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रविवार, 20 अप्रैल, 2025
होमदेशउत्तराखंड में चकराता का दुर्लभ ‘देहरादून स्ट्रीम मेंढक’ विलुप्ति की कगार पर, वैज्ञानिकों ने जताई गंभीर चिंता

उत्तराखंड में चकराता का दुर्लभ ‘देहरादून स्ट्रीम मेंढक’ विलुप्ति की कगार पर, वैज्ञानिकों ने जताई गंभीर चिंता

IUCN ने इस मेंढक को ‘गंभीर रूप से संकटग्रस्त’ श्रेणी में रखा है. हालांकि, IUCN के नक्शे में दिखाया गया है कि ये मेंढक भगीरथी इलाके में भी पाया जाता है, लेकिन हाल ही में जब वहां जांच की गई, तो वहां भी इसका कोई नामोनिशान नहीं मिला.

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नई दिल्ली: उत्तराखंड की जैव विविधता पर एक गंभीर संकट मंडरा रहा है। चकराता क्षेत्र में पाई जाने वाली दुर्लभ मेंढक प्रजाति ‘देहरादून स्ट्रीम मेंढक’ (अमोलोप्स चक्रटेन्सिस) अब लगभग विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी है. देश के अग्रणी वैज्ञानिक संस्थानों के साझा शोध में यह चौंकाने वाला निष्कर्ष सामने आया है.

यह अध्ययन 2021 से 2024 के बीच भारतीय वन्यजीव संस्थान, आईयूसीएन एसएससी उभयचर विशेषज्ञ समूह, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, जैव विविधता अनुसंधान और संरक्षण फाउंडेशन और ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मिलकर किया. साइंटिस्ट विशाल कुमार प्रसाद ने बताया कि यह मेंढक पिछले 30 वर्षों से किसी भी वैज्ञानिक या शोधकर्ता को दिखाई नहीं दिया है.

1992 में पहली बार इस प्रजाति का होलोटाइप नमूना जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के देहरादून संग्रहालय में संग्रहित किया गया था. इसके बाद से आज तक इस मेंढक की कोई पुष्टि नहीं हो पाई है. विशाल कुमार प्रसाद और उनकी टीम ने चकराता लैंडस्केप में इसकी टाइप लोकेलिटी और आस-पास के इलाकों की धाराओं में व्यापक सर्वे किया, लेकिन न वयस्क मेंढक और न ही उसके टॉडपोल्स का कोई सुराग मिला.

इस मेंढक की सबसे खास बात यह है कि यह स्थानीय प्रजाति है और केवल चकराता क्षेत्र में ही पाई जाती है. यह साफ, ठंडी और बहती धाराओं में रहना पसंद करते हैं. इसकी उपस्थिति किसी क्षेत्र की जल गुणवत्ता और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का संकेत मानी जाती है.

लेकिन वैज्ञानिकों ने पाया कि इस दुर्लभ प्रजाति का प्राकृतिक आवास अब भारी प्रदूषण की चपेट में आ चुका है. धाराएं प्लास्टिक कचरे जैसे बोतलों, रैपर्स और थैलियों से भरी हुई हैं, जो स्थानीय होटलों, रिसॉर्ट्स और अनियोजित पर्यटन की देन है. इससे पानी की गुणवत्ता तो खराब हुई ही है, मेंढकों के जीवन चक्र पर भी गंभीर असर पड़ा है.

साइंटिस्ट विशाल कुमार प्रसाद की टीम रिसर्च करते हुए | स्पेशल अरेंजमेंट
साइंटिस्ट विशाल कुमार प्रसाद की टीम रिसर्च करते हुए | स्पेशल अरेंजमेंट

प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) ने इस मेंढक को ‘गंभीर रूप से संकटग्रस्त’ श्रेणी में रखा है. हालांकि, IUCN के नक्शे में दिखाया गया है कि ये मेंढक भगीरथी इलाके में भी पाया जाता है, लेकिन हाल ही में जब वहां जांच की गई, तो वहां भी इसका कोई नामोनिशान नहीं मिला.

ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर कुमुदानी बाला गौतम ने बताया, “मैंने हर जगह देखा, हर मौसम में खोजा, लेकिन यह मेंढक अब नदारद है. यह केवल एक प्रजाति का गायब होना नहीं है, बल्कि हमारी पारिस्थितिकी में असंतुलन का संकेत है.”

उन्होंने आम लोगों से अपील की है कि वे प्राकृतिक संसाधनों का जिम्मेदारी से उपयोग करें, जंगलों और धाराओं में कचरा न फेंकें, प्लास्टिक का प्रयोग कम करें और किसी भी मेंढक की जानकारी तुरंत वन विभाग या वैज्ञानिकों तक पहुंचाएं.

अमोलोप्स चक्रटेन्सिस को बचाना सिर्फ एक मेंढक को बचाना नहीं है — यह नदियों, खेतों और जीवनशैली की रक्षा का प्रतीक है. अगर अब ठोस संरक्षण प्रयास नहीं किए गए, तो उत्तराखंड एक अनमोल जैविक धरोहर को हमेशा के लिए खो सकता है.


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