नई दिल्ली: बैंक को धोखा देने के गलत इरादे से आपराधिक साज़िश, सैकड़ों करोड़ रुपये के लोन फंड का गलत इस्तेमाल और बाद में सिस्टर कंसर्न के ज़रिए उन्हें दूसरी जगह भेजना, आपराधिक विश्वासघात—ये सभी आरोप यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने बिजनेसमैन अनिल अंबानी के बेटे जय अनमोल पर लगाए हैं.
सीबीआई ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की शिकायत के आधार पर रिलायंस होम फाइनेंस से जुड़ी कथित 228 करोड़ रुपये की बैंक धोखाधड़ी मामले में जय अनमोल के खिलाफ केस दर्ज किया है. जय अनमोल इस हाउसिंग फाइनेंस फर्म के प्रमोटर-डायरेक्टर थे, जिसे कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया में भेजा गया है.
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने पिछले महीने सीबीआई की बैंकिंग सिक्योरिटी एंड फ्रॉड शाखा को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी थी, जिसमें रिलायंस होम फाइनेंस द्वारा कर्ज राशि के कथित दुरुपयोग की जानकारी दी गई थी. यही शिकायत सीबीआई की दर्ज एफआईआर का हिस्सा है.
मंगलवार को सीबीआई ने जय अनमोल और कंपनी के पूर्व सीईओ व पूर्णकालिक निदेशक रविंद्र शरद सुधारकर के घरों पर छापेमारी की. यह कार्रवाई एजेंसी द्वारा उन्हें और अज्ञात सरकारी कर्मचारियों को पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) और 120-बी (आपराधिक साजिश), तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत बुक करने के कुछ दिन बाद की गई.
एजेंसी ने रिलायंस कमर्शियल फाइनेंस, इसके दो निदेशकों देवांग प्रवीन मोदी और रविंद्र सोमयाजुला राव, और अज्ञात सरकारी कर्मचारियों को भी बैंक ऑफ महाराष्ट्र को 57.47 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने के आरोप में बुक किया है. रिलायंस कमर्शियल फाइनेंस पहले ही दिवाला प्रक्रिया से गुजर चुकी है.
दोनों फर्में पहले अनिल अंबानी के नेतृत्व वाले रिलायंस समूह का हिस्सा थीं.
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने पिछले साल अक्टूबर में रिलायंस होम फाइनेंस के खाते को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास धोखाधड़ी के रूप में रिपोर्ट किया था, जबकि बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने इस अक्टूबर में रिलायंस कमर्शियल फाइनेंस के खाते को धोखाधड़ी करार दिया.
दिप्रिंट ने इस मामले पर प्रतिक्रिया के लिए रिलायंस समूह के प्रवक्ता से संपर्क किया है. जवाब मिलने पर रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.
‘साफ है कि उन्होंने आपराधिक साजिश रची’
जून 2008 में एक हाउसिंग फाइनेंस कंपनी के रूप में शुरू हुई रिलायंस होम फाइनेंस ने बाद में अपनी वित्तीय स्थिति और प्रोजेक्शन दिखाकर आंध्रा बैंक की मुंबई शाखा से वित्तीय सहायता मांगी. अप्रैल 2020 में आंध्रा बैंक का विलय यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में हो गया.
कंपनी की प्रस्तुति और प्रोजेक्शन के आधार पर, आंध्रा बैंक ने तीन चरणों में कुल 450 करोड़ रुपये की क्रेडिट सीमा मंजूर की. जनवरी 2015 में 200 करोड़ रुपये, उसके बाद मई 2015 में 150 करोड़ और 100 करोड़ रुपये, जैसा कि बैंक की शिकायत में कहा गया है.
अपने शिकायत पत्र में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने कहा कि क्रेडिट सुविधा कड़े नियमों पर दी गई थी, जैसे वित्तीय अनुशासन बनाए रखना, समय पर पुनर्भुगतान, ब्याज और अन्य शुल्कों का भुगतान, सुरक्षा की स्थिति और अन्य आवश्यक कागज समय पर जमा करना, समेत बिक्री की राशि बैंक खाते के जरिए भेजना.
बैंक ने कंपनी के 100 करोड़ रुपये के नॉन-कन्वर्टिबल डिबेंचर (एनसीडी) भी खरीदे थे, जो कंपनी द्वारा दिए गए भरोसे पर आधारित थे. एनसीडी वह साधन है जिसके जरिए कंपनियां बिना हिस्सेदारी घटाए पैसा जुटाती हैं.
हालांकि, सितंबर 2019 में बैंक ने रिलायंस होम फाइनेंस के खाते को एनपीए घोषित कर दिया. इसके बाद अप्रैल 2016 से जून 2019 तक की अवधि के लिए फोरेंसिक ऑडिट के लिए ग्रांट थॉर्नटन को नियुक्त किया गया.
मई 2020 में सौंपी गई ऑडिट रिपोर्ट में कर्ज राशि के बड़े पैमाने पर डायवर्जन का खुलासा हुआ. ऑडिट में पता चला कि समीक्षा अवधि में कंपनी की कुल लोन बुक का लगभग 48 फीसदी हिस्सा कॉर्पोरेट लोन था, जबकि यह एक हाउसिंग फाइनेंस कंपनी है. कंपनी ने 12,573 करोड़ रुपये के कॉर्पोरेट लोन मंजूर किए, जिनमें से 86 फीसदी बहन कंपनियों को दिए गए थे, वह भी उनकी पुनर्भुगतान क्षमता और अन्य मापदंडों का ध्यान रखे बिना.
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि लगभग 3,573 करोड़ रुपये समूह कंपनियों के कर्ज, एनसीडी और कमर्शियल पेपर्स की अदायगी में इस्तेमाल किए गए. फर्म ने कथित रूप से 1,334.64 करोड़ रुपये बैंक भुगतान में डायवर्ट किए, जबकि 2,238.42 करोड़ रुपये तीसरे पक्षों और गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों को भुगतान में इस्तेमाल हुए.
लगभग 18 फीसदी राशि (1,610 करोड़ रुपये) कथित रूप से सर्कुलर लेनदेन के जरिए वापस कंपनी में लाई गई. करीब 9 फीसदी धन, यानी 819.10 करोड़ रुपये, फिक्स्ड डिपॉजिट, ऑटो स्वीप और म्यूचुअल फंड में लगाए गए.
ऑडिटर्स लगभग 22 फीसदी राशि (1,934.88 करोड़ रुपये) के पूरे उपयोग का पता नहीं लगा सके, क्योंकि पर्याप्त जानकारी नहीं थी.
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी शिकायत में कहा है, “चूंकि उधारकर्ता कंपनी के पूर्व प्रमोटर/निदेशक 1) श्री जय अनमोल अनिल अंबानी और 2) श्री रविंद्र शरद सुधारकर संबंधित अवधि में कंपनी के दैनिक कार्यों और व्यावसायिक फैसलों के लिए जिम्मेदार थे, यह स्पष्ट है कि उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर आपराधिक साजिश रची और कर्जदाताओं को धोखा देने की नीयत से कर्ज राशि का गलत उपयोग किया, धन को बहन/सहयोगी कंपनियों के जरिए डायवर्ट किया, धन का दुरुपयोग किया और आपराधिक विश्वासघात किया.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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