जयपुर : पिछले एक महीने से देवनारायण सिंह (जिनकी उम्र 70 साल से ज्यादा है) लगातार राजस्थान पुलिस स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) के दफ्तर के चक्कर लगा रहे हैं. सिंह पुलिस से अपने खोए 5 लाख रुपए के लिए अनुरोध करते हैं या फिर बिल्डिंग के किसी कोने में जाकर रोने लगते हैं.
सिंह उन 1.46 लाख निवेशकों में हैं जिसने संजीवनी कोऑपरेटिव सोसाइटी में निवेश किया है. इसकी राजस्थान और गुजरात में कई शाखाएं हैं. इस सोसाइटी पर निवेशकों के 953 करोड़ रुपए की ठगी का आरोप है.
क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी वित्तीय संस्थान होते हैं जहां सदस्यों द्वारा जमा किए गए पैसों को कम ब्याज दर पर किसी और सदस्य को दिया जाता है. संजीवनी राजस्थान में उन 1200 एजेंसियों में शामिल हैं जिन पर धोखाधड़ी का आरोप है.
सिरोही की रहने वाली पिंकी ने सिंह का दर्द बयान किया है. पिंकी ने दिप्रिंट को बताया कि उसने और उसकी तीन बहनों ने 20 साल पहले अपने भाई को खो दिया था. वहीं लोग अब अपने परिवार का ध्यान रखती हैं.
उन्होंने बताया कि संजीवनी में जमा किए गए 20 लाख रुपए जो उसने सालों में जोड़े थे. अब वो उन्हें खोया हुआ महसूस कर रही हैं.
हम सभी बहनों ने शादी नहीं की है. हमारे अलावा परिवार की देखभाल करने के लिए कोई नहीं है. यही पैसा था जो मुश्किल समय में परिवार की मदद में आता. लेकिन मैं जानती हूं कि अब ये खत्म हो गया है. अगर सरकार भी इसमें हस्तक्षेप करती है तब भी हमारे पैसे के बारे में कौन सोचेगा.
पिछले महीने राजस्थान स्थित संजीवनी क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी पर धोखाधड़ी के मामले में कार्रवाई करते हुए इसके कार्यालय को सील कर दिया गया था.
स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप की अब तक की जांच से पता चलता है कि सोसाइटी गलत तरीके से अकाउंट सीट, पेयमेंट रिकार्ड और वार्षिक लेन-देन की जानकारी रखती थी जिससे ऑडिट करने वालों को धोखा दिया जा सके.
पिछले महीने इस सोसाइटी के चेयरमैन विक्रम सिंह को गिरफ्तार किया गया था. राज्य में काम कर रही ऐसी बहुत सारी जानकारी न सिर्फ संजीवनी कोऑपरेटिव सोसाइटी के बारे में बल्कि इस तरह की हजारों क्रेडिट एजेंसियों के बारे में मिल चुकी है.
तेल से संपन्न हुआ बाड़मेर
भाजपा नेता वसुंधरा राजे के पहले मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान (2003-2008) बाड़मेर जिले में काफी संपन्नता थी.
तेल और खनिज निकाले जाने की वजह से जमीन के दामों में काफी वृद्धि हुई. भदरेश में चलने वाले कोयला खदान कैर्नस मंगला प्रॉसेसिंग टर्मिनल द्वारा चलाया जा रहा था. इस प्रोजेक्ट की वजह से सरकारी कर्मचारियों की सैलरी में काफी वृद्धि हुई थी.
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28 फरवरी 2008 को राय कॉलोनी के छोटे से अपार्टमेंट में सबसे पहले संजीवनी क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी ने अपना दफ्तर खोला था. 2012 आते-आते राजस्थान के कई शहरों में इसने अपनी शाखाएं खोल लीं. उस समय अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार राज्य में चल रही थी.
एसओजी के एक अधिकारी ने बताया कि इस तरह के क्रेडिट सोसाइटी पश्चिमी राजस्थान में काफी सामान्य हैं. इस क्षेत्र में साक्षरता दर बाकी क्षेत्रों के मुकाबले काफी कम है. यहां बैंक की पहुंच भी ज्यादा नहीं है. इसलिए इस तरह के अनौपचारिक वित्तीय संस्थानों ने जगह ले ली है.
क्रेडिट सोसाइटीज जमा किए गए पैसों पर 11 से 13 प्रतिशत ब्याज देती हैं. कभी-कभी ये 16 प्रतिशत तक भी पहुंच जाता है. वहीं पारंपरिक बैंक जमा किए गए पैसों पर 3-6 प्रतिशत ही ब्याज देते हैं.
सूत्रों के अनुसार शुरुआत में जिन लोगों ने संजीवनी में पैसे जमा किए उन्हें इसके बदले अच्छे रिटर्न मिले जिससे उनका इस सोसाइटी पर विश्वास बढ़ गया.
