहली बार बहुत कुछ लिखा गया. मुझे अच्छा लगा कि मैं इसका माध्यम बनी लेकिन इसके साथ ही मैं इस बात पर जोर देना चाहती हूं कि मेरे और इस पुस्तक के पीछे हिंदी और अन्य दक्षिण एशियाई भाषाओं की अत्यंत समृद्ध साहित्यिक परंपरा है. इन भाषाओं के बेहतरीन लेखकों से परिचित होकर विश्व साहित्य समृद्ध होगा. इस तरह के परिचय से जीवन की शब्दावली बढ़ेगी.’
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