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Thursday, 28 March, 2024
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राम मंदिर ट्रस्ट कह रहा अयोध्या भूमि सौदा साफ-सुथरा, लेकिन मालिकों का ‘लापता’ होना कई सवाल उठा रहा

इस सौदे को लेकर अनियमितताओं के आरोप लगे थे क्योंकि दो कारोबारियों ने अयोध्या की जमीन 2 करोड़ रुपये में खरीदने के ‘10 मिनट’ के भीतर ही इसे राम मंदिर ट्रस्ट को 18.5 करोड़ रुपये में बेच दिया था.

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अयोध्या: इस समय जबकि अयोध्या राम मंदिर ट्रस्ट की तरफ से जमीन खरीदे जाने को लेकर वित्तीय अनियमितता के आरोप लग रहे हैं, ऐसा लगता है कि कि भूखंड के मूल मालिक लापता हो गए हैं.

कुसुम पाठक और हरीश पाठक ने इस साल 18 मार्च को अयोध्या रेलवे स्टेशन के पास स्थित 1.2 हेक्टेयर जमीन दो कारोबारियों को 2 करोड़ रुपये में बेची थी. विपक्षी नेताओं का आरोप है कि दो कारोबारियों ने पाठक दंपति से यह भूखंड खरीदने के ‘10 मिनट’ के भीतर ही इसे राम मंदिर निर्माण के लिए स्थापित ट्रस्ट श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र को 18.5 करोड़ रुपये में बेच दिया था.

इस बीच, कुसुम और हरीश पाठक अयोध्या से लगभग 35 किलोमीटर दूर बस्ती जिले की हरैया तहसील के साकिन पाठकपुर गांव स्थित दो मंजिला इमारत के अपने घर पर नहीं मिले हैं. सोमवार सुबह जब दिप्रिंट उनसे मिलने पहुंचा तो दंपति घर पर नहीं थे और देर रात तक नहीं लौटे. दिप्रिंट मंगलवार सुबह एक बार फिर उनके घर पहुंचा लेकिन पाठक दंपति तब भी वहां नहीं मिले.

सोमवार को उनके पड़ोसियों ने कहा कि दंपति शायद ‘शहर से बाहर गए हैं’ क्योंकि उन्होंने पूरे दिन वहां नहीं देखा था.

एक पड़ोसी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘उन्होंने (पाठक ने) जमीन के कई टुकड़े बेचे हैं. वह कोई प्रॉपर्टी डीलर तो नहीं हैं लेकिन उनका काम मिलता-जुलता ही है. वह अयोध्या में जमीन खरीदते-बेचते रहते हैं. वह हम लोगों से ज्यादा बातचीत नहीं करते.’

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इस रियल एस्टेट सौदे में कई पहेलियों को सुलझाने के लिए पाठक दंपति की टिप्पणी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. उन्होंने 18 मार्च 2021 को एक प्रॉपर्टी डीलर सुल्तान अंसारी और उनके कारोबारी सहयोगी रवि मोहन तिवारी को यह जमीन बेची थी.

श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने हालांकि सोमवार शाम एक बयान जारी कर कहा कि भूमि सौदा पूरी तरह पारदर्शी है और लोगों को किसी भी ‘दुष्प्रचार’ में भरोसा नहीं करना चाहिए. राय ने कहा कि ट्रस्ट को जमीन बेचने वालों (दो कारोबारियों) ने 2011, 2017 और 2019 में इसके लिए समझौतों को अंजाम दिया था और उन्हें भुगतान की गई अंतिम कीमत बाजार मूल्य से काफी कम है.

ट्रस्ट के मुताबिक, बागबिजेसी में यह भूखंड राम मंदिर परिसर के लिए जमीन के अन्य टुकड़ों के अधिग्रहण के कारण विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए खरीदा गया था.

राय ने कहा, राम जन्मभूमि मंदिर में हम परिसर को भक्तों के लिए सुरक्षित और आरामदायक बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए निर्माणाधीन क्षेत्र के आसपास कई अहम भूखंड परस्पर सहमति से खरीदे जा रहे हैं. तीर्थक्षेत्र ने तय किया है कि इससे विस्थापित हुए हर व्यक्ति या संस्था को कहीं और बसाया जाए.


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ट्रस्ट का बयान और पाठक दंपति को लेकर सवाल

चंपत राय ने अपने बयान में कहा, ‘मौजूदा विक्रेता (अंसारी और रवि मोहन) ने वर्षों पहले ही एक निर्धारित कीमत पर एक पंजीकृत समझौता किया था, और 18 मार्च को बैनामा के बाद उन्होंने इसे ट्रस्ट को बेच दिया.’

उन्होंने कहा, ‘राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से ही बहुत सारे लोग अयोध्या में जमीन खरीदने आने लगे थे और जमीन की कीमतें अचानक बढ़ गई थीं. विचाराधीन भूमि रेलवे स्टेशन के बहुत करीब है और इसलिए खासी अहमियत भी रखती है. हमने इसे खरीदा है.’

