जोधपुर, 26 मई (भाषा) राजस्थान उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह याचिकाकर्ताओं की आपत्तियों पर उच्च स्तरीय समिति का निर्णय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किये जाने तक प्रस्तावित ग्राम पंचायतों के गठन के लिए अधिसूचना जारी नहीं करे।
न्यायमूर्ति दिनेश मेहता की एकल पीठ ने यह निर्देश शुक्रवार को ग्राम पंचायतों के प्रस्तावित पुनर्गठन को चुनौती देने वाली 40 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि राज्य सरकार ने पुनर्गठन प्रक्रिया के संबंध में 10 जनवरी 2025 को जारी दिशानिर्देशों का घोर उल्लंघन किया है।
याचिकाओं में गांवों को जोड़ने और हटाने में कथित पारदर्शिता की कमी के बारे में चिंता जताई गई है। इनमें दावा किया गया है कि कई नये पंचायत मुख्यालय दूरदराज के गांवों या अपेक्षाकृत कम आबादी वाले गांवों में बनाए जाने की योजना है। इसके अलावा, कुछ प्रस्तावों में ऐसे स्थान शामिल हैं जहां पंचायत भवन बनाने के लिए उपयुक्त भूमि उपलब्ध नहीं है।
यह दावा किया गया है कि अधिक विकसित और अधिक आबादी वाले गांवों को प्राथमिकता देने के बजाय, सीमित बुनियादी ढांचे वाले कम विकसित क्षेत्रों को मुख्यालय के रूप में नामित किया जा रहा है।
राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए महाधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद ने अदालत को आश्वासन दिया कि प्रस्ताव अभी भी प्रारंभिक चरण में हैं।
जिलाधिकारियों से प्राप्त प्रस्तुतियों की समीक्षा के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जिलाधिकारियों को निर्देश दिये गए हैं कि वे स्थानीय निवासियों द्वारा जताई गई आपत्तियों पर गहनता से विचार करने के बाद ही राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजें। दलीलें सुनने के बाद अदालत ने अगली सुनवाई 7 जुलाई के लिए निर्धारित की और विश्वास व्यक्त किया कि जिलाधिकारी सभी आपत्तियों का निष्पक्ष मूल्यांकन करेंगे।
न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि सभी याचिकाओं पर आपत्तियों की सूची महाधिवक्ता कार्यालय के माध्यम से समिति को सौंपी जाए। समिति से अपेक्षा की जाती है कि वह 10 जनवरी 2025 के दिशानिर्देशों और न्यायालय की टिप्पणियों के अनुरूप सभी प्रस्तावों पर निर्णय ले।
भाषा सुभाष माधव
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