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Sunday, 3 November, 2024
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कैसे इन दो कॉमिक्स ने RSS में शामिल होने के लिए युवाओं को प्रेरित किया था

'डॉ हेडगेवार' और 'श्री गुरुजी' ये दो ऐसी कॉमिक्स थीं, जिन्होंने युवाओं को शाखाओं जैसी अवधारणाओं से परिचित कराने और इस विचारधारा की ओर मुड़ने के लिए प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

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नई दिल्ली: साल 2014 यानी जब से भाजपा सत्ता में आई है तब से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) -पार्टी की विचारधारा की जनक- के बारे में जानने की भी उत्सुकता बढ़ी है. आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी. तब से यह संगठन वामपंथी उदारवादियों, अकादमिक हलकों और आम जनता के बीच चर्चा का विषय रहा है.

लेकिन 1980 के दशक में यह संगठन उतना लोकप्रिय नहीं था, जितना आज है. हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए संगठन में युवाओं की भर्ती के लिए खुद को प्रोजेक्ट करने में आरएसएस जुटा हुआ थाऔर इसी मकसद को पूरा करने के लिए डॉ हेडगेवार और श्री गुरुजी के जीवन पर आधारित दो कॉमिक बुक तैयार की गईं थी.

आरएसएस ने अपनी इन दोनों कॉमिक किताबों को, उस समय की लोकप्रिय अमर चित्र कथा शैली में प्रकाशित करवाया था. ये धार्मिक किंवदंतियों, महाकाव्यों, ऐतिहासिक तथ्यों और लोककथाओं पर आधारित थीं.

डॉ हेडगेवार कॉमिक्स मुख्य रूप से आरएसएस के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार के जीवन पर आधारित थी. जबकि ‘श्री गुरुजी’ संगठन के दूसरे प्रमुख और जाने-माने नेता माधव सदाशिव गोलवलकर की कहानी कहती है. दोनों कॉमिक्स की कीमत 3.50 रुपए थी.

‘डॉ हेडगेवार’ को सुधाकर राजे ने लिखा था और इसे नाना वाघ ने चित्रों से सजाया था. वहीं ‘श्री गुरुजी’ को स्वानंद ने लिखा और चित्रण केशवराव वाघ का था.

कॉमिक पुस्तकों ने उन किशोरों के विचारों को हिंदुत्व की ओर मोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिन्हें शाखाओं( आरएसएस की प्रशिक्षण देने की इकाई) जैसी अवधारणाओं से परिचित कराया जा रहा था.

तमिलनाडु के एक लेखक अरविंदन नीलकंदन बताते हैं कि इन कॉमिक किताबों के जरिए ही वह हेडगेवार के व्यक्तित्व से पहली बार रू-ब-रू हुए थे. जब नीलकंदन को उनके पिता ने ये कॉमिक बुक दी थी, उस समय उनकी उम्र 12 साल थी.  नीलकंदन ने ‘ब्रेकिंग इंडिया: वेस्टर्न इंटरवेंशन इन द्रविड़ियन एंड दलित फॉल्टलाइन्स’ सहित अंग्रेजी और तमिल में कई किताबें लिखी हैं.

नीलकंदन ने कहा, ‘मैं कन्याकुमारी में रहता था. आरएसएस धीरे-धीरे अपनी पहचान बना रहा था. लोग शाखाओं में जाने लगे थे. लेकिन आरएसएस के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार से मेरा पहला परिचय इस कॉमिक बुक के जरिए ही हुआ था.’ उन्होंने आज तक अपनी सभी कॉमिक किताबों को संभाल कर रखा हुआ है. वह बताते हैं कि बाद में उन्होंने आरएसएस के एक कार्यालय में अन्य कॉमिक, श्री गुरुजी को भी पढ़ा था.


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उन्होंने कहा, ‘संगठन के संस्थापकों को जानने और समझने में काफी मदद मिली और इसका मुझ पर गहरा असर भी पड़ा था. मुझे कॉमिक्स के तीन हिस्से याद हैं जो अभी भी मेरे पास रखे हैं.’

लेखक ने कहा, ‘ कॉमिक का ये भाग उस घटना से जुड़ा हुआ था, जब हेडगेवार ने महाराष्ट्र में कहीं ‘हिंदू-कॉलोनी ‘ नाम की एक कॉलोनी देखी थी. उन्होंने खुद से पूछा कि हिंदुओं को अपने ही देश में अपने नाम पर एक कॉलोनी बनाने की जरूरत क्यों पड़ी? इससे मुझे यह समझने में मदद मिली कि हिंदू सांप्रदायिक तरीके से व्यवहार नहीं कर सकते हैं.’

