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Monday, 4 November, 2024
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आरसीईपी भारत के हितों के खिलाफ इसलिए समझौते से अलग होने का किया फैसला : पीयूष गोयल

राज्य सभा में पीयूष गोयल ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि इस समझौते में घुसने की कोई जरूरत थी. लेकिन शायद उस समय की सरकार पर कोई दबाव रहा हो इसलिए उन्होंने इसमें शामिल होने का फैसला किया.'

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नई दिल्ली: राज्य सभा में  क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) पर हुई बहस में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने भारत के इस समझौते से अलग होने के कारणों पर विस्तार से बताया. गोयल ने कहा कि ये समझौता देश के व्यापारिक हितों के खिलाफ था इसलिए हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इससे अलग होने का फैसला किया.

उन्होंने कहा कि भारत ने कुछ देशों के लिए अपने बाज़ार को खोला लेकिन देखने में आया कि भारत को इससे ज्यादा फायदा नहीं हो रहा है बल्कि इससे व्यापारिक घाटा बढ़ रहा है. आंकड़ों को हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि वर्ष 2003-04 में चीन के साथ आयात 1.1 मिलियन डॉलर का था जो 2013-14 में 33 फीसदी की वृद्धि के साथ 36.2 मिलियन डॉलर हो गया.

गोयल ने कहा कि भारत ने कई आरसीईपी देशों के लिए अपने बाज़ार को खोला लेकिन हमें इससे ज्यादा फायदा नहीं हुआ. हमने 74.4 प्रतिशत टैरिफ को समाप्त किया लेकिन कुछ आसियान देशों ने केवल हमारे लिए 50 प्रतिशत टैरिफ को समाप्त किया. जिस कारण देश का घाटा बढ़ता गया.

उन्होंने कहा, देश के व्यापार घाटे की चिंता को देखते हुए हमने इस समझौते को आगे नहीं बढ़ाया गया है.

‘मुझे नहीं लगता कि भारत को आरसीईपी में घुसने की जरूरत थी’

राज्य सभा में आरसीईपी पर बोलते हुए वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने यूपीए सरकार को भी घेरा. उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इस समझौते में घुसने की कोई जरूरत थी. लेकिन शायद उस समय की सरकार पर कोई दबाव रहा हो इसलिए वो इसमें शामिल होने का फैसला किया.

गोयल ने कहा कि अगर उस समय की सरकार इतनी साहसी होती तो आज भारत को ये सब झेलना ही नहीं पड़ता. पहले व्यापार जगत के हितधारकों से बात नहीं की जाती थी. लेकिन हमारी सरकार ने सभी हितधारकों से इस समझौते पर पर्याप्त बात की है.

उन्होंने कहा कि 2012 से ही स्वदेशी जागरण मंच आरसीईपी का विरोध करती आई है. गोयल ने कहा कि मुझे लगता था कि जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जो कि बड़े अर्थशास्त्री भी हैं, तो लगता था कि उन्होंने आरसीईपी में शामिल होने का फैसला कुछ सोच कर ही लिया होगा और वो भारत के लिए अच्छा होगा. लेकिन जब मैंने इसके बारे में जाना, इस समझौते के क्लॉस को जाना तो ये भारत के हितों के खिलाफ था.

गोयल ने कहा कि जब हमें लगा कि आरसीईपी मे रहना हमारे लिए फायदेमंद नहीं है तो हमने इससे बाहर आने का फैसला किया.


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राज्य सभा सांसद मनोज झा ने सवाल किया कि इससे अलग होने पर भारत का क्या फायदा होगा. इसपर गोयल ने कहा कि भारत में आनाप-शनाप का आयात नहीं होगाा और भारत के घरेलू उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा. भारत का हित हमारी पहली प्राथमिकता है.

‘कोई संबंध एकतरफा नहीं होता’

भारत के हितों के बारे में गोयल ने कहा कि जब तक हमें व्यापारिक फायदा नहीं होगा तब तक हम किसी देश के साथ व्यापारित रिश्ता नहीं रख सकते. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हम पूरे विश्व के साथ बात करेंगे. लेकिन किसी के साथ भी संबंध एकतरफा नहीं होगा. जब हमें फायदा होगा तभी हम किसी से रिश्ता रखेंगे. हम कमज़ोरी से किसी के साथ बात नहीं करेंगे.

वाणिज्य मंत्री का जवाब राजनीतिक है : आनंद शर्मा

कांग्रेस से राज्य सभा सांसद आनंद शर्मा ने वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के बयान को राजनीतिक बताया और कहा कि अगर आपकी सरकार ने इतना अच्छा काम किया है तो जीडीपी के आंकड़ें ऐसे क्यों है. इसलिए पहले से तुलना करना बंद करें.

इस पर गोयल ने कहा कि पिछली सरकार ने देश को असमर्थ नहीं बनाया होता तो स्थिति कुछ और होती.

