नई दिल्ली: रिजर्व बैंक के निदेशक एस. गुरुमूर्ति ने सोमवार को कर्जों के एकबारगी पुनर्गठन पर जोर देते हुये कहा कि इससे कोरोनावायरस महामारी के संकट से जूझ रहे व्यावसायिक जगत को बैंक और कर्ज दे सकेंगे.
स्वदेशी विचार धारा वाले गुरुमूर्ति ने रिजर्व बैंक द्वारा घाटे को नोट छापकर पूरा करने का पक्ष लिया है. उन्होंने कहा कि विदेशों से कोष लेने के बजाय यह बेहतर विकल्प होगा.
बैंकों ने 2004 से 2009 के बीच जरूरत से ज्यादा कर्ज दिया जिससे वह परेशानी में आये और अब बैंक कर्ज नहीं देकर अर्थव्यवस्था को परेशानी में डाल रहे हैं. उन्होंने इस समस्या के लिये गलत नियमों को जिम्मेदार ठहराया.
गुरुमूर्ति ने भारत प्रकाशन दिल्ली द्वारा ‘भारतीय अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण: चुनौतियां और अवसरों’ पर आयोजित वेबिनार में कहा कि बैंकों ने 11 लाख करोड़ रुपये की जमा में से कम से कम छह लाख करोड़ रुपये रिजर्व बैंक में रखे हैं.
यह भी पढ़ें: लॉकडाउन में छत्तीसगढ़ से 70 फीसदी स्किल्ड मजदूरों का हुआ पलायन, उद्योगों को लगेगा बड़ा झटका
उन्होंने कहा कि आज स्थिति यह है कि नियमों के हिसाब से 80 प्रतिशत कर्जदार और कर्ज लेने के पात्र नहीं है ऐसे में बैंक उन्हें कर्ज नहीं दे पा रहे हैं.
गुरुमूर्ति ने कहा, ‘बैंकों ने 2004 से 2009 के दौरान जरूरत से ज्यादा कर्ज दिया और अब वे कर्ज नहीं देकर समस्या में घिर रहे हैं. ऐसे समय जब अर्थव्यवस्था को धन की जरूरत है, बैंकों के पास पैसा है भी, लेकिन बैंक कर्ज नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि हम गलत विवेकपूर्ण नियमों का अनुसरण कर रहे हैं.’