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Thursday, 25 April, 2024
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चूहे पुरुषों से महसूस करते हैं ज्यादा तनाव: वैज्ञानिकों का सेक्स, दवाओं के प्रति उनके रिएक्शन को बदल सकता है

चूहे न केवल महिलाओं को पुरुषों पर तरजीह देते हैं, बल्कि शोधकर्त्ताओं का सेक्स अवसादरोधी केटामीन पर उनकी प्रतिक्रिया को भी प्रभावित करता है- ये ख़ुलासा नेचर न्यूरोसाइंस में प्रकाशित मैरीलैण्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में हुआ है.

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बेंगलुरू: लैबोरेट्री के चूहे पुरुषों की बजाय महिलाओं द्वारा हैण्डल किए जाने में ज़्यादा सहज रहते हैं; ये एक ऐसा तथ्य है जिससे वैज्ञानिक समुदाय वास्तविक सबूतों के ज़रिए वाक़िफ रहा है.

अब, पुरुषों के प्रति चूहों में दुराव या विरोध के भाव से लगभग संयोगवश शोधकर्त्ताओं को ये समझने में सहायता मिल गई है, कि कुछ लोगों पर अवसाद-रोधी केटामीन का अच्छा असर क्यों नहीं होता, जबकि दूसरों पर होता है.

पिछले महीने नेचर न्यूरोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित एक स्टडी में, मैरीलैण्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्त्ताओं ने दिखाया कि चूहों पर केटामीन का अवसाद-रोधी असर तब ज़्यादा दिखा, जब वो ड्रग पुरुषों के हाथों दी गई.

विडंबना ये है कि ऐसा इसलिए था कि मस्तिष्क के एक ख़ास हिस्से हिप्पोकैंपस में, तनाव को लेकर चूहों की प्रतिक्रिया बढ़ गई थी, क्योंकि उन्हें पुरुषों ने हैण्डल किया था.

इसका निहितार्थ है कि इंसानों पर भी ड्रग की क्या प्रतिक्रिया होती है, हालांकि वो इस रूप में नहीं होती कि ड्रग को देने वाला पुरुष है या महिला.

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स्टडी के एक लेखक और मैरीलैण्ड यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ टॉड गोल्ड ने स्टडी के बारे में एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘चूहों में हमारे निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि केटामीन उपचार का एक तरीक़ा ये हो सकता है, कि मस्तिष्क में एक विशेष तनाव सर्किट को सक्रिय कर दिया जाए’.

उन्होंने आगे कहा कि विचार ये है कि केटामीन का अवसाद-रोधी असर उस सूरत में बेहतर हो सकता है, अगर इसके साथ किसी दूसरी दवा या किसी प्रकार के ‘विशेष तनाव’ से ‘मस्तिष्क के इस हिस्से को सक्रिय’ किया जाए.


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गंध, तनाव, और एक चौंकाने वाला परिणाम

मैरीलैण्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्त्ता ये नोटिस करने के बाद अपने निष्कर्षों पर पहुंचे, कि केटामीन के अवसाद-रोधी प्रभावों ने तब काम नहीं किया, जब उसे ज़्यादातर उन रिसर्चर्स ने दिया जो महिलाएं थीं, लेकिन तब काम किया जब उन्हें कुछ पुरुष शोधकर्त्ताओं ने हैण्डल किया.

शुरुआती प्रयोगों में टीम को पता चला कि चूहों पर मिले परिणामों में उस हिसाब से झुकाव हो सकता है, कि उन जीवों को हैण्डल कर रहे प्रयोगकर्ता का जैविक सेक्स क्या था. देखने में आया कि चूहों में महिलाओं के प्रति बेहतर प्रतिक्रिया थी और वो कम तनाव में थे, लेकिन केटामीन की प्रतिक्रिया केवल पुरुषों ने पैदा की. टीम ने दूसरी लैब्स के साथ भी चेक किया, जो केटामीन पर चूहों की प्रतिक्रिया का अध्ययन कर रहीं थीं, और उन्होंने भी इसी तरह की ख़बर दी.

एक रैंडम अध्ययन में पता चला, कि लैब के चूहों पर पुरुष प्रयोगकर्त्ताओं की गंध का भी ज़्यादा तनाव था, उसके प्रति दुराव का भाव था, और वो महिलाओं की टी-शर्ट्स, या उनकी कलाई, कोहनी, या कान के पीछे पोछे गए कॉटन के फाहे की गंध के आसपास ज़्यादा सहज थे. जब शोधकर्त्ताओं ने चूहों की सूंघने की क्षमता को ब्लॉक कर दिया, तो उन्होंने महिलाओं की गंध वाली चीज़ों के प्रति कोई तरजीह नहीं दिखाई.

कुछ पिछली स्टडीज़ में भी पता चला है कि लैबोरेट्री के चूहे न सिर्फ महिलाओं द्वारा हैण्डल किया जाना पसंद करते हैं, बल्कि उन्हें महिलाओं की गंध भी ज़्यादा अच्छी लगती है. मसलन, 2014 की एक स्टडी में, जब चूहों को पुरुषों और महिलाओं की पहनी हुई टी-शर्ट्स के संपर्क में लाया गया, तो उन्होंने महिलाओं के पहने कपड़ों के पास रहना पसंद किया. दूसरी ओर, पुरुषों की गंध से उनमें ‘तनाव की प्रतिक्रिया’ पैदा हो गई.

यूओएम शोधकर्त्ताओं के मामले में, अवसाद-रोधी दवाओं और चूहों पर अपने काम में उन्होंने एक और ख़ास चीज़ देखी- कि डेसीप्रामीन दवा ने अपना काम किया भले चूहे को कोई भी हैण्डल कर रहा हो, लेकिन केटामीन तभी काम करती हुई नज़र आई जब उसे पुरुष शोधकर्त्ताओं के हाथों दिया गया.

