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सोमवार, 23 जून, 2025
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ताडोबा बाघ अभयारण्य में लौटे दुर्लभ प्रजाति के पक्षी

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(तस्वीर सहित)

(मनीषा रेगे)

मुंबई, 13 अप्रैल (भाषा) महाराष्ट्र के चंद्रपुर में ताडोबा अंधारी बाघ अभयारण्य (टीएटीआर) के प्राकृतिक घास के मैदानों में दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियां देखी जा रही हैं। अधिकारियों के अनुसार, यह प्राकृतिक घास के मैदान 19 साल पहले छह गांवों को मूल क्षेत्र से स्थानांतरित करने के कारण बने हैं।

‘बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ (बीएनएचएस) ने महाराष्ट्र में लुप्तप्राय पक्षियों के संरक्षण प्रजनन परियोजना की शुरुआत की है, जिसमें ‘लेसर फ्लोरिकन’ जैसे पक्षी शामिल हैं। इस पक्षी को पिछले तीन-चार वर्षों में ताडोबा और उसके आसपास देखा गया है।

मुंबई स्थित वन्यजीव अनुसंधान संगठन वर्तमान में संरक्षण परियोजना के लिए, विशेष रूप से गांवों के स्थानांतरण के बाद, विदर्भ क्षेत्र में स्थित बाघ अभयारण्य की क्षमता का आकलन कर रहा है।

‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में बीएनएचएस के निदेशक किशोर रिठे ने टीएटीआर को भारत के सबसे सफल और जैविक रूप से समृद्ध बाघ परिदृश्यों में से एक बताया। उन्होंने कहा कि इस अभयारण्य में 100 से अधिक बाघ रहते है।

उन्होंने बताया कि 2006 में शुरू हुई प्रक्रिया के तहत मुख्य क्षेत्र से आधा दर्जन गांवों को स्थानांतरित करने के बाद 926 हेक्टेयर में फैला क्षेत्र, जिसमें कभी बस्तियां और कृषि क्षेत्र थे, अब घास के मैदानों में बदल गया है, जहां न तो मनुष्य हैं और न ही पालतू पशु।

उन्होंने कहा, ‘‘गांवों को स्थानांतरित करने का उद्देश्य था कि बाघों के प्रजनन के लिए सुरक्षित क्षेत्र सुनिश्चित किया जा सके। इसके सकारात्मक परिणाम मिले हैं, लेकिन इसके साथ ही घासभूमि पक्षी प्रजातियों की भी क्षेत्र में वापसी देखी गई है। ‘लेसर फ्लोरिकन’ के अलावा ‘येलो-वॉटल्ड लैपविंग’ और ‘पेंटेड सैंडग्रोस’ जैसे पक्षी भी यहां देखे जा रहे हैं। यह (पक्षियों का इस क्षेत्र को अपना आवास बनाना) सकारात्मक और अच्छा संकेत है। ’’

रिठे के अनुसार, ‘लेसर फ्लोरिकन’ सूखी घासभूमि और झाड़ीदार क्षेत्रों में पाई जाती है। यह जमीन पर अंडे देती है और कीड़े, बीज और जामुन पर निर्भर रहती है। प्रजनन काल के दौरान पर्याप्त घास या फसल का होना इसके लिए बेहद आवश्यक है।

उन्होंने बताया कि कुछ राज्यों तक सीमित यह लुप्तप्राय पक्षी, लुप्त होते घास के मैदानों के कारण खतरे में है।

उन्होंने कहा कि देश में इस लुप्तप्राय पक्षी की संख्या 500 से भी कम है।

एक अधिकारी ने बताया कि टीएटीआर प्रशासन ने घास विशेषज्ञ डॉ. जी. डी. मूरतकर के मार्गदर्शन में घास के प्लॉट तैयार किए हैं और उनका प्रचार-प्रसार किया है।

रिठे ने कहा, ‘‘गांवों के स्थानांतरण और वैज्ञानिक ढंग से तैयार किए गए मैदानों की वजह से अब ‘लेसर फ्लोरिकन’ जैसे पक्षियों के यहां बसने और उनके प्रजनन की संभावनाएं बढ़ गई हैं। उन्होंने कहा, ‘हम टीएटीआर प्रशासन के साथ मिलकर घास के मैदानों को लेसर फ्लोरिकन के लिए आकर्षक बनाने के लिए काम करेंगे।’

भाषा

राखी दिलीप

दिलीप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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