नयी दिल्ली, 16 अप्रैल (भाषा) प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने बुधवार को केंद्रीय कानून मंत्रालय से उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई को अगला सीजेआई नियुक्त करने की सिफारिश की।
न्यायमूर्ति गवई मौजूदा सीजेआई के बाद उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं। वह 14 मई को 52वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे।
सीजेआई खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं।
न्यायमूर्ति गवई को 24 मई, 2019 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। प्रधान न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल छह महीने से अधिक होगा और वह 23 नवंबर, 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।
पिछले साल 11 नवंबर को 51वें सीजेआई के रूप में शपथ लेने वाले न्यायमूर्ति खन्ना ने आज केंद्रीय कानून मंत्रालय से न्यायमूर्ति गवई को अगला सीजेआई नियुक्त करने की सिफारिश की।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष है।
अमरावती में 24 नवंबर 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति गवई को 14 नवंबर 2003 को बंबई उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था।
वह 12 नवंबर 2005 को उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश बने।
न्यायमूर्ति गवई उच्चतम न्यायालय में कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे हैं जिन्होंने महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं।
वह पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने दिसंबर 2023 में पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा था।
पांच न्यायाधीशों की एक अन्य संविधान पीठ ने राजनीतिक वित्तपोषण के लिए चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द कर दिया था। न्यायमूर्ति गवई भी इस पीठ में शामिल थे।
वह पांच न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे जिसने 4:1 के बहुमत से केंद्र के 2016 के 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को मंजूरी दी थी।
न्यायमूर्ति गवई सात न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने 6:1 के बहुमत से यह माना था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण दिया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी हैं।
न्यायमूर्ति गवई सहित सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि पक्षों के बीच बिना मुहर लगे या अपर्याप्त रूप से मुहर लगे समझौते में मध्यस्थता खंड लागू करने योग्य है, क्योंकि इस तरह के दोष को ठीक किया जा सकता है और यह अनुबंध को अवैध नहीं बनाता है।
उनके नेतृत्व वाली पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में अखिल भारतीय स्तर पर दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि ‘कारण बताओ’ नोटिस दिए बिना किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए तथा प्रभावितों को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए।
वह उस पीठ का भी नेतृत्व कर रहे हैं जो वन, वन्यजीव और वृक्षों के संरक्षण से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही है।
वह 16 मार्च 1985 को बार में शामिल हुए थे और नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम तथा अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील थे।
अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक उन्हें बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किया गया।
सत्रह जनवरी 2000 को उन्हें नागपुर पीठ के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त किया गया।
उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण संबंधी प्रक्रिया ज्ञापन के अनुसार, कानून मंत्री प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर उनसे उनके उत्तराधिकारी का नाम मांगते हैं।
प्रक्रिया ज्ञापन के मुताबिक, उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश को प्रधान न्यायाधीश का पद संभालने के लिए उपयुक्त माना जाता है और न्यायपालिका के निवर्तमान प्रमुख के विचार ‘‘ उचित समय’’ पर मांगे जाते हैं।
भाषा नेत्रपाल शोभना
शोभना
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