scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशपहचान, पैसा- बोनालू उत्सव में तेलंगाना के युवाओं को 'पोथाराजू' बनने के लिए क्या आकर्षित कर रहा है

पहचान, पैसा- बोनालू उत्सव में तेलंगाना के युवाओं को ‘पोथाराजू’ बनने के लिए क्या आकर्षित कर रहा है

तेलंगाना का पारंपरिक मॉनसून उत्सव युवाओं को आकर्षित कर रहा है, जो भयानक अवतारों में अपने अंदर के ‘पोथाराजुओं’ को अभिव्यक्त करना चाहते हैं. सीनियर्स के लिए ये अभी भी एक पारिवारिक विरासत है.

Text Size:

टाइट शॉर्ट्स पहने हुए 31 वर्षीय तलवार शिवा बड़े एहतियात से अपनी बॉडी पर हल्दी और चंदन का लेप लगाते हैं, चेहरे पर चटख लाल पेंट करते हैं, आंखों में काजल लगाते हैं, पैरों में भारी पायल पहनते हैं और अपने गालों के अंदर नींबू रख लेते हैं. लोगों को चाबुक मारने के लिए बिल्कुल अंत में वो दो भारी रस्सियां उठाते हैं और अपनी ज़बान बाहर निकालते हैं. अपने दादा की तरह, वो पोथाराजू बन गए हैं- देवी महांकाली का डरावना भाई और तेलंगाना के पारंपरिक मॉनसून उत्सव बोनालू का एक मुख्य किरदार.

उत्सव के दौरान पोथाराजू जो मुख्य रूप से पुरुष होते हैं, मंदिर तक जुलूस की अगुवाई करते हैं और नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाने के लिए हिंसक नृत्य करते हुए चलते हैं. हालांकि बोनालू का ताल्लुक 19वीं शताब्दी से है लेकिन ये भारी संख्या में युवाओं को आकर्षित कर रहा है. ये सिर्फ भक्ति नहीं है जो इस प्रवृत्ति को आगे बढ़ा रही है. जब परंपरा और आधुनिकता का मिलन होता है, तो बेरोजगारी, समाज में पहचान की कमी, सोशल मीडिया उन्माद और कुछ के लिए जिम में बनाई गई अपनी बॉडी का दिखावा सब मिलाकर युवाओं के भीतर अपने अंदर के पोथाराजुओं को अभिव्यक्त करने की इच्छा पैदा करते हैं. अवतार जितना डरावना हो उतना बेहतर है.

शिवा गुस्से में कहते हैं, ‘जवान लड़के जो जिम में कसरत करते हैं, मेरे पास आकर कहते हैं कि वो पोथाराजू बनना चाहते हैं क्योंकि उनके पास एक आकर्षक शरीर है!’

वो पिछले 16 साल से पोथाराजू का रोल कर रहे हैं. हालांकि, उसकी उम्र सिर्फ 31 साल है लेकिन उसका इंडस्ट्री में नाम वरिष्ठों में किया जाता है. आज वो करीब 70 युवाओं को ट्रेनिंग देते हैं जिनमें से अधिकतर मुश्किल से 20 साल के हैं. वो एक युवा सदस्य द्वारा बनाया गया 500 पोथाराजुओं का एक व्हाट्सएप दिखाते हुए कहते हैं, ‘पिछले तीन सालों में हमने अपने साथ शामिल होने वाले युवाओं की संख्या बढ़ते हुए देखी है’. संयोग से ये रुझान महामारी के साथ देखने में आया है, वो लोग इस विडंबना को खूब समझते हैं जो इस उत्सव से जुड़ी कथाओं से वाकिफ हैं, जिसे प्लेग को दूर रखने के लिए देवी के धन्यवाद स्वरूप मनाया जाता है.


यह भी पढ़ें: मोदी ने नहीं की कोविंद की अनदेखी, पूर्व राष्ट्रपति के विदाई समारोह की क्लिप को संदर्भ से परे जा कर देखा जा रहा है


युवाओं के लिए ये अलग है

शिवा ने इस काम को इसलिए चुना क्योंकि ये एक पारिवारिक विरासत थी, जिसे आगे बढ़ाने का उसने संकल्प लिया था.

बचपन में वो अपने दादा से बहुत डरा हुआ रहता था, जो 1970 के दशक में पोथाराजू थे. शिवा ने दिप्रिंट को बताया, ‘उनके अंदर इतना जोश और ठाट-बाट था कि दूसरे धर्मो के लोग भी मेरा पिता का अभिनय देखने आते थे. मैं बचपन में उनसे इतना सम्मोहित था कि मैंने फैसला कर लिया था कि एक दिन मैं भी एक पोथाराजू बनूंगा. पहली बार उसका अवतार ग्रहण करने के बाद, मैंने क़रीब एक साल तक शोध किया कि एक पोथाराजू आखिर होता कौन है, उसका महत्व क्या होता है, उसे कैसा आचरण करना चाहिए और उसके क्या कर्त्तव्य होते हैं’.

