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Friday, 1 November, 2024
होमदेशराम मंदिर की सुनवाई टलने पर बोले केंद्रीय मंत्री- न्यायपालिका में हमारा भरोसा है

राम मंदिर की सुनवाई टलने पर बोले केंद्रीय मंत्री- न्यायपालिका में हमारा भरोसा है

अयोध्या मामला पिछले 70 सालों से लंबित है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश मंदिर के पक्ष में था, लेकिन अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है.

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नई दिल्ली: अयोध्या मंदिर मामले की सुनवाई एकबार फिर टल गई है. इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच को 29 जनवरी मंगलवार को करनी थी. बढ़ती तारीखों के बीच केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि अयोध्या ममाला जो करीब 70 सालों से लंबित है, उसकी जल्द सुनवाई होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि देश के लोग वहां एक भव्य राम मंदिर का निर्माण होने की उम्मीद कर रहे हैं, जहां कभी बाबरी मस्जिद हुआ करती थी.

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प्रसाद ने कहा, ‘अयोध्या मामला पिछले 70 सालों से लंबित है. (2010 में) इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश मंदिर के पक्ष में था, लेकिन अब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है. इस मामले का जल्द निपटारा होना चाहिए.’ उन्होंने कहा कि यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने भी कहा है कि इस मामले का हल संवैधानिक दायरे में होना चाहिए.

बता दें कि राम-मंदिर निर्माण को लेकर भाजपा भारी दवाब में है. संत-साधु से लेकर सहयोगी पार्टियां सहित आरएसएस तक राम मंदिर बनाने का लगातार दबाव डाल रहे हैं. मंदिर निर्माण को लेकर विधेयक लाने की मांग भी उठती रही है. हालांकि भाजपा ने इस मामले पर अपना रुख साफ कर दिया है कि इस मामले की सुनवाई संवैधानिक तरीके से ही होगी और पार्टी वैसा ही हल चाहती है.

मंदिर मामले में एक बार फिर से सुनवाई टलने पर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कई लोग शिकायत करते हैं कि सबरीमाला और व्यभिचार सहित कई मुद्दों पर तेजी से सुनवाई हुई. लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि यह मामला भी बिना किसी देरी के जल्द सुना जाना चाहिए.’ उन्होंने कहा कि हम सब सर्वोच्च अदालत का सम्मान करते हैं और न्यायपालिका में हमारा भरोसा है.

पिछले कुछ दिनों में राम मंदिर निर्माण को लेकर विरोध के स्वर उठ रहे हैं. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव ने कहा, राम मंदिर का निर्माण जल्द शुरू हो यही सभी की इच्छा है. राम मंदिर हिंदुओं की आस्था और श्रद्धा से जुड़ा है और इसका सभी को सम्मान करना चाहिए.

वहीं इससे पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि कोर्ट यदि इस मामले को हमें सौंप दे तो 24 घंटे में इसका निपटारा कर देंगे. उन्होंने कहा कि राम मंदिर पर जनता के सब्र का बांध कभी भी टूट सकता है, उनका धैर्य इस मामले में तेजी से खत्म हो रहा है.
साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी अपने फैसले में यह माना था कि बाबरी ढांचे को हिंदू मंदिर या स्मारक तोड़ने के बाद बनाया गया था. भारतीय पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए कोर्ट ने यह आदेश दिया था.

बता दें कि कल देर रात पता चला कि राम मंदिर की सुनवाई के लिए गठित पुनर्गठित पांच न्यायाधीशों की पीठ में से एक न्यायाधीश एस.ए. बोबडे 29 जनवरी को उपलब्ध नहीं हैं. न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे की अनुपलब्धता के कारण प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ 29 जनवरी, 2019 को मामले की सुनवाई नहीं करेगी. पीठ के अन्य न्यायाधीशों में न्यामूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस.अब्दुल नजीर हैं.

सर्वोच्च न्यायालय ने 25 जनवरी को पांच न्यायाधीशों की पीठ का पुनर्गठन किया था, क्योंकि न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था, क्योंकि वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा था कि वह बाबरी मस्जिद से संबंधित एक मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की तरफ से एक वकील के रूप में 1997 में पेश हुए थे. कल्याण सिंह इस समय राजस्थान के राज्यपाल हैं.

(न्यूज एजेंसी आईएएनएस के इनपुट्स के साथ)

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