नई दिल्ली: यूक्रेन के युद्धग्रस्त खारकीव शहर के बाहरी क्षेत्र में फंसे भारतीय मेडिकल छात्रों का कहना है कि उन्हें खारकीव रेलवे स्टेशन में किसी भी तरह के बंधक संकट के बारे में कोई जानकारी नहीं है. हालांकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार रात अपने राष्ट्रीय संबोधन में एक बार फिर यह दावा दोहराया था.
दिप्रिंट ने शुक्रवार को जिन भारतीयों से फोन पर बात की, उन्होंने बताया कि अधिकांश छात्र पिछले तीन-चार दिनों में ल्वीव शहर के लिए ट्रेन पकड़ने में कामयाब रहे हैं और जो ऐसा नहीं कर पाए, वो अभी पिसोचिन में सुरक्षित स्थानों पर हैं जो कि खारकीव सिटी सेंटर से 11 किलोमीटर की दूरी पर है.
भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से खारकीव में यूक्रेनी सेना के जवानों द्वारा भारतीय छात्रों को बंधक बना लेने के रूस के दावों को खारिज किए जाने के कुछ ही घंटों बाद गुरुवार को पुतिन ने फिर दोहराया था कि छात्रों को शहर के एक रेलवे स्टेशन पर ‘बंधक’ बनाकर रखा गया है.
भारतीय दूतावास द्वारा नागरिकों को खारकीव छोड़ने का निर्देश देने के एक दिन बाद गुरुवार को दिप्रिंट ने बताया था कि पिसोचिन में लगभग 1,000 भारतीय छात्र फंसे हुए हैं.
छात्रों ने बताया कि वे खारकीव के स्थानीय स्टेशन से ल्वीव की ट्रेन पकड़ने के लिए बुधवार तड़के अपने भूमिगत बम शेल्टर से बाहर निकले थे. हालांकि, स्थानीय निवासियों को प्राथमिकता दिए जाने के कारण केवल छात्राएं भी इसमें सवार हो पाईं.
छात्रों ने बताया कि रेलवे स्टेशन पर किस तरह अफरा-तफरी की स्थिति थी, भारी गोलाबारी भी हो रही थी और प्लेटफार्मों पर जुटी भीड़ के बीच धक्का-मुक्की जारी थी. जो लोग ट्रेन पकड़ने में असमर्थ रहे, वे पैदल ही पिसोचिन की ओर चल पड़े.
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से अब तक वहां दो भारतीय छात्रों की मौत हो चुकी है—एक ने गोलाबारी में जान गंवाई जबकि दूसरे की मौत ब्रेन स्ट्रोक के कारण हुई.
नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री वी.के. सिंह ने शुक्रवार को बताया कि यूक्रेन की राजधानी कीव में कथित तौर पर एक भारतीय छात्र गोली लगने से घायल हो गया है. यह जानकारी ऐसे समय सामने आई है जबकि दो दिन पहले ही विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा था कि सभी भारतीय नागरिक कीव छोड़ चुके हैं.
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‘खारकीव रेलवे स्टेशन पर कोई भारतीय छात्र नहीं हैं’
पिसोचिन में फंसे भारतीय छात्रों को निकालने में क्रोऑर्डिनेट कर रहे, खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र और 30 वर्षीय डॉक्टर स्वाधीन महापात्र ने कहा कि उन्हें खारकीव स्टेशन पर किसी को बंधक बनाए जाने जैसी स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मुझे किसी भी बंधक संकट की जानकारी नहीं है. मौजूदा समय में खारकीव रेलवे स्टेशन पर कोई भारतीय नहीं है.’
उन्होंने पूर्व में दिप्रिंट को बताया था कि पिसोचिन में दो सुरक्षित स्थानों पर करीब 965 भारतीय छात्र मौजूद हैं, इसमें से एक जगह 420 और दूसरी जगह 545 छात्र हैं.
एक छात्रा एकता सरोहा—जिसने इस हफ्ते के शुरू में ल्वीव के लिए एक ट्रेन पकड़ी और पोलैंड की सीमा पार कर गई. शुक्रवार को उसे भी भारत ले आया गया—ने बताया, ‘जहां तक मुझे पता है, अधिकांश भारतीय छात्र खारकीव छोड़ चुके हैं. इसमें से कुछ अभी बाहरी इलाकों में हैं लेकिन मुझे ऐसा कुछ याद नहीं पड़ता कि किसी को स्टेशन पर बंधक बनाकर रखा गया हो.’
