बेंगलुरु, 24 जुलाई (भाषा) कर्नाटक के राजनीतिक हलको में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के कार्यकाल पूरा करने को लेकर केवल इसी बात की चर्चा हो रही है कि वह मुख्यमंत्री बने रहेंगे या नहीं जबकि वह एक अनोखा रिकॉर्ड बनाने की ओर अग्रसर हैं।
इस बीच, सिद्धरमैया और उपमुख्यमंत्री व मुख्यमंत्री पद के एक और दावेदार डी. के. शिवकुमार एक बार फिर दिल्ली रवाना हो गए हैं।
मुख्यमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में सिद्धरमैया अब कर्नाटक के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले निर्वाचित मुख्यमंत्री बनने के करीब हैं। वह वरिष्ठ नेता देवराज उर्स के रिकॉर्ड की बराबरी करने के करीब हैं। देवराज उर्स 2700 से अधिक दिनों तक मुख्यमंत्री बने रहे थे।
वैसे तो सिद्धरमैया बार-बार यह दावा करते रहे हैं कि वह अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे, लेकिन इसके बावजूद यह सवाल बना हुआ है कि क्या वह तथाकथित ‘रोटेशनल फॉर्मूले’ के तहत डीके शिवकुमार के लिए पद छोड़ देंगे। शिवकुमार को डीकेएस कहा जाता है।
जून माह के बाद से दोनों नेता तीसरी बार दिल्ली गए हैं, जबकि कांग्रेस की राज्य इकाई में मुख्यमंत्री पद को लेकर असहज शांति व्याप्त है।
राष्ट्रीय राजधानी की अपनी यात्रा के दौरान दोनों नेता (सिद्धरमैया व शिवकुमार) कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से मिल सकते हैं।
कांग्रेस नेतृत्व के आदेश के बाद इस बार विधायकों ने मुख्यमंत्री के बदलने के संबंध में खुलकर कोई टिप्पणी नहीं की है।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कर्नाटक में सत्तारूढ़ दल के अंदर जारी माहौल के संबंध में कहा कि सरकार अपने ढाई साल पूरे करने के करीब है, लेकिन यहां चुपचाप रणनीतियां बनाना और राजनीतिक चालें चलना जारी है।
ऐसा बताया जा रहा है कि सिद्धरमैया व शिवकुमार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की पिछड़ा वर्ग इकाई द्वारा आयोजित ‘‘भागीदारी न्याय सम्मेलन’’ में शामिल होने के लिए दिल्ली गए हैं, लेकिन कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री पार्टी के नेता राहुल गांधी से मुलाकात कर सकते हैं।
पिछली बार जब वह जुलाई के दूसरे हफ्ते में दिल्ली आए थे तो राहुल गांधी से उनकी कोई मुलाकात नहीं हो पाई थी। हालांकि, अब तक इस संबंध में कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
राज्य के राजनीतिक हलकों में, खासकर सत्तारूढ़ कांग्रेस के भीतर इस बात की अटकलें काफी समय से लगाई जा रही हैं कि इस साल के अंत में मुख्यमंत्री बदले जा सकते हैं। यह चर्चा सिद्धरमैया और शिवकुमार के बीच सत्ता साझा करने के समझौते को लेकर है।
ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व ने बिहार चुनाव समाप्त होने तक दोनों पक्षों को इंतजार कराने की रणनीति अपनाई है।
इस समय सिद्धरमैया देश में कांग्रेस के इकलौते ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) मुख्यमंत्री हैं और पार्टी के कई नेताओं का मानना है कि अगर पार्टी उन्हें हटाती है तो इसका असर बिहार चुनाव पर पड़ सकता है क्योंकि यहां ओबीसी मतदाता की चुनाव परिणामों में निर्णायक भूमिका होती है।
एक कांग्रेस नेता ने कहा कि यह कदम ओबीसी हितों के भी खिलाफ माना जाएग क्योंकि राहुल गांधी लगातार इसका (ओबीसी) समर्थन करते हुए नजर आ रहे हैं। जैसे कि वह जातीय जनगणना कराने और आरक्षण बढ़ाने का मुद्दा उठा रहे हैं।
पार्टी पूरी तरह से इस बात को लेकर सतर्क है कि अगर उसने सिद्धरमैया के खिलाफ कोई कदम उठाया तो इसके क्या परिणाम हो सकते हैं। सिद्धरमैया को कर्नाटक में अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलित समुदायों का जबरदस्त समर्थन प्राप्त है और उन्हें अधिकतर विधायकों का भी विश्वास हासिल है।
कांग्रेस ने जब 2023 में राज्य का चुनाव जीता था तो सिद्धरमैया और शिवकुमार के बीच मुख्यमंत्री पद के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा रही थी। पार्टी ने डीकेएस को मना लिया और उन्हें उपमुख्यमंत्री बना दिया।
उस समय ऐसी खबरें थीं कि पार्टी ने ‘‘रोटेशनल फॉर्मूला’’ अपनाया है, जिसके तहत ढाई साल बाद शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। लेकिन पार्टी ने अब तक इस बात की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है।
भाषा प्रीति सुरभि
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