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Wednesday, 9 July, 2025
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श्वास संक्रमण पर साल भर नजर रखने की जरूरत : अध्ययन

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(पायल बनर्जी)

नयी दिल्ली, नौ जुलाई (भाषा) भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के चेन्नई स्थित राष्ट्रीय महामारी विज्ञान संस्थान (एनआईई) के शोधकर्ताओं ने गंभीर तीव्र श्वास संक्रमण और इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारियों को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा करार देते हुए इनके संभावित उभार का पता लगाने के वास्ते साल भर एकीकृत निगरानी किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया है।

यह अध्ययन पिछले महीने ‘डिस्कवर हेल्थ सिस्टम्स’ पत्रिका में प्रकाशित सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी उस शोध के बाद आया है, जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि तमिलनाडु कैसे इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारी (आईएलआई) और गंभीर तीव्र श्वसन संक्रमण (एसएआरआई) के मामलों पर नजर रखता है और उन पर कार्रवाई करता है।

अध्ययन में पाया गया कि निगरानी के प्रयास केवल प्रकोप या विशिष्ट मौसम के दौरान ही बढ़ाए जाते हैं, जबकि श्वसन वायरस का प्रसार पूरे साल होता है। इसमें 2023 से 2024 तक तमिलनाडु के चार जिलों में रोग निगरानी प्रणालियों के कामकाज का मूल्यांकन किया गया।

अध्ययन में 85 स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं और 23 प्रयोगशालाओं के 370 से अधिक हितधारकों ने हिस्सा लिया। इसमें पाया गया कि तमिलनाडु ने श्वसन संबंधी बीमारी की निगरानी के लिए एक आधार तैयार किया है, लेकिन प्रणाली को अधिक सुसंगत, नियमित और उभरते सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों से निपटने में ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए और सुधार किए जाने की जरूरत है।

आईसीएमआर-एनआईई के अध्ययन दल का नेतृत्व करने वाले डॉ. रिजवान सुलियानकाची अब्दुलकादर ने कहा, ‘यह भारत में अपनी तरह का पहला अध्ययन है, जो सभी स्तरों पर रोग निगरानी को मजबूत करने के लिए साक्ष्य-आधारित सिफारिशें प्रदान करता है।’

तमिलनाडु सरकार के सार्वजनिक स्वास्थ्य और निवारक चिकित्सा निदेशक डॉ. टीएस सेल्वा विनायगम ने कहा, ‘तमिलनाडु ने स्वास्थ्य निगरानी की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है। यह रिपोर्ट सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए साल भर एकीकृत रोग निगरानी के महत्व पर बल देती है।’

शोधकर्ताओं के मुताबिक, अध्ययन में शामिल आधे से ज्यादा स्वास्थ्य केंद्रों में आईएलआई/एसएआरआई के मामलों की जानकारी दर्ज करने की व्यवस्था तो थी, लेकिन केवल 42 प्रतिशत ही नियमित रूप से परीक्षण के लिए नैदानिक ​​नमूने एकत्र करते थे।

शोधकर्ताओं के अनुसार, अध्ययन में यह भी पाया गया कि आईएलआई/एसएआरआई के मामलों की पहचान करने और जानकारी देने के लिए अपेक्षाकृत कम चिकित्सा कर्मियों को विशिष्ट प्रशिक्षण हासिल था।

डॉ. रिजवान ने कहा कि जांच सुविधाएं ज्यादातर बड़े अस्पतालों तक सीमित हैं और प्राथमिक एवं द्वितीयक देखभाल प्रतिष्ठानों में परीक्षण के लिए आवश्यक उपकरणों तथा संसाधनों की कमी है।

उन्होंने कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र एकीकृत स्वास्थ्य सूचना मंच (आईएचआईपी) का व्यापक रूप से इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इस प्रणाली को असंगत डेटा प्रविष्टि और निजी अस्पतालों एवं प्रयोगशालाओं की न्यूनतम भागीदारी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।

अध्ययन में कहा गया है कि तमिलनाडु में इन्फ्लूएंजा निगरानी एक मौसमी प्रक्रिया है।

इसमें कहा गया है, ‘बदलती पारिस्थितिक स्थितियों के साथ मामलों की साल भर निगरानी सुनिश्चित करने के प्रयास किए जाने चाहिए। इन्फ्लूएंजा की जांच को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और नये रोगजनकों की पहचान के लिए बुनियादी ढांचा एवं परीक्षण विकसित किया जाना चाहिए।’

श्वास संक्रमण रुग्णता और मौतों का एक बड़ा कारण हैं। अध्ययन के अनुसार, 2021 में एलआरआई से वैश्विक स्तर पर अनुमानित 21.8 करोड़ मौतें हुईं।

इसमें कहा गया है कि 2021 में इन्फ्लूएंजा वायरस के कारण 50 लाख से ज्यादा लोग अस्पतालों में भर्ती हुए। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी में 2021 में इन्फ्लूएंजा के कारण दुनियाभर में 98,200 मौतें होने का अनुमान जताया गया था।

इन्फ्लूएंजा के कारण दुनियाभर में होने वाली 36 प्रतिशत मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) में होती हैं। भारत में इन्फ्लूएंजा से संबंधित मृत्यु दर 65 साल और उससे अधिक आयु के वयस्कों और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में अधिक है।

भाषा पारुल माधव

माधव

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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