एसओजी के सूत्रों के अनुसार 2012 में कंपनी ने अज्ञात लोगों के नाम से लोन का दावा करने लगी. इस काम के लिए कंपनी आधार कार्ड और पहचान पत्र का इस्तेमाल करती थी. जैसे ही एक बार पैसे आवंटित हो जाते थे तो पैसे कहीं और भेज दिए जाते थे.
जांच में जुटे एक अधिकारी ने बताया कि ऐसा ही एक मामला बाड़मेर से 540 किलोमीटर दूर झुंझुनू में हुआ था. जिसमें एक व्यक्ति के नाम पर 2 करोड़ रुपए का लोन था. व्यक्ति ज्वैलरी की एक दुकान चलाता है. जब एसओजी की टीम उस व्यक्ति के पास गई और जांच की तो पता चला कि उसने कभी भी लोन के लिए आवेदन तक नहीं किया था. संजीवनी में उस व्यक्ति के नाम से 65 हजार रुपए फिक्स्ड डिपॉजिट जमा है.
ऐसे ही मामले जयपुर, टोंक, बूंदी, जोधपुर, पाली और सिरोही से भी आए हैं.
जांच के दौरान पता चला कि गलत तरीके से लोन के लिए सोसाइटी के अधिकारियों ने लगभग 150 करोड़ रुपए की कमीशन तक दी है. ये इसलिए किया गया था कि और भी निवेशक इससे जुड़ सकें.
फर्जी चैयरमेन और दस्तावेजों को डुबाने का प्रयास
एसओजी द्वारा की जा रही जांच की मुख्य बातों में ये है कि फेक लोन किस तरह से जनरेट किया जा रहा है और कैसे दस्तावेजों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
जैसे ही संजीवनी के चेयरमैन को गिरफ्तार किया गया उसके बाद ही जयपुर में बीजेएस कॉलोनी स्थित उसके दफ्तर में पानी घुस गया. सूत्रों ने बताय कि पानी घुसने से काफी सारी फाइल्स डूब गईं. एसओजी की टीम ने काफी सारे दस्तावेजों को निकाला है.
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जांच में पता चला कि सोसाइटी के राजस्थान में 28 शाखाएं और गुजरात में 5 शाखाएं चलती थीं.
सूत्रों ने बताया सोसाइटी के अकाउंट डिटेल में विदेशों में 15 से 20 करोड़ रुपए भेजे जाने की जानकारी मिली है.
एसओजी के सूत्रों के मुताबिक विक्रम सिंह के साथ काम कर रहा एक कर्मचारी जांच में मदद कर रहा है. उसकी मदद से ही सिंह के तीन देशों में रिएल स्टेट का भी बिजनेस चलता है. ये देश न्यूजीलैंड, इथोयिपिया और दुबई हैं.
एसओजी के एक अधिकारी ने हाल ही में इथियोपिया का दौरा किया था. कहा जा रहा है कि यहां भी सिंह की संपत्ति है.
पुलिस को लग रहा है कि विक्रम सिंह नरेश सिंह सोनी नाम के एक व्यक्ति की मदद से पूरे काम को करता था. नरेश सोसाइटी का चार साल कैशियर भी रह चुका है.
सोनी के साथ तीन और लोगों को भी सिंह के साथ काम करने के लिए गिरफ्तार किया गया है.
जब दिप्रिंट ने विक्रम सिंह के वकील से इस बारे में बात करने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि इस मामले के बारे में कोर्ट में दलील दी जाएगी.
उनके वकीलों में से एक ने कहा कि जब ये मामला आएगा तब हम ये प्रूफ कर देंगे के यह सोसाइटी ईमानदारी से काम करती है और इसमें कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है.
अशोक राठी संजीवनी सोसाइटी में 5 सालों तक ब्रांच मैनेजर रह चुके हैं. राठी ने कहा फ्रॉड के बारे में सुनकर मैं चकित रह गया.
उन्होंने कहा कि सरकार की कोऑपरेटिव विभाग से संजीवनी को लगातार 5 सालों तक ए-स्टार रेटिंग मिल चुकी है. यह सब ऑडिट के बाद ही हुआ था.
भ्रामक जानकारियां
राजस्थान कोऑपरेटिव विभाग के शीर्ष सूत्रों के अनुसार राज्य अब इस तरह की एजेंसियों की जांच कर रही है.
एक सूत्र ने बताया कि सिरोही में काम कर रहे रजिस्ट्रार ऑफिस में पूर्व इंस्पेक्टर ने अपने रिटायरमेंट के बाद क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी बनाई थी.
जोधपुर में चल रहे 68 क्रेडिट सोसाइटी में से 35 में लोन जमा नहीं किए गए हैं.