इस हफ्ते के शुरू में खारकीव में गोलाबारी में मारे गए भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा ज्ञानगौड़ा के 21 वर्षीय मित्र अनिकेत शीपरमट्टी—जो अभी पिसोचिन में मौजूद है—ने कहा कि ट्रेन स्टेशन पर छात्रों को भेदभावपूर्ण व्यवहार का तो सामना करना पड़ा, लेकिन बंधक बनाए जाने जैसी कोई रिपोर्ट नहीं है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘अधिकांश छात्रों ने या तो पिछले तीन दिनों में ल्वीव के लिए ट्रेनें पकड़ी हैं या फिर पहले से ही सुरक्षित निकाले जाने के लिए सीमाओं पर पहुंच चुके हैं. बाकी यहां पिसोचिन में हैं. वैसे यूक्रेनियन अच्छे लोग हैं. हालांकि, उन्होंने कल रेलवे स्टेशन पर हमारे साथ थोड़ा भेदभाव किया लेकिन हमें किसी बंधक संकट की जानकारी नहीं है.’
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स्टेशन पर पुरुष छात्रों को मारा ‘थप्पड़’, यूक्रेन के सैनिक ‘मददगार’
कुछ छात्राओं ने याद किया कि कैसे ट्रेनों में चढ़ने की कोशिश के दौरान उनके साथी पुरुषों के साथ मारपीट की गई थी.
खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी की 20 वर्षीय छात्रा अंजलि कुमारी और कुछ अन्य छात्राएं, जो ल्वीव जाने वाली ट्रेन में चढ़ने में सफल नहीं हो पाई थीं, ने दिप्रिंट को बताया, ‘स्टेशन पर काफी अफरा-तफरी थी. वे स्थानीय लोगों और भारतीय लड़कियों को प्राथमिकता दे रहे थे. जब मेरे कुछ सहपाठियों ने सवार होने की कोशिश की तो यूक्रेन के स्टेशन गार्डों ने उन्हें थप्पड़ मारे और लातों से भी पीटा.’
21 वर्षीय साहिल सैफी ने आरोप लगाया कि स्टेशन पर यूक्रेन के कुछ सुरक्षाकर्मियों ने छात्रों के चेहरे पर बंदूक तानकर उन्हें धमकाया. साथ ही यह भी बताया कि कैसे कुछ सैन्यकर्मियों ने उस समय उनकी मदद की जब वे हाथ में भारतीय झंडा लेकर पिसोचिन की ओर जा रहे थे.
उन्होंने कहा, ‘जब हम ट्रेनों का इंतिजार कर रहे थे, यूक्रेनी कर्मी हमसे सवाल पूछ रहे थे कि हम कौन हैं और यूक्रेन में क्यों थे. वे हमारे चेहरे की तरफ बंदूकें ताने थे. यह काफी डरावना था.’
सैफी ने आगे बताया, ‘लेकिन कुछ यूक्रेनी सैनिक हमारे लिए काफी मददगार साबित हुए जब हम पिसोचिन जा रहे थे. हम सिटी सेंटर से करीब पांच किलोमीटर दूर थे जहां आगे एक पुल था. हमें इसे पार करना था. पुल पर मौजूद कुछ सैनिकों ने हमें बिस्कुट दिए.’
दिप्रिंट ने पहले बताया था कि रेलवे स्टेशन पर छात्रों ने जोरदार गोलाबारी की आवाज सुनी थी जिसके कारण उन्हें एक नजदीकी भूमिगत मेट्रो स्टेशन में शरण लेनी पड़ी थी. इस समय पिसोचिन में मौजूद 19 वर्षीय छात्रा ख्वाइश थापा के मुताबिक, यूक्रेनी सेना के जवानों ने छात्रों को ऐसी सुरंगों की तरफ जाने का रास्ता दिखाया, जहां वे शरण ले सकते थे.
यह पूछे जाने पर कि उन्हें कैसे पता कि वे यूक्रेनियन थे, थापा ने कहा कि उन सभी की वर्दी पर नीले और पीले रंग का यूक्रेनियन झंडा लगा हुआ था.
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