‘दूसरा भाग महात्मा गांधी से जुड़ी एक घटना पर आधारित था. महात्मा गांधी भगवा झंडे को ‘प्रणाम’ कर रहे थे  और फिर उनकी डॉ हेडगेवार के साथ बातचीत हुई. कॉमिक के इस हिस्से ने मुझ पर यह छाप छोड़ी कि गांधी हिंदू विरोधी नहीं थे, जैसा कि कई दक्षिणपंथियों ने उन्हें पेश किया था.’

तीसरा भाग में डॉक्टर हेडगेवार हिंदू धर्म में अवतार अवधारणा की आलोचना कर रहे थे – हम अपने आप को दुख और अभिमान को खोने से बचाने के लिए अपने आस-पास नायकों या अवतारों की तलाश शुरू करते हैं. इससे पता चलता है कि आरएसएस एक कट्टरपंथी संगठन नहीं बल्कि एक सुधारवादी संगठन था.’

लखनऊ के एक बिजनेसमैन और आरएसएस के सदस्य  नीरज शर्मा ने कहा कि उनका एक दोस्त संगठन का सदस्य था और उसी के जरिए उन्हें ये कॉमिक मिली थीं.

नीरज कहते हैं, ‘जब मैं स्कूल में था, तब हर समय अपने दोस्त से ‘गुरुजी’ के बारे में कुछ न कुछ सुनता रहता. मैं उनके बारे में कुछ नहीं जानता था. जब मैंने पहली बार उनके बारे में पढ़ा तो उनकी शख्सियत से काफी प्रभावित हुआ. मुझे आश्चर्य हुआ कि हमें हमारे घरों या स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में ऐसी महान हस्तियों के बारे में क्यों नहीं बताया जाता है.’

कॉमिक्स का प्रकाशन जयपुर स्थित ज्ञान गंगा प्रकाशन ने किया था. पब्लिशिंग हाउस के प्रबंधक, जगदीश शर्मा एक रिटायर बैंक कर्मचारी और आरएसएस के सदस्य हैं. उन्होंने कहा कि कॉमिक किताबों ने उन्हें भी काफी प्रेरित किया था.

वह कहते हैं, ‘युवाओं को विचारधारा की समझ बनाने और जानकारी देने के लिए ये काफी महत्वपूर्ण थीं. जब हमें शाखाओं में आमंत्रित किया जाता था, तो हम बच्चे थे. हमें नहीं पता था कि यह क्या है. लेकिन ‘डॉक्टर जी’ और ‘गुरु जी’ पर किताबें पढ़ने के बाद  चीजें साफ हो गई थीं.‘

किताबों को शहरी, अंग्रेजी-मीडियम से पढ़ने वाले बच्चों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था. इन किताबों की भाषा स्पष्ट और सरल थी.

कॉमिक्स को फिर दोबारा प्रकाशित नहीं किया गया

जगदीश भी नहीं जानते कि इतनी लोकप्रिय होने के बावजूद इन कॉमिक पुस्तकों को दुबारा प्रकाशित क्यों नहीं किया गया.

वह कहते हैं, ‘ इसका दूसरा भाग आने वाला था. लेकिन इस पर काम नहीं हो पाया. यह बेहद लोकप्रिय था…(लेकिन) आज इसकी लगभग कोई मांग नहीं है. अब कई प्रकाशक आरएसएस के इन नेताओं की जीवनी पर रंगीन किताबें बनाने के व्यवसाय में आ गए हैं, इसलिए हमने इसे प्रकाशित करना बंद कर दिया है.’

उन्होंने यह भी कहा कि शायद संगठन दूसरे भाग को प्रकाशित करने के लिए ‘उपयुक्त डिजाइनर और लेखक’ नहीं खोज पाया था.

जगदीश बताते हैं, ‘यह आरएसएस के दायरे में कोई रहा होगा. हमें नहीं पता कि इसे बनाने वाला जिंदा है या नहीं. इसमें कई प्रचारक ( पूरी तरह संगठन से जुड़े स्वयंसेवक) शामिल थे. प्रचारक पहले इन पब्लिशिंग हाउस को चलाया करते थे. इतनी बड़ी जिम्मेदारी लेने के लिए किसी एक भरोसेमंद व्यक्ति का होनी जरूरी है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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