ऐसा क्यों है ये समझने के लिए उन्होंने कोर्टिकोट्रोपिन-रिलीज़िंग फैक्टर (सीआरएफ) नामक एक हार्मोन को देखा. ये हिप्पोकैंपस में मौजूद होता है- मस्तिष्क का वो हिस्सा जो सीखने और याद रखने का काम करता है, और जिसका संबंध अवसाद से है. उन्होंने पाया कि पुरुष गंध से विरक्ति और तनाव के प्रति संवेदनशीलता, सीआरएफ के सक्रिय होने से पैदा हुई जिसने स्ट्रेस रेस्पॉन्स सर्किट को चालू कर दिया.

कोर्टिकोट्रोपिन की वजह से बढ़ी हुई चिंता और भूख दबने जैसे तनावों की प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं.

जब महिला शोधकर्त्ताओं ने चूहों को केटामीन दी तो उनपर प्रतिक्रिया नहीं हुई. लेकिन जब उन्होंने इसे सीआरएफ के साथ दिया, तो केटामीन के ज़रिए चूहों के अवसाद में कमी दिखाई दी.

टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची कि ये दरअसल सीआरएफ की तनाव प्रतिक्रिया सर्किटरी की सक्रियता है, जो केटामीन को एक अवसाद-रोधी के तौर पर काम करने में सक्षम बनाती है.

स्टडी ने एक अवसाद-रोधी के तौर पर केटामीन के प्रति ग़ैर-प्रतिसंवेदनशीलता पर प्रकाश डाला है.

शोधकर्त्ताओं का मानना है कि लोगों के अंदर सीआरएफ का स्तर कम या अधिक हो सकता है, और इससे केटामीन के प्रभाव पर असर पड़ता है, हालांकि इन निष्कर्षों को सीधे इंसानों पर लागू नहीं किया जा सकता, और उससे पहले इनकी जांच और मूल्यांकन करना होगा, और इन्हें दोहराना होगा.


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केटामीन और अवसाद

केटामीन को जानवरों के लिए ट्रैंक्विलाइज़र, और इंसानों के लिए मनोरंजक दवा के तौर पर सबसे ज़्यादा जाना जाता है, लेकिन अपने अवसाद-रोधी गुणों के कारण भी इसकी ओर तवज्जो बढ़ रही है. कभी कभी ये पारंपरिक अवसाद-रोधियों के मुक़ाबले कहीं अधिक असरदार होती है, और कहीं ज़्यादा तेज़ी से काम करती है- हफ्तों नहीं बल्कि घंटों के भीतर.

चूहों पर हुए एक पहले अध्ययन में पता चला था, कि केटामीन के उपचार से हिप्पोकैंपस के न्यूरॉन्स सक्रिय हो जाते हैं- मस्तिष्क का वही हिस्सा जिसका संबंध बुनियादी तौर पर याद रखने और सीखने से होता है, और जहां हारमोन सीआरएफ पैदा होता है. पारंपरिक अवसाद-रोधों से हिप्पोकैंपस में नए सेल्स के विकास को बढ़ावा मिलता है, वहीं केटामीन मस्तिष्क के अंदर मौजूद रास्तों को रोशन कर देती है.

लेकिन, अवसाद के शिकार कुछ लोगों (और चूहों) को केटामीन के प्रति प्रतिरोधी पाया गया है. इसके पीछे के आणविक और औषधीय तंत्र अभी तक स्पष्ट नहीं हुए हैं.


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चूहे और इंसान

ऐसा लगता है कि इंसानों के आसपास होते हुए चूहे एक ऐसी तनावी प्रतिक्रिया से गुज़रते हैं, जो 15 मिनट तक उन्हें किसी ट्यूब के अंदर रखने के बराबर होती है.

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पुरुष महिलाओं के मुक़ाबले कही अधिक फेरोमोन्स या वायुजनित हॉर्मोन्स छोड़ते हैं. इनकी गंध चूहों को अपने आसपास दूसरे नर जानवरों की मौजूदगी के प्रति सावधान कर देती है, जिससे उनका तनाव बढ़ जाता है. ये तनावी प्रतिक्रिया दर्द की पीड़ा और संवेदनशीलता (अधिक तनाव या ख़तरे की स्थिति में) पैदा कर सकती है, और इससे लैब के नतीजों पर असर पड़ सकता है.

हालांकि रिसर्चर्स के सेक्स के प्रति चूहों की प्रतिक्रिया में, सामान्य लैबोरेट्री स्टडी नतीजों के लिए स्पष्ट निहितार्थ होते हैं, लेकिन इसके पीछे की प्रक्रियाओं को अभी तक परिमाणित नहीं किया गया है.

शोधकर्त्ताओं को थोड़ी तसल्ली ये है, कि जो चूहे पुरुषों के आसपास रहने से तनाव में आ जाते हैं, वो समय के साथ पुरुषों की मौजूदगी के आदी भी हो जाते हैं. इसके अलावा महिलाओं से आने वाली गंध भी पुरुषों की गंध के असर को काट सकती है.

और ये सिर्फ शोधकर्ताओं का सेक्स ही नहीं है जो संभावित रूप से नतीजों को प्रभावित कर सकता है- स्टडीज़ से पता चला है कि चूहों पर दूसरी तरह के तनावों का भी असर पड़ता है, जैसे उनके पिंजरों की स्थिति और उनके आसपास का वातावरण, उनकी ख़ुराक और नींद का चक्र आदि.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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