नई दिल्ली: जैसलमेर पुलिस द्वारा धोखाधड़ी के एक मामले में गिरफ्तार और 31 अक्टूबर को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिए गए पूर्व एसबीआई अध्यक्ष प्रतीप चौधरी को मंगलवार को कोर्ट से जमानत मिल गई.
राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने जैसलमेर की कोर्ट के फरवरी 2020 के आदेश पर रोक लगाने के बाद चौधरी को जमानत दे दी, जिसमें उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था और पुलिस को सेवानिवृत्त बैंकर को गिरफ्तार करने के लिए कहा गया था.
चौधरी को जिस मामले में गिरफ्तार किया गया था, वह 24 करोड़ रुपये के कर्ज से जुड़ा है, जिसे एसबीआई ने 2007 में जैसलमेर में गोदावन समूह—गढ़ रजवाड़ा—के एक प्रोजेक्ट के लिए मंजूर किया था. हालांकि, प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका और कंपनी कथित तौर पर ऋण चुकाने में चूक गई थी. एक बोली के बाद कंपनी की संपत्तियों को एक एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (एआरसी) को सौंप दिया गया था.
कर्जदार हरेंद्र सिंह राठौर ने इसके बाद चौधरी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी कि उन्होंने अल्केमिस्ट एसेट रिकंस्ट्रक्शन नामक एआरसी के साथ ‘साठगांठ’ की और ‘भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया’ ताकि पहले तो उनकी कंपनी पर बकाया कर्ज को गलत तरीके से गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) घोषित किया जा सके. और इसके बाद कंपनी की 200 करोड़ रुपये की संपत्तियों को महज 25 करोड़ रुपये में बेच दिया गया.
राठौर ने यह भी कहा था कि सितंबर 2013 में दो साल का कार्यकाल पूरा करके एसबीआई अध्यक्ष के पद से रिटायर हुए चौधरी अक्टूबर 2014 में अल्केमिस्ट एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (एआरसी) के बोर्ड में शामिल हो गए थे, जिसके बारे में उनका दावा है कि यह सीधे तौर पर ‘हितों को साधने’ का मामला है.
इस केस में 2015 में एक एफआईआर दर्ज की गई थी लेकिन राजस्थान पुलिस की तरफ से क्लोजर रिपोर्ट दाखिल किए जाने के बाद इसे बंद कर दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि यह लोगों के बीच एक ‘सिविल मामला’ था और चौधरी पर कोई आपराधिक केस नहीं बनाया गया.
हालांकि, गोदावन समूह के मौजूदा प्रमोटर राठौर ने 2016 में अदालत में एक प्रोटेस्ट पिटिशन दायर कर चौधरी के खिलाफ फिर से जांच कराने और उनकी गिरफ्तारी की मांग की.
फरवरी 2020 में जैसलमेर की कोर्ट चौधरी की गिरफ्तारी के लिए दायर एक प्रोटेस्ट पिटिशन पर संज्ञान लिया और चौधरी की गिरफ्तारी का आदेश जारी किया.
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‘सिविल प्रकृति का मामला’
2015 की एफआईआर रद्द करने के लिए राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका इस मामले में एक अन्य आरोपी आलोक धीर और एम. ससी की तरफ से दायर की गई थी, जो दोनों ही अलकेमिस्ट एसेट रिकंस्ट्रक्शन के कर्मचारी हैं.
आलोक धीर ने दिप्रिंट को बताया, ‘याचिका 2015 में दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए दायर की गई थी जिसके आधार पर प्रतीप चौधरी को गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने पहले ही इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी लेकिन शिकायतकर्ता, जो कर्जदार है, ने प्रोटेस्ट पिटिशन दायर कर दी थी. इसके बाद निचली अदालत ने चौधरी की गिरफ्तारी का आदेश दिया.’
उन्होंने कहा, ‘अब हाईकोर्ट ने अदालत के फरवरी 2020 के आदेश और सीजेएम जैसलमेर द्वारा इसके बाद पारित सभी आदेशों पर रोक लगा दी है.’
चौधरी के वकील विपिन व्यास ने यह भी बताया कि शिकायतकर्ता ने 2017 में इसी तरह के आरोपों के साथ जयपुर में दूसरी एफआईआर दर्ज भी दर्ज कराई थी, लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. व्यास ने आगे कहा कि हाईकोर्ट ने मंगलवार को यह भी कहा कि 2015 का केस ‘सिविल प्रकृति’ का समान मामला है.
व्यास ने कहा, ‘2017 की एफआईआर को भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था और उसमें भी इसी तरह के आरोप थे. हमें उम्मीद है कि 2015 की एफआईआर को भी जल्द ही हाईकोर्ट द्वारा रद्द कर दिया जाएगा. हालांकि, फिलहाल एक हफ्ते से अधिक समय से जेल में बंद चौधरी अब घर जा सकेंगे.’
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