आज के अधिकतर युवा जो सिर्फ अवतार के सरासर आक्रामक प्रदर्शन से प्रभावित होते हैं, परंपरा या महत्व की परवाह नहीं करते. नाराजगी से भरा शिवा कहता है, ‘युवा लड़के मेरे पास आकर कहते हैं कि वो पोथाराजू बनना चाहते हैं क्योंकि उन्हें अपनी आर्थिक जरूरतें पूरी करनी हैं. वो सोशल मीडिया पर पहचान बनाना चाहते हैं, वो अपने समुदाय या अपनी गलियों में मशहूर होना चाहते हैं. उनमें से आधे तो इसकी अहमियत को भी नहीं समझते’.

तेलंगाना के पारंपरिक मॉनसून उत्सव, बोनालू के दौरान एक जुलूस में 31 वर्षीय तलवार शिव अन्य ‘पोथाराजू’ के साथ | फोटो: विशेष व्यवस्था

मसलन, पोथाराजू जो सिंदूर और हल्दी पाउडर इस्तेमाल करते हैं वो ऐसा नहीं है जिसे आप स्टोर से खरीद लें. ‘मंत्रों’ और ‘पूजाओं’ जैसे कुछ विशेष अनुष्ठान होते हैं, जिन्हें पूरा करने के बाद ही कोई पोथाराजू उन्हें अपने शरीर पर लगाता है. रस्सियों को भी- जो बरगद के पेड़ के तने से बनी होती हैं- ऐसे ही अनुष्ठान को पूरा करके लिया जाता है और उन्हें कई दिन तक दूध में डुबाकर रखा जाता है.

हालांकि युवा पोथाराजुओं में मेकअप की सहायता से अलग-अलग तरह के लुक्स आजमाने का चलन बढ़ रहा है. मकसद ये होता है कि सबसे उग्र और सबसे खौफनाक अवतार बनाया जाए. शिवा के अनुसार 50 पोथाराजू पुराने हैं जो केवल हल्दी और सिंदूर का प्रयोग करते हैं, जबकि इसकी तुलना में 800 युवा पोथाराजू ऐसे हैं जो मेकअप का इस्तेमाल करते हैं.

एक दशक से भी पहले, शिवा अपने चेहरे पर दीवार वाला पेंट लगाया करता था जिससे उसकी त्वचा खराब हो गई. ‘ये पीढ़ी अच्छी दिखना चाहती है, एक होड़ सी हो गई है कि कौन एक आक्रामक रूप ले सकता है और इसीलिए वो पेशेवर मेकअप कलाकारों को तरजीह देते हैं. अब ये सिर्फ सिंदूर और हल्दी की बात नहीं रह गई है’.

पैसा कमाना है उद्देश्य

पोथाराजू एक दिन में 10 हजार रुपए से लेकर 50 हजार रुपए तक कमा सकते हैं जो उनकी आयु, अनुभव, और लोकप्रियता पर निर्भर करता है. उन्हें मंदिर प्रबंधन, किसी मंदिर का रख-रखाव करने वाले परिवार और स्थानीय लोग हायर करते हैं जो उत्सव मानाना चाहते हैं. मसलन, अगर कोई परिवार जुलूस के साथ मंदिर जाना चाहता है तो वो किसी पोथाराजू से जश्न का हिस्सा बनकर अपने साथ चलने का आग्रह करेगा, जिसके बदले में उसे पैसा दिया जाता है.

छब्बीस वर्षीय सागर (बदला हुआ नाम) शिवा के ‘शिष्यों’ में से एक है और अपनी पारिवारिक आय बढ़ाने के लिए पिछले साल एक पोथाराजू बना था. महामारी के दौरान उसके पिता की नौकरी छूट गई. सागर के लिए गुजारा करना मुश्किल हो रहा था. इसलिए वो एक महीने के लिए पोथाराजू बन गया और 50,000 रुपए कमा लिए.

हालांकि,शिवा अकसर ऐसे ‘ग्राहकों’ को लौटा देता है जो केवल वित्तीय कारणों से अवतार का रोल करना चाहते हैं. शिवा, जो लोगों को मुफ्त में ट्रेनिंग देते हैं वो कहते हैं, ‘कुछ छात्र मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि पोथाराजू बनकर वो कॉलेज की फीस भरना चाहते हैं. मैं उनका स्वागत नहीं करता, वो किसी के पास जाकर भी ट्रेनिंग ले सकते हैं. कुछ लोग इसे अलग से पैसा कमाने के जरिए के रूप में देखते हैं. कुछ मामलों में छात्र अपने दोस्तों पर बढ़त बनाना चाहते हैं’.

तेलंगाना के पारंपरिक मॉनसून उत्सव, बोनालू के दौरान एक जुलूस में 31 वर्षीय तलवार शिव अन्य ‘पोथाराजू’ के साथ | फोटो: विशेष व्यवस्था

सबाल्टर्न और आदिवासी कला रूपों पर काम करने वाले तेलंगाना के एक लेखक और अकादमिक जयधीर तिरुमला राव ने कहा कि खासकर आंध्र प्रदेश के बंटवारे के बाद बोनालू को तरक्की देकर, राज्य का पारंपरिक उत्सव बना दिया गया है. राव ने कहा, ‘युवाओं के लिए ये अपने समुदायों में पहचान हासिल करने का एक अवसर बन गया है. इसीलिए वो इसकी ओर खिंच रहे हैं. गांवों में भी यही नजारे देखने को मिल रहे हैं’.


