कोझिकोड (केरल), 20 अगस्त (भाषा) प्रमुख सुन्नी नेता नासर फैजी कूडाथाई ने केरल विधानसभा के अध्यक्ष एएन शमशीर की टिप्पणी के लिए बुधवार को उनकी आलोचना की। शमशीर ने स्कूल का समय बदलने के मामले में धर्मगुरुओं से उनके रुख पर पुनर्विचार करने को कहा था।
मंगलवार को कन्नूर में एक कार्यक्रम में बोलते हुए शमशीर ने स्कूलों के समय के संदर्भ में बदलते दौर के साथ तालमेल बैठाने की आवश्यकता जताई और धर्मगुरुओं तथा विद्वानों से इस मामले में उनके कठोर रुख पर पुनर्विचार करने को कहा था।
एक टीवी चैनल से बातचीत में, समस्त केरल जमीयत उल-उलमा के प्रमुख नेता कूडाथाई ने आशंका जताई कि क्या उनकी (शमशीर की) टिप्पणियां जानबूझकर की गई हैं और क्या यह उस एजेंडे का हिस्सा हैं, जिसमें वामपंथी सरकार पहले ही शांत हो चुके पुराने मुद्दे को फिर से सुर्खियों में लाना चाहती है।
समस्त केरल जमीयत उल-उलमा सुन्नी विद्वानों का एक प्रभावशाली मुस्लिम संगठन है, जिसे केरल के मुस्लिम समुदाय का बड़े पैमाने पर समर्थन हासिल है।
सरकारी स्कूलों के समय में इस शैक्षणिक सत्र में 30 मिनट की बढ़ोतरी के फैसले के खिलाफ संगठन ने कड़ी आपत्ति जताई थी। स्कूलों के समय में यह वृद्धि न्यायालय के एक फैसले के अनुसार की गई है।
कूडाथाई ने कहा कि उन्होंने सरकार के इस फैसले के खिलाफ अपना आंदोलन बंद नहीं किया है। वे इस मुद्दे पर सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं करना चाहते, क्योंकि समस्त का शीर्ष नेतृत्व इस बारे में निर्णय करने के लिए अंतिम प्राधिकार है।
उन्होंने आरोप लगाया कि स्कूल के समय में बदलाव के खिलाफ उनके आंदोलन को जानबूझकर सांप्रदायिक रंग दिया गया और सरकार को इसमें भूमिका निभाने का दोषी ठहराया।
कूडाथाई ने कहा कि समस्त ने समाज में किसी भी सांप्रदायिक विभाजन से बचने के लिए सार्वजनिक आंदोलन का फैसला वापस ले लिया।
उन्होंने आरोप लगाया, “लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने इस विषय को फिर से उठाया है। निहित स्वार्थों की वजह से यह कदम उठाया गया था।”
कूडाथाई ने आशंका जताई कि सरकार के एजेंडे के तहत विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से यह टिप्पणियां की गईं।
राज्य के शिक्षा मंत्री वी शिवनकुट्टी ने हाल ही में दोहराया कि स्कूल के समय को किसी विशेष समुदाय के अनुरूप बदला नहीं जा सकता, क्योंकि सरकार को लाखों छात्रों के हितों पर ध्यान देना होगा।
मंत्री ने यह भी कहा कि स्कूल के समय को 30 मिनट बढ़ाने का निर्णय केरल उच्च न्यायालय के निर्देशों के आधार पर लिया गया था, इसलिए जो कोई भी इससे असंतुष्ट है, वह कानूनी विकल्प आजमा सकता है।
भाषा प्रशांत पारुल
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