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Saturday, 2 November, 2024
होमदेशकोविड-19 से ठीक होने की दर 13.06 से 25.19 फीसदी हुई, मृतकों में 65 प्रतिशत पुरुष और 78% जिन्हें पहले से बीमारी थी

कोविड-19 से ठीक होने की दर 13.06 से 25.19 फीसदी हुई, मृतकों में 65 प्रतिशत पुरुष और 78% जिन्हें पहले से बीमारी थी

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि प्रोटोकॉल के हिसाब से आरटीपी-सीआर किट ही इस्तेमाल करना हैं. रेमडेसिवीर पर आए ताज़ा अध्ययन के बाद और व्यापक डेटा का इंतज़ार है.

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नई दिल्ली: लॉकडाउन से हुए संभावित फ़ायदे अब नज़र आ रहे हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा पेश किए गए ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक भारत में कोविड-19 के मरीज़ों का रिकवरी रेट यानी ठीक होने की दर पहले से काफ़ी बेहतर हुई है. कई राज्यों में डबलिंग रेट यानी मामलों के दोगुना होना की दर 40 दिनों से ऊपर हो गई है.

एक और बड़ी बात ये है कि जिन मरीज़ों को अपनी जानें गंवानी पड़ रही हैं उनमें से 78 प्रतिशत कोमॉर्बिड कंडीशन वाले हैं. कोमॉर्बिड कंडीशन को ऐसे समझा जा सकता है कि अगर किसी मरीज़ को पहले से कैंसर, किडनी, फेंफड़े या दिल से जुड़ी बड़ी बीमारी हो और उसे कोविड-19 हो जाए तो उसकी जान जाने की आशंका ज़्यादा रहती है.

स्वास्थ्य मंत्रालय के उपसचिव लव अग्रवाल ने कहा कि देश में कोविड-19 से ठीक होने वाले मरीजों की दर बढ़कर 25.19 प्रतिशत हो गई है. अग्रवाल ने कहा कि 14 दिनों पहले रिकवरी रेट 13.06 प्रतिशत थी. ऐसे में इसके 25 प्रतिशत से ज़्यादा होने को उन्होंने बड़ी उपलब्धि करार दिया.

उन्होंने कहा, ‘पिछले 24 घंटों में कुल 1718 मामले सामने आए हैं जिससे कुल मामलों की संख्या बढ़कर 33050 हो गई है. पिछले 24 घंटे में 630 लोग ठीक हुए हैं जिससे कुल ठीक होने वाली की संख्या 80324 हो गई है.’ उन्होंने कहा की राष्ट्रीय स्तर पर फेटेलिटी रेट यानी मरने वालों की दर 3.2 प्रतिशत है जिसमें 65 प्रतिशत पुरुष और 35 प्रतिशत महिलाएं हैं.

60 से ऊपर वालों में फेटिलिटी रेट 50 प्रतिशत से ज़्यादा की है. अग्रवाल ने फेटलिटी रेट पर विस्तारे से जानकारी देते हुए कहा, ’45 से कम उम्र वालों में फेटेलिटी रेट 14 प्रतिशत से कम की है. 45-60 में ये 34.08 प्रतिशत, 60-70 की उम्र वालों में 42 प्रतिशत और 75 से ऊपर 9.2 प्रतिशत है.’ इससे साफ़ है कि मृतकों के मामले में भारत में भी वही हाल है जो पूरे विश्व में है और सबसे ज़्यादा ख़तरा उम्रदराज़ लोगों को है.

अग्रवाल ने बताया कि कई राज्यों की डबलिंग रेट राष्ट्रीय औसत से बेहतर है. जिन राज्यों का औसत 11 से 20 दिन का है उनमें दिल्ली (11.3 दिन), उत्तर प्रदेश (12 दिन), जम्मू-कश्मीर (12.2 दिन), ओडिशा (13 दिन), राजस्थान (17.8 Days), तमिलनाडु (19.1 दिन) और पंजाब (19.5 दिन) शामिल हैं.

20 से 40 दिन के डबलिंग रेट वाले राज्यों में कर्नाटक (21.6 दिन), लद्दाख़ (24.2 दिन), हरियाणा (24.4 दिन) उत्तराखंड (30.3 दिन) और केरल (37.5 दिन) शामिल हैं. वहीं, 40 दिनों से ऊपर के डबलिंग रेट वाले राज्यों में असम (59 दिन), तेलंगाना (70.8 दिन), छत्तीसगढ़ (89.7 दिन) और हिमाचल प्रदेश (191.6 दिन) शामिल हैं.

टेस्टिंग और दवा से जुड़े सवालों के जवाब में अग्रवाल ने कहा कि रैपिड टेस्टिंग किट की बेहद सीमित भूमिका है और प्रोटोकॉल के हिसाब से आरटी-पीसीआर किट ही इस्तेमाल करना है. वहीं, रेमडेसिवीर पर आए ताज़ा अध्ययन के बारे में कहा कि उन्हें इस पर और व्यापक डेटा और जानकारी का इंतज़ार है.

लगातार ऐसी शिकायतें आ रही हैं कि गैर कोविड मरीज़ों को अहम सेवाएं ठीक से नहीं मिल पा रहीं. इसी पर बोलते हुए अग्रवाल ने कहा कि गैर कोविड सेवाओं में कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए उन्होंने कहा कि मैटरनल चाइल्ड केयर, टीबी, डेंगी, कैंसर, डायलिसिस जैसी अहम सेवाएं प्राइवेट अस्पलातों को भी मुहैया करानी चाहिए.

प्रवासी मज़दूरों और छात्रों को वापस उनके राज्य भेजने से जुड़े एक सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय की प्रवक्ता पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने कहा कि फिलहाल इसके लिए बस को साधन के तौर पर इस्तेमाल करने की इजाज़त दी गई है.

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