किसानों, व्यापारियों और गरीबों के हितों के लिए प्रतिबद्ध

पीयूष गोयल ने कहा 2 नवंबर 2012 को भारत को आरसीईपी में शामिल होने को मंजूरी मिली. भारत ने अगस्त 2013 में पहली आरसीईपी बैठक में भाग लिया. भारत ने पिछले 5 वर्षों में राष्ट्रीय हितों को मजबूती से रखा और रचनात्मकता के साथ बातचीत की.

उन्होंने कहा , ‘जब हमने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) का हिस्सा नहीं बनने का फैसला किया तो उसका एक मुख्य कारण यह भी था कि दूसरे देशों में हमारी कंपनियों को उन क्षेत्रों में बराबर और उचित अवसर नहीं मिलते हैं , जिनमें वे मजबूत स्थिति में हैं.’

उन्होंने कहा , ‘कई आसियान देश यहां तक कि जापान और कोरिया भी इस तरह की शर्तें रखते हैं कि कई भारतीय कंपनियों को निविदाओं में भाग लेने की अनुमति नहीं मिले.’

गोयल ने कहा, देशभर में 100 से ज्यादा हितधारकों से परामर्श किया गया. इस क्षेत्र से जुड़े लोगों से बात की गई. सबसे बात करने के बाद हमने पाया कि वर्तमान आरसीईपी समझौता भारत की चिंताओं को दूर करने में विफल है. इसलिए हमने इससे अलग होने का निर्णय लिया.

गोयल ने प्रधानमंत्री मोदी का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने पहले ही कहा था कि इस समझौते से सबको फायदा होना चाहिए. लेकिन ऐसी स्थिति बनती नज़र नहीं आ रही थी. उन्होंने कहा कि हमारी सरकार किसानों, गरीबों और नए स्टार्ट-अप के हितों के लिए प्रतिबद्ध है.

चीन के विदेश मंत्री वांग यी इस महीने भारत यात्रा पर आएंगे, आरसीईपी, सीमा वार्ता एजेंडे में

चीन के विदेश मंत्री एवं स्टेट काउंसिलर वांग यी सीमावार्ता करने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं चीन के राष्ट्रपति शी जिंपिंग के बीच दूसरी अनौपचारिक शिखर बैठक में हुए प्रमुख निर्णयों के क्रियान्वयन की समीक्षा के लिए इस महीने भारत की यात्रा पर आएंगे. यह जानकारी कूटनीतिक सूत्रों ने बुधवार को दी.

सूत्रों ने बताया कि वांग की विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ बातचीत के दौरान चीन समर्थित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) को लेकर भारत की प्रमुख चिंताएं मुख्य तौर पर उठने की उम्मीद है.


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माना जा रहा है कि चीन के नेता वांग यी भारत को आरसीईपी से बाहर होने के अपने निर्णय की समीक्षा के लिए मनाने का प्रयास करेंगे. वह इसके साथ ही भारत को प्रस्तावित व्यापार समझौते को लेकर उसकी चिंताओं के समाधान की पेशकश कर सकते हैं.

मोदी और शी के बीच गत अक्टूबर में मामल्लापुरम में अनौपचारिक शिखर बैठक के साथ ही भारत के बैंकाक में हाल में आयोजित आरसीईपी बैठक के बाद भारत के आरसीईपी से बाहर होने के निर्णय के बाद चीन के किसी वरिष्ठ नेता की यह पहली भारत यात्रा होगी.

एक उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया, ‘वांग की यात्रा का एजेंडा विस्तृत होगा.’ सूत्र ने बताया कि यात्रा की तिथि जल्द घोषित की जाएगी.

सूत्रों ने बताया कि वांग भारत की यात्रा मुख्य तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के साथ सीमावार्ता करने के लिए कर रहे हैं. यद्यपि वह और जयशंकर के साथ द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और परस्पर हित के वैश्विक मुद्दों पर चर्चा भी करेंगे.

डोभाल और वांग सीमावार्ता के लिए दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधि हैं.

सूत्रों ने कहा कि उम्मीद है कि दोनों पक्ष शिखर बैठक के दौरान किये गए निर्णयों के क्रियान्वयन की समीक्षा करेंगे.

उन्होंने कहा कि जयशंकर और वांग के बीच बैठक के दौरान आरसीईपी को लेकर भारत की मूल चिंताओं पर चर्चा किये जाने की उम्मीद है क्योंकि समूह के कई देशों ने नयी दिल्ली को व्यापार समूह में वापस लाने के प्रयास तेज कर दिये हैं.

वर्षों की चर्चा के बाद भारत पिछले महीने प्रस्तावित आरसीईपी से मूल चिंताओं का समाधान नहीं होने को लेकर बाहर हो गया था. भारत ने समूह की आयोजित बैठक में कहा था कि प्रस्तावित समझौते का वर्तमान स्वरूप भारतीयों के आजीविका और जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा.

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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