यह भी पढ़ें : कामयाब लोग चले विदेश, अभागे मिडिल क्लास, गरीब तथा ग्रामीण लोगों पर है देशभक्ति का सारा बोझ


कोई शर्म नहीं, ये बस एक रिवाज है

पोथाराजू को सात देवी बहनों का भाई माना जाता है, जो देवी महांकाली के विभिन्न रूप हैं. निजाम दौर के इस उत्सव के विभिन्न रूपों में, सबसे अधिक माने जाने वाले सिद्धांत का ताल्लुक 1813 से है, जब प्लेग ने हैदराबाद और सिकंदराबाद के जुड़वां शहरों को अपनी चपेट में ले लिया था, जिसमें कई लोग मारे गए थे.

कहा जाता है कि मध्य प्रदेश के उज्जैन में तैनात एक सैन्य बटालियन ने, देवी महांकाली की पूजा की और वचन दिया कि अगर प्लेग का खतरा टल गया, तो वो उसपर भोग चढ़ाएगी और एक मंदिर का निर्माण कराएगी. जब प्लेग खत्म हो गया को वादों पर अमल किया गया.

ये उत्सव जो कई चरणों में मनाया जाता है, एक छोटे से मंदिर से शुरू होता है जो शहर के गोलकुंडा क़िले की एक पहाड़ी पर स्थित है, जिसे कुतुब शाही वंश के दौरान बनाया गया था. महिलाएं अपने सरों पर ‘बोनम’ लेकर चलती हैं जिसका अनुवाद भोजन हो सकता है. ये एक बरतन होता है जिसमें दूध और गुड़ में पके हुए चावल होते हैं, जो देवी को चढ़ाए जाते हैं. महिलाओं के मंदिर तक चलकर जाने का ये पूरा जुलूस पोथाराजू की अगुवाई में चलता है, जो ढोल की जोरदार आवाज पर नाचती हुई भीड़ के साथ आक्रामक नृत्य करता है और अपनी रस्सियों से भीड़ को कोड़े मारता हैं.

शारीरिक तैयारी के अलावा, उत्सव के दिन पोथाराजू शराब का सेवन नहीं कर सकते, उन्हें व्रत रखना होता है और साफ-सुथरा दिखने के लिए उन्हें अपने नाखून काटने होते हैं.

जहां कुछ युवा जुलूस के दौरान खुशी खुशी अपने पेंट किए गए धड़ और मसल्स का प्रदर्शन करते हैं. वहीं कुछ दूसरे मौन धारे रहते हैं.

चौबीस वर्षीय निखिल ने जो दो साल पहले एक पोथाराजू बना था, पहले अपने कपड़े उतारने से मना कर दिया. निखिल ने कहा, ‘शुरू में सिर्फ शॉर्ट्स पहनकर सैकड़ों लोगों के सामने से चलकर जाने में थोड़ी झिझक होती है. आपके पड़ोसी, दोस्त सब आपको देख रहे होंगे- इससे थोड़ी शर्म आती है. इसलिए मुझे भी शुरू में ऐसा ही लगता था लेकिन जब मुझे इस अवतार के पीछे का अर्थ और उसकी अहमियत समझ में आ गई तो मैं समझ गया कि शॉर्ट्स आदि पहनने की कोई अहमियत नहीं है क्योंकि पोथाराजू बनना ही अपने आप में सम्मान की बात है’.

शिवा का कहना है कि शर्मिंदगी इसलिए महसूस होती है क्योंकि लोग अवतार के महत्व को नहीं समझ पाए हैं. शिवा ने कहा, ‘इसीलिए उन्हें शॉर्ट्स पहनकर सड़क पर चलने में शर्म महसूस होती है. वो कहते हैं कि उनके दोस्त, खासकर उनकी महिला मित्र उनपर हंसती हैं. लेकिन, इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता. ये सिर्फ देवी और परंपरा में विश्वास का मामला है. आपके मन में बस यही भावना होनी चाहिए’.

हालांकि बोनालू काफी हद तक आज समाप्त हो जाएगा लेकिन तेलंगाना के कुछ छोटे छोटे इलाकों में, पोथाराजू अगले कुछ दिनों तक नजर आते रहेंगे, जो मंदिरों तक जुलूसों की अगुवाई करेंगे और अपने नृत्य और भयानक निगाहों से नकारात्मक ऊर्जा को दूर भगाते रहेंगे. सागर जैसे पोथारजू अपने मेकअप धोएंगे, अपने कोड़े एक तरफ रखेंगे और पैसा गिनने के लिए बैठ जाएंगे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ें : भारत में जोर पकड़ रहा ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’, हाईकोर्ट ने कई याचिकाओं पर सुनाए फैसले


share & View comments