नई दिल्ली: लोकप्रिय प्रोफेशनल कुश्ती से काफी समय पहले जब इसकी पहुंच करोड़ों लोगों तक नहीं थी, जब दि ग्रेट खली और जिन्दर महल मात्र भारत की आखिरी आशा नहीं थे, भारत के पास पहले से ही एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में दारा सिंह रंधावा नाम का होनहार खिलाड़ी शामिल था.
दारा सिंह रंधावा, कुश्ती का वो खिलाड़ी, जिसने अखाड़े से लेकर रेसलिंग के रिंग तक के अपने सफर में दुनिया भर के करोड़ों लोगों की खूब वाहवाही बटोरी. उन्होंने फ़िल्मी दुनिया में भी अपना नाम कमाया और साथ ही साथ राजनीति में भी अपने पैर रखने से न चूके.
एक पहलवान
दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 में अमृतसर के धर्मुचक्क नाम के गांव में एक जट-सिख परिवार में हुआ था. उनका परिवार मूल रूप से खेतिहर पृष्ठभूमि का ही था.
बहुत ही कम उम्र में सिंह को उनके परिवार ने स्कूल से निकलवाकर खेतों में काम करने के लिए लगा दिया. बचपन में ही उनकी शादी उनसे उम्र में बड़ी बचनो कौर से करवा दी गयी जिनको सिंह ने बाद में तलाक़ दिया और 1961 में सुरजीत कौर से शादी रचाई.
दारा सिंह 1947 में सिंगापुर गए जहां उन्होंने एक ड्रम निर्माण करने वाली मिल में छोटी मोती नौकरी की. सिंगापुर में ही वे हरनाम सिंह से मिले जो उनके गुरु बने और 6 फुट 2 इंच लंबे दारा सिंह को रेसलिंग की दुनिया में ले भी आए.
1954 में सिंह ने टाइगर जोगिन्दर सिंह को हरा कर रुस्तम-ए-हिंद का ख़िताब जीता. उन्होंने 1959 के राष्ट्रमंडल खेलों की चैंपियनशिप भी जीती.
इसके बाद दारा सिंह प्रोफेशनल रेसलिंग में आ गए. अपनी लगभग 500 लड़ाइयों में दारा सिंह ने कई चैंपियनशिप जीतीं. सिंह ने कई मशहूर अंतरराष्ट्रीय पहलवानों को पटखनी दी जिनमें ऑस्ट्रेलिया के विख्यात रेसलर किंग कांग और 1956 के वर्ल्ड चैंपियन अमरीकी रेसलर लू थेज का नाम भी शामिल है. 1983 में सिंह ने रेसलिंग से अपनी रिटायरमेंट घोषित कर दी.
2012 में दिल के दौरे से मरने के छह साल बाद 2018 में ही वर्ल्ड रेसलिंग एंटरटेनमेंट ने दारा सिंह को अपने हॉल ऑफ़ फेम में जगह दी.
भारत के ‘ही-मैन’
दारा सिंह का मज़बूत शरीर उनको भारत का ‘पहला एक्शन हीरो’ और देश का पहला ‘ही-मैन’ बनाने में बहुत काम आया. दिलीप कुमार और मधुबाला की स्टार कास्ट वाली फिल्म संगदिल में सपोर्टिंग रोल से एक्टिंग शुरू करने के बाद दारा सिंह खुद ही फिल्मों की एक श्रेणी बन गए. ऐसी फिल्मों की शुरुआत उन्होंने 1962 में किंग कांग से की जिसको वे कथित तौर पर जबरदस्ती की गयी फिल्म बुलाते थे.
अपने पेशे की शुरुआत के लगभग दो दशकों तक दारा सिंह एक्शन हीरो के रोल में ही लीड पर छाए रहे. रुस्तम-ए-बगदाद(1963), फौलाद(1963), हर्क्युलेस (1964), सिकंदर-ए-आज़म(1965) और रुस्तम-ए-हिन्द (1965) कुछ उदाहरण हैं.
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की कई सारी बी-ग्रेड फिल्मों में काम करने के बाद दारा सिंह ने 1970 में कुछ हटकर करने की चाहत में फिल्म नानक दुख्या सब संसार का निर्देशन किया और एक्टिंग भी की जो 1947 के बाद के बंटवारे के बाद हुई त्रासदियों पर आधारित थी.
सिंह ने कई टीवी शो, जिसमें हद कर दी आपने और क्या होगा निम्मो का शामिल हैं, में भी काम किया. लेकिन उनको 1987-88 के रामानंद सागर के मशहूर शो रामायण में हनुमान का किरदार निभाने के लिए सबसे ज़्यादा प्रसिद्धि हासिल हुई.
सिंह ने कई बॉलीवुड फिल्मों में स्पेशल किरदार भी निभाया. उनके सब-रोल में सबसे महत्त्वपूर्ण राज कपूर की मेरा नाम जोकर (1970) रही. इसके अलावा उन्होंने अजूबा(1991), दिल्लगी(1999) और कल हो न हो (2003) में भी स्पेशल किरदार निभाया. 2006 की ब्लॉकबस्टर जब वी मेट उनकी आखिरी बॉलीवुड मूवी थी जिसमें उन्होंने करीना कपूर के दादा होने का किरदार निभाया.
राजनेता
हालांकि दारा सिंह ज़्यादातर तो एक रेसलर व अभिनेता ही थे लेकिन उन्होंने राजनीति में भी काम किया भले ही ज़्यादा नहीं. सिंह 1998 में भाजपा में शामिल हुए. 2003 में वे खेल श्रेणी से राज्य सभा के पहले चुने गए सांसद थे. 2009 तक वे राज्य सभा के सांसद रहे. अखिल भारतीय जाट समाज और बॉम्बे जाट समाज में उन्होंने बतौर अध्यक्ष काम भी किया.