नई दिल्ली: नाजीश मलिक, गंगा राम और मोहम्मद चांद के लिए रात बहुत लंबी हो गई है.
तीनों दिल्ली के लोक नायक जय प्रकाश (एलएनजेपी) अस्पताल के बाहर घंटों से इंतज़ार कर रहे हैं. उनके अपने, जो सोमवार शाम लाल किले के पास हुए धमाके के बाद से लापता हैं, उनकी कोई खबर नहीं है. यह धमाका पूरे शहर में दहशत फैला गया.
तीनों के मन में उलझन और दर्द है. अंदर से उन्हें सबसे बुरा होने का डर है.
कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई और कई लोग जलने की चोटों के साथ घायल हुए. माना जा रहा है कि धमाका एक सफेद हुंडई i20 में हुआ, जब वह लाल किला मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर 1 के पास रेड लाइट से गुज़र रही थी.
नाजीश अपने जीजा को ढूंढते-ढूंढते थक चुकी हैं. उनका फोन पुलिस को धमाके वाली जगह पर मिला.
उन्होंने कहा, “पहले मैं लाल किला गई, फिर यहां एलएनजेपी आई, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल रहा. यह ठीक नहीं है. उन्हें (अधिकारियों को) हमें जानकारी देनी चाहिए.” उनके चेहरे पर थकान और गुस्सा साफ दिख रहा है.
उनकी तरह और भी कई लोग अस्पताल में बिना जानकारी के इधर-उधर भटक रहे हैं, जहां घायलों को इलाज के लिए लाया गया था.
छोले-कुलचे का ठेला लगाने वाले 39 साल के गंगा राम, अपने भाई सुभाष को लगातार फोन कर रहे हैं, लेकिन फोन नहीं लग रहा. उन्होंने चांदनी चौक की सड़कों में भी ढूंढा, पर कोई फायदा नहीं. वक्त बीत रहा है और चिंता बढ़ती जा रही है.
उन्होंने कहा, “मुझे अभी तक कोई जानकारी नहीं मिली. पुलिस मुझे मौके पर भी नहीं जाने दे रही. न ही बता रही है कि वह कहां है. हमारा परिवार बहुत सदमे में है.”
गंगा राम इसलिए बच गए क्योंकि वह फोन करने गए थे. वह अपने ठेले से सिर्फ 20 मीटर ही दूर गए थे कि अचानक तेज़ धमाका हुआ और लोग इधर-उधर भागने लगे. वह तुरंत अपने भाई को खोजने लगे, लेकिन वह उन्हें नहीं मिला.
उन्होंने कहा, “समझ ही नहीं आया क्या हुआ. बस तेज़ आवाज़ आई. मैं बस अपने छोटे भाई को फोन करता रहा, उसका ठेला मेरे ठेले के बिल्कुल बगल में लगता है.”
नाजीश बताती हैं कि जब उन्होंने अपने जीजा का फोन मिलाया तो पुलिसवाले ने उठाया. उन्होंने कहा, “वह बैटरी रिक्शा चलाते हैं. जब धमाके की खबर मिली, हमने फोन मिलाना शुरू किया यह जानने के लिए कि वे ठीक हैं या नहीं. पुलिस ने फोन उठाया और बताया कि फोन उनके पास है. मुझे नहीं पता वो अंदर हैं भी या नहीं. ज़िंदा हैं या नहीं. हम दबाव भी नहीं डाल पा रहे क्योंकि अगर वह ज़िंदा हैं तो इलाज में रुकावट नहीं चाहते.”
समय बीतता जाता है और परिवारों की बेचैनी बढ़ती जाती है. कई लोग अस्पताल के गेट पीटने रहे हैं.
दिनेश मिश्रा चिल्लाते हैं, “सरकार कुछ बोलेगी? कोई क्यों नहीं बता रहा कुछ? मैं नांगलोई से आया हूं अपने भाई को ढूंढने. मुझे उसकी खबर चाहिए. गेट खोलो!”
मोहम्मद चांद, 30, मोर्चरी (शवगृह) के बाहर चक्कर लगा रहे हैं. वह अपने भाई मोहम्मद जुननम की खबर का इंतज़ार कर रहे हैं, जो चांदनी चौक में ई-रिक्शा चलाते थे.
उन्होंने कहा, “जैसे ही पता चला, मैं सीधे सुनहरी मस्जिद की तरफ भागा. मैं मोर्चरी भी गया, पर किसी ने कुछ नहीं बताया. अब पुलिस से बहुत लड़ने के बाद मैंने अपनी पत्नी को इमरजेंसी में भेजा है ताकि वह चेहरा देखकर पहचान सके. बस हमें यही जानना है कि वह ज़िंदा हैं या नहीं…”
चांद को यह खबर तब मिली जब जुननम की पत्नी ने फोन कर उनसे अपने पति की खबर लेने को कहा. “उन्होंने कहा कि जाकर देखो, वह ठीक है या नहीं, ज़िंदा है या नहीं…”
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