पूर्णिया: बिहार में जातिगत जनगणना का दूसरा दौर शुरू हुए एक हफ्ते से भी कम समय बीता है और इस पर सवाल खड़े होने लगे हैं. पटना हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) में जनगणना के दौरान ट्रांसजेंडरों को “जाति” के रूप में वर्गीकृत किए जाने पर आपत्ति जताई है.
दोस्तानासफर की 32-वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता रेशमा प्रसाद ने मंगलवार को अदालत में दायर अपनी याचिका में कहा कि यादव, ब्राह्मण और भूमिहार जैसी जाति श्रेणियों के साथ ट्रांसजेंडर लोगों को एक कोड आवंटित करना उनके संविधान के तहत दिए गए उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए बने वैधानिक निकाय राष्ट्रीय परिषद के सदस्य प्रसाद, राज्य सरकार द्वारा ट्रांसजेंडरों को जाति कोड -‘22’ के आवंटन का ज़िक्र कर रही थीं, जिससे विवाद खड़ा हो गया है.
अदालत के समक्ष दायर याचिका में रेशमा ने कहा, “ट्रांसजेंडरों को एक जाति के रूप में वर्गीकृत करना असंवैधानिक और मनमाना है क्योंकि यह अनुच्छेद 14, 15, 16, 19 (1) (ए) और 21 के साथ-साथ राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ और अन्य (2014) 5 एससीसी 438 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के तहत असंवैधानिक है.”
अनुच्छेद 14 से 16 ‘समानता के अधिकार’ से संबंधित हैं, अनुच्छेद 19 (1) (ए) ‘भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के बारे में बात करता है, और अनुच्छेद 21 ‘जीवन के अधिकार’ के बारे में है.
इस कदम को लेकर सरकार की आलोचना का जवाब देते हुए बिहार के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने दिप्रिंट से कहा, जनगणना फॉर्म में जाति श्रेणी में “अन्य” का विकल्प भी था. उन्होंने कहा कि जिन लोगों को छोड़ दिया गया, उन्हें इसका विकल्प चुनना चाहिए और सर्वेक्षणकर्ताओं को अपनी जाति भी बतानी चाहिए.
उन्होंने कहा, “यह एक साधारण सी बात है जिसे लोगों को समझना चाहिए.”
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‘जघन्य अपराध’
जनवरी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार ने राज्य में विभिन्न जाति समूहों की पहचान करने के लिए एक सर्वेक्षण शुरू किया था.
पहले दौर में सर्वेक्षकों ने राज्य के सभी 38 जिलों में घरों की गिनती की. दूसरा दौर शनिवार को बख्तियारपुर में सीएम के पैतृक घर से शुरू हुआ जो कि 15 मई तक चलेगा. इस दौरान मासिक आय, जेंडर, जाति और शैक्षणिक योग्यता आदि की जानकारी मांगी गई है.
इस पूरी कवायद पर राज्य के खजाने पर 500 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है.
सर्वेक्षण के हिस्से के रूप में जातियों को 214 विभिन्न समूहों में वर्गीकृत किया गया है, जिन्हें जाति कोड कहा जाएगा. ट्रांसजेंडर विवाद के अलावा, जनगणना में मारवाड़ी, अगरिया और खड़िया जैसी जातियों को छोड़ देने के लिए भी इसकी आलोचना की गई है.
रेशमा ने बताया, 2011 में की गई पिछली जनसंख्या जनगणना के अनुसार, बिहार में 40,000 ट्रांसजेंडर लोग थे. उन्होंने कहा, “ट्रांसजेंडर एक जाति नहीं बल्कि एक जेंडर है, लेकिन जातिगत जनगणना में हमें जाति के रूप में कोडित किया गया है. यदि हमें यह कोड दे दिया जाए तो हमारी जन्म से निर्धारित होने वाली जाति समाप्त हो जाएगी. यह जघन्य अपराध है.”
आलोचना के बावजूद बिहार सरकार अभी तक झुकी नहीं है. प्रसाद के अनुसार, इसका एक कारण यह है कि सर्वेक्षण करने के लिए नोडल निकाय यानी सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) को जनवरी में छपे 3 करोड़ फॉर्म में बदलाव करने में मुश्किल हो रही थी.
‘अधिकारों का हनन’
राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ के 2014 के ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि ट्रांसजेंडर लोगों को जेंडर की पहचान का अधिकार था.
केंद्र सरकार ने ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 में पारित किया था, जिसमें कहा गया है कि ‘ट्रांसजेंडर’ के रूप में मान्यता प्राप्त व्यक्ति को अपने जेंडर की पहचान को “आत्म-धारण” करने का अधिकार होगा.
प्रसाद ने याचिका में अपना पक्ष रखते हुए इन दोनों का ज़िक्र किया है. उनके वकील विवेक राज ने दिप्रिंट को बताया, “ट्रांसजेंडर को जाति मानना उनकी जातिगत पहचान को छीनने जैसा है.”
राज ने उनके लिए एक अलग जाति सर्वेक्षण का सुझाव देते हुए कहा, “ट्रांसजेंडर (व्यक्तियों) को जाति कोड देना गलत है. ट्रांसजेंडर यादव, ब्राह्मण, भूमिहार या किसी अन्य जाति (समूह) से संबंधित हो सकते हैं.” उन्होंने कहा, “आप दूसरों से उनकी जाति पूछ रहे हैं लेकिन आप ट्रांसजेंडर से नहीं पूछ रहे हैं.”
प्रसाद की याचिका में भी इसी मामले का ज़िक्र किया गया है. याचिका में कहा गया है, “एक ट्रांसजेंडर अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) से हो सकता है या अगड़ी से पिछड़े वर्ग की श्रेणी में विभिन्न जातियों से संबंधित हो सकता है. ट्रांसजेंडर को एक जाति के तहत रखना और जाति सर्वेक्षण के उद्देश्य से उन्हें एक अलग जाति कोड आवंटित करना भेदभावपूर्ण और मनमाना है.”
दूसरी ओर सर्वेक्षण के जेंडर कॉलम में केवल तीन विकल्प हैं: पुरुष, महिला और अन्य यह एक और कदम है जिसका प्रसाद विरोध कर रहे हैं.
उनके वकील राज ने कहा, “अन्य के बजाय ट्रांसजेंडर को शामिल किया जाना चाहिए.”
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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