राज्य के नियमों के अनुसार डिप्टी रजिस्ट्रार द्वारा एजेंसी को रजिस्टर किया जाता है. लेकिन एसओजी के सूत्रों के अनुसार 2009 में इस नियम में बदलाव किए गए. जोधपुर के कोऑपरेटिव विभाग ने नए दिशा-निर्देश जारी किए थे. जिसमें जोनल अधिकारी से अप्रूवल को जरूरी बना दिया गया था.
सूत्रों ने बताया कि पिछले कुछ सालों से इन सोसाइटीज में अनियमितता पाई जा रही थी. अतिरिक्त रजिस्ट्रार रैंक अधिकारी इनकी जांच करते थे. रिपोर्ट में अनियमितता की बारे में जानकारी भी दर्ज है. सूत्रों ने किसी भी अधिकारी का नाम नहीं बताया है.
संजीवनी सोसाइटी जैसे और भी कई मामले हैं
इस साल सबसे बड़े कोऑपरेटिव सोसाइटी फ्रॉड का आरोप आदर्श क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी पर लगा था. इस पर 1400 करोड़ रुपए के धोखाधड़ी का आरोप है. नवजीवन कोऑपरेटिव सोसाइटी पर निवेशकों से 400 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी का आरोप है. संजीवनी का इस मामले में तीसरा स्थान है.
जांचकर्ताओं का मानना है कि ऐसे कई और मामले सामने आ सकते हैं.
एसओजी सूत्रों के अनुसार राजस्थान में 50 बड़ी कोऑपरेटिव सोसाइटीज में से अकेले 12 सोसाइटी में 25 हजार करोड़ रुपए जमा हैं.
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बहुत सारे निवेशक ग्रामीण इलाकों में रहते हैं. जैसे ही उन्हें इस स्कैम के बारे में पता चल रहा है बहुत सारे एफआईआर सामने आ रहे हैं.
3 अक्टूबर को 50 से ज्यादा पीड़ितो ने संजीवनी और नवजीवन पर करोड़ों रुपए का घपला करने के मामले में एफआईआर दर्ज कराई है.
स्कैम के बारे में जब राज्य में चल रही कांग्रेस सरकार से पूछा गया तो उनका कहना है कि इस मामले में जांच जारी है.
राजस्थान के कोऑपरेशन मंत्री उदय लाल अंजाना का कहना है कि ऐसी सोसाइटी के चेयरमैन को गिरफ्तार किया गया है. सात अन्य लोग सरकार की नजर में हैं.
केंद्र सरकार के पास ऐसे फ्रॉड के लिए कानून नहीं
जांच में जुटे अधिकारियों का कहना है कि राज्य सरकार के पास ऐसे फ्रॉड से निपटने के लिए कोई कानून नहीं है.
केंद्र सरकार ने 21 फरवरी 2019 में बैनिंग ऑफ अनरेगुलेटिड डिपॉडिट स्कीम्स एक्ट 2019 लागू किया गया था. ऐसे मामलों से निपटने के लिए इसे लाया गया है.
इस कानून के तहत अगर मामला राज्य सरकार के तहत आता है तो उसमें राज्य को सचिव स्तर के अधिकारी को नियुक्त करना है. स्पेशल कोर्ट इन मामलों को देखेगी और दोषियों को सजा देगी.
नियम के तहत दोषी पाए जाने पर 10 साल की जेल और 25 करोड़ जुर्माने का प्रावधान है.
केंद्र सरकार का कानून सीधे तौर पर राज्य में लागू नहीं होगा. इसके लिए राज्य सरकार को इसे लागू करना होगा. राजस्थान में इस तरह का कानून अभी लागू नहीं हुआ है. इसलिए जांचकर्ताओं को भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के मुताबिक ही जांच करनी होगी.
दिप्रिंट को सरकारी सूत्रों से पता चला है कि राज्य में जल्द ही केंद्र सरकार का यह कानून लागू हो जाएगा. विधानसभा के अगले सत्र में इसे पेश किया जा सकता है.
संजीवनी के लिए काम करने वाले ब्रजेश सिंह पिछले कुछ दिनों से अपने घर से भी बाहर नहीं निकल रहे हैं. संजीवनी के लिए निवेशकों को जोड़ने का काम ब्रजेश का ही था. सिंह टोंक के रहने वाले हैं. उनका कहना है कि निवेशकों से उसे काफी सुनना पड़ता है.
उन्होंने कहा, ‘मेरे लिए इस मामले के बाद यही सीख है कि जब तक कंपनी वेरिफाइड न हो तब तक किसी को भी उसमें पैसे लगाने को नहीं कहना चाहिए. चाहे उस कंपनी को ए-स्टार रेटिंग ही क्यों न मिल चुकी हो. मैं कब तक इन लोगों से झूठ बोलूंगा. इनमें से कई सारे लोगों ने बरसों पैसा बचाकर इसमें निवेश किए था.’
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