राय की तरफ से बयान जारी करने से कुछ घंटे पहले ही दोनों कारोबारियों में से एक रवि मोहन तिवारी ने दिप्रिंट को बताया था, ‘2011 में हमने पाठक के साथ एक करार किया था कि वह जमीन को 2 करोड़ रुपये में बेचेंगे. उन्होंने अपना वादा पूरा किया. इसके बाद हमने अपनी समझ के अनुसार इस जमीन को ट्रस्ट को बेच दिया. न तो ट्रस्ट को रेट से कोई दिक्कत है और न ही हमें कोई दिक्कत है.’

यह पूछे जाने पर कि क्या वह दिप्रिंट को 2011 का अनुबंध दस्तावेज दिखा सकते हैं, तिवारी ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि अगर कोई जांच होती है तो वह इसे दिखाएंगे.

प्रॉपर्टी डीलर अंसारी सोमवार को पूरे दिन अयोध्या स्थित अपने घर में नहीं मिले. उनके परिवार के सदस्यों ने सोमवार की सुबह कहा कि वह ‘किसी व्यावसायिक सौदे के लिए बाहर गए हैं’ और शाम को जब दिप्रिंट फिर से उनके घर पहुंचा तब भी यही बात दोहराई गई.

चंपत राय के बयान और तिवारी की टिप्पणी ने पाठक दंपति को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. 2011 के 2 करोड़ रुपये के कांट्रैक्ट पर वे हस्ताक्षर क्यों करेंगे और वह इसे 10 साल बाद इसे उसी कीमत पर क्यों बेचेंगे, खासकर जब राम मंदिर निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अयोध्या में जमीनों का बाजार मूल्य आसमान छूने लगा है? 2017 और 2019 में उन्होंने उसी जमीन के लिए और क्या करार किए थे?

इससे पहले, आप सांसद संजय सिंह और समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक पवन पांडे ने रविवार को लखनऊ और अयोध्या में अलग-अलग प्रेस कांफ्रेंस कर जमीन के सौदे में वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाया.

उनके मुताबिक, ‘18 मार्च को इसे (जमीन को) शाम 7.10 बजे खरीदा गया था. पांच-दस मिनट बाद वही जमीन राम जन्मभूमि ट्रस्ट और चंपत राय ने अंसारी और तिवारी से 18.5 करोड़ रुपये में खरीद ली. आरटीजीएस के जरिए 17 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए गए.

यद्यपि ट्रस्ट का कहना है कि भूमि सौदे में पूरी पारदर्शिता बरती गई थी, उसकी तरफ से इन आरोपों पर कोई जवाब नहीं दिया गया है कि मात्र दस मिनट के अंतर पर एक ही भूमि के दो सौदे हुए और उनकी कीमत में 16.5 करोड़ रुपये का अंतर था.


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गवाहों ने खरीद को वैध बताया

जमीन के सौदे के दो गवाह थे, जिनमें राम जन्मभूमि ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा और अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय शामिल हैं.

उपाध्याय ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘ये आरोप झूठे हैं. जमीन बाजार भाव पर खरीदी गई थी. चूंकि मैं मेयर हूं, मैं गवाह बन गया. यह सौदा पहले विक्रेता (पाठक) और खरीदार (अंसारी) के बीच सालों पहले शायद 2011 में हुआ था. उन्होंने उस करार का पालन किया. फिलहाल उस क्षेत्र के लिए 18.5 करोड़ रुपये की कीमत ज्यादा नहीं है.’

यह पूछे जाने पर कि 2 करोड़ रुपये का भूखंड 10 मिनट के अंदर 18.5 करोड़ रुपये का कैसे हो सकता है, जैसा आरोप लगाया गया है, महापौर अपने रुख पर टिके रहे कि खरीद वैध थी.

उन्होंने कहा, ‘यह आज के सर्किल रेट पर आधारित है. इसकी कीमत 5.8 करोड़ रुपये है. अधिग्रहण के लिए सरकार सर्किल रेट से चार गुना ज्यादा देने को तैयार रहती है. इसलिए 18.5 करोड़ रुपये भी कम ही है. यह कोई बुरा सौदा नहीं था. अब लोग इस पर राजनीति कर रहे हैं.’

दूसरे गवाह अनिल मिश्रा ने भी आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि ट्रस्ट जल्द ही आरोपों को स्पष्ट करेगा.

सौदे में भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाले सपा नेता पवन पांडे ने दिप्रिंट को बताया, ‘क्या 2 करोड़ रुपये की जमीन सोना देने लगी थी जो उसे कुछ ही मिनटों बाद 18.5 करोड़ रुपये में खरीद लिया गया था? महापौर ऋषिकेश उपाध्याय के साथ ट्रस्टी भी गवाह हैं. क्या ट्रस्ट के सदस्यों के पास ऐसा कोई दस्तावेजी साक्ष्य है कि उन्होंने गलत सौदा नहीं किया? अगर हैं तो क्यों नहीं दिखा रहे हैं? भूमि बेचने वाले मीडिया के सामने क्यों नहीं आ रहे हैं? उन्हें कौन रोक रहा है?’

अयोध्या के सर्किट हाउस में सोमवार को दिनभर ट्रस्ट के कई सदस्यों और प्रशासन के अधिकारियों की बैठक चलती रही. हालांकि, बाद में उन्होंने किसी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया.


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