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Friday, 22 November, 2024
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कोविड संक्रमण और मृत्यु दर में साप्ताहिक उतार-चढ़ाव देखते हैं शोधकर्ता पर इसकी वजह पता नहीं

कई वैज्ञानिकों ने पाया है कि भौगोलिक परिस्थितियों का कोरोनोवायरस संक्रमण को लेकर थोड़ा असर होता है और मृत्यु दर पर साप्ताहिक आगे-पीछे होती है.

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नई दिल्ली: कोरोनोवायरस संक्रमण और मृत्यु दर के ऊपर और नीचे होने की अजीबोगरीब साप्ताहिक ट्रेंड ने शोधकर्ताओं को हैरत में डाल दिया है.

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की एक प्रोफेसर, सीएस उन्नीकृष्णन ने मेडआरएक्सिव (medRxiv) पर पोस्ट छपने से पूर्व एक पेपर में बताया है कि शुरुआती चरण के बाद कैसे नए कोरोनोवायरस के मामलों में तेजी से वृद्धि हुई, मामलों में तेजी का एक साप्ताहिक रुझान दिख रहा है जो कि मौजूदा महामारी विज्ञान की समझ के जरिए पर बताना मुश्किल है.

तीन दिन की औसत मौत की प्लाटिंग से पता चलता है कि ग्राफ हर हफ्ते बढ़ता और गिरता है. यह प्रवृत्ति विभिन्न देशों में एक जैसी बनी हुई है और उन क्षेत्रों में ज्यादा स्पष्ट है जहां मामलों और मौतों की संख्या ज्यादा है.

पेपर के अनुसार, इस साप्ताहिक मॉड्यूलेशन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इसकी वैश्विक प्रकृति है – साप्ताहिक नीचे और ऊपर होने की आवृत्ति दुनिया भर में भौगोलिक स्थिति के बिना भी, लगभग एक जैसी है.


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सी.एस. उन्नीकृष्णन के मुताबिक 3-दिन की औसत के हिसाब से संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, दक्षिण अमेरिका (ब्राजील), एशिया और अफ्रीका के साथ-साथ दुनिया भर में कुल मिलाकर, कोविड-19 महामारी से मौत की संख्या, साप्ताहिक तौर पर विश्व स्तर पर एक जैसी है.

अपवाद के तौर पर रूस और एशिया और अफ्रीका के कई देश हैं, जहां आबादी के सापेक्ष महामारी से होने वाली मौतों का पैमाना अब तक छोटा रहा है, उन्नीकृष्णन ने पेपर में लिखा है, जिसकी समान तौर पर समीक्षा नहीं की गई है.

उन्नीकृष्णन ने जिक्र किया है कि ऊपर और नीचे होने में 30 प्रतिशत तक इजाफा होता है, जो काफी अहम है.

उन्होंने कहा है कि हालांकि, किसी भी तरह के वायरस के साथ कुछ भी ट्रेंड हो सकता है या वायरस के मानव में वायरस को लेकर जवाब केवल उन लोगों द्वारा दिया जा सकता है जो जैविक और चिकित्सा पहलुओं पर अध्ययन कर रहे हैं.

अन्य शोधकर्ताओं द्वारा देखा गया एक ट्रेंड

भौतिकी विशेषज्ञ के रूप में, उन्नीकृष्णन इस प्रवृत्ति के पीछे के कारणों पर अटकलबाजी करना नहीं चाहते हैं.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं सिर्फ इसे ठीक से इंगित करना चाहता था कि अगर यह दूसरों को लिए उपयोगी हो.’

हालांकि, टीआईएफआर के शोधकर्ता इस प्रवृत्ति को इंगित करने वाले पहले शख्स नहीं हैं.

इज़राइल की तेल अवीव विश्वविद्यालय की एक टीम की भी मई में छपने से पूर्व एक पोस्ट ने इसी तरह का रुझान बताया था. उन्होंने कोविड-19 संक्रमण और मृत्यु दर में सात दिनों का चक्र भी पाया था.

इसी तरह, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी एंड एप्लाइड जियोफिजिक्स के एक शोधकर्ता ने इस चक्रीय ट्रेंड को इंगित किया था, जिसमें संक्रमण और मृत्यु दर हर सात दिनों में एक बार चरम पर होती है.

जॉन्स हॉपकिन्स में महामारी विज्ञान के एक एसोसिएट प्रोफेसर, डेविड डब्ल्यू डाउडी ने उन्नीकृष्णन के पेपर पर टिप्पणी करते हुए दिप्रिंट को बताया, ‘इस समय चक्र के बारे में मेरा दृढ़ विश्वास है कि यह रिपोर्टिंग पैटर्न को दर्शाता है, जिसमें ये रिपोर्टिंग एजेंसियां ​​वीकेंड में काम नहीं करती हैं और फिर सोमवार को भरने के लिए एक बैकलॉग होता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इसका वायरस से कोई लेना-देना नहीं है, यह केवल इस बात का एक प्रमाण है कि कैसे डेटा को सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा रिपोर्ट किया जाता है और यह तथ्य कि दुनिया भर में लोग वीकेंड पर छुट्टी लेते हैं.’

इजरायल के शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि सप्ताह के अंत में ‘अंतर-सामाजिक संबंधों में वृद्धि’ होती है, जो कोविड-19 के युवा लोगों से बुजुर्ग, कमजोर व्यक्तियों में जाने का कारण बनता है.


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शोधकर्ताओं ने लिखा, ‘ये अतिरिक्त संक्रमित बूढ़े लोग सर्वाधिक कोविड-19 मामलों और मौतों के लिए जिम्मेदार बनते हैं, जो नियमित तौर पर एक समय अंतराल पर घटित होता है, विशेष रूप से इस अतिसंवेदनशील या कमजोर आबादी में.’

एक प्रमुख महामारी विज्ञानी टी. जैकब जॉन ने दिप्रिंट को बताया कि भौगोलिक दृष्टि से यह स्पष्ट समरूपता ‘आश्चर्यजनक” है, लेकिन वह इसे समझाने के लिए किसी भी जैविक कारक के बारे में नहीं सोच पाए. जॉन पूर्व में इंडियन रिसर्च काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च सेंटर फॉर एडवांस्ड रिसर्च इन वायरोलॉजी के प्रमुख थे.

उन्नीकृष्णन ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि कोरोनोवायरस पर शोध करने वाले महामारी विज्ञानियों को आगे के शोध के माध्यम से इस वैश्विक प्रवृत्ति की व्याख्या करने में मदद मिलेगी.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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