नई दिल्ली: अभी तक आपने मॉब लिंचिग के बारे में सुना होगा. अखबारों में पढ़ा होगा. हो सकता है अपने आस-पास कहीं होते हुए देखा भी हो. मॉब लिंचिंग का मतलब होता है, हिंसक भीड़ द्वारा किसी एक इंसान को टार्गेट कर के इतना मारना कि वह मर ही जाए. लेकिन अब इसी दुनिया में एक नया टर्म आया है- डिजिटल मॉब लिंंचिंग. इसका सीधा संबंध सोशल मीडिया से और पिछले दिनों सोशल मीडिया पर उत्पीड़न की कहानी लिखने वाली महिलाओं के अभियान ‘मीटू मूवमेंट’ से है.
कहा जा रहा है कि ‘मीटू मूवमेंट’ के दौरान कई महिलाओं ने पुरुषों के खिलाफ फर्जी पोस्ट लिखकर उन्हें प्रताड़ित किया. एक महिला के पोस्ट लिखने से सैकड़ों लोग बिना मुद्दे को ठीक से जाने अपनी प्रतिक्रिया देने लगते हैं. और उस पुरुष के खिलाफ तरह-तरह की बातें लिखने लग जाते हैं. जिससे वो मानसिक रूप से प्रताड़ित तो होता ही है साथ ही इसके बीच समाज में वह निकलने लायक भी नहीं रह जाता है. यहां तक कि कई मामलों में नौबत आत्महत्या तक पहुंच जाती है.
डिजिटल मॉब लिंचिंग के समर्थन कर रहे लोगों का मानना है कि ‘मीटू मूवमेंट’ जिसने भारत में इसे जन्म दिया है, उसकी पहले ही उन्हीं देशों में मृत्यु हो गयी है, जहां से इसकी उत्पत्ति हुई थी.
इस आंदोलन ने कई पुरुषों के पूरे जीवन, करियर और नाम को तबाह कर दिया है. मीटू मूवमेंट एक सोशल मीडिया आधारित न्याय प्रणाली है, जिसने बड़े पैमाने पर पुरुषों के लिए समाज को और अधिक घातक बना दिया. इस तरह के सोशल मीडिया के खेल ने पूरे आपराधिक न्याय प्रणाली के साथ पुरुषों के जीवन को एक निश्चित मौत की ओर अग्रसर कर दिया.
डिजिटल मॉब लिंचिंग का मुद्दा सीधे तौर पर पुरुषों पर होने वाले अत्याचार से जुड़ा है. जिसको लेकर कुछ सालों से एक बहस चल रही है. लोगों की मांग है कि जल्द से जल्द एक पुरुष आयोग का गठन कर उनपर हो रहे अत्याचार से निजात दिलाई जाए और उनका भी पक्ष सुना जाए.
इस मुद्दे को लेकर देश भर में प्रदर्शन हो रहे हैं. पिछले दिनों जंतर- मंतर पर भी ‘मैन वेलफेयर ट्रस्ट’ और ‘सेव फैमिली फाउंडेशन (एसआईएफ)’ के तत्वावधान में एक प्रदर्शन किया गया. जिसमें पुरुषों ने जमकर भाग लिया इसमें कुछ महिलाएं भी उनके साथ थीं.
बता दें, एसआईएफ एक गैर सरकारी पंजीकृत संगठन है जो 2005 से पुरुषों और उनके परिवारों के अधिकारों और कल्याण के लिए काम कर रहा है. इस संस्था का कहना है कि वो देश की सबसे बड़ी और एकमात्र ‘पुरुषों के लिए अखिल भारतीय हेल्पलाइन’ चलाता है, जिस पर हर महीने 5000 से अधिक कॉल आती है.
नाम न बताने की शर्त पर नोएडा में काम कर रहे एक पुरुष अपनी समस्या बताते हैं, ‘ मैं नोएडा में काम करता हूं और मेरी पत्नी गुड़गांव में. हम शाहदरा में रहते हैं. हमारी शादी 11 नवंबर 2016 को हुई थी. शादी के डेढ़-दो महीने बाद ही मेरे पत्नी को मुझसे शिकायत होने लगी. जैसे कि आप शादी से पहले, मुझसे मेरे ऑफिस मिलने आते थे, लेकिन अब नहीं आते.
‘इसके अलावा उसने एक दिन अपने सास-ससुर के साथ रहने से इंकार कर दिया. और इस बात पर मेरा और उसका काफी झगड़ा हुआ. उसने एक दिन गुस्से में आकर घर में काफी उत्पात मचाया. शाम में जब मैं घर आया तो उसने मुझसे कहा कि एक करोड़ रुपये लिए बिना वो मुझे नहीं छोड़ेगी. मेरे पिता उसकी ये हरकत देखकर काफी व्यथित हुए और उस रात वे मेरे साथ वॉक पर गए. और कहा, यह बहुत तेज लड़की है और इसकी हरकतों की वजह से हम सब जेल में जाएंगे. अगली सुबह मेरे पिता की लाश शाहदरा रेलवे ट्रैक पर मिली. हम लोगों ने गाली-गलौज को लेकर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करानी चाही. लेकिन पुलिस ने केस रजिस्टर करने से मना करते हुए कहा कि आप फंस चुके हैं और हमारे यहां कानून ऐसा है कि अब आपको उसके साथ ही रहना होगा.’
क्या अब आप लोग साथ में रहते हैं ?
हम दोनों अलग हो गए. वो अपने मायके में रहने लगी. और उसने मुझे धारा 151 में फंंसाया. मैं एक दिन लॉकअप में बंद रहा. हालांकि मैंने 6 महीने बाद केस जीत लिया. लेकिन पिछले साल उसने अपना मेंटेनेंस लेने के लिए मेरा इन्कम टैक्स प्रूफ लगा दिया.
आपके बिना पूछे?
मेरी पत्नी ने सरकार की वेबसाइट को हैक कर, मेरा डिजिटल सर्टिफिकेट निकाल लिया. यहीं नहीं, उसने डीएसइ की मदद से सरकारी वेबसाइट हैक कर मेरा इन्कम टैक्स डाटा चुरा लिया. लेकिन वो पकड़ में आ गई. और उसके ऊपर साइबर क्राइम के तहत धारा 71, धारा 74, धारा 66 और धारा 468 के तहत एफआईआर रजिस्टर हो गया है. वो इस समय बेल पर रिहा है.
जंतर मंतर पर आए लोगों से मैं बातचीत कर ही रहा था, कि इतने में मंच से एक वक्ता बोल रहे थे,
‘पिछले अक्टूबर में प्रिया रुमानी नाम की महिला ने जाने-माने पत्रकार एमजे अकबर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. अरे वो इतने सालों से कहां थी.’
दिल्ली के ही ओखला से आए और वहीं के एक निजी हॉस्पिटल में काम करने वाले गजोधर बताते हैं कि उनके खिलाफ दो बार केस हुए. एक धारा 376 यानी बलात्कार का और दूसरा 498(ए) मतलब दहेज उत्पीड़न का. साल 2013-14 में उनकी पड़ोसी ने उनके ऊपर रेप का चार्ज लगा दिया था. लेकिन पड़ोसी कोर्ट में कोई सबूत पेश नहीं कर पाई. और दो साल बाद वो केस जीतने में कामयाब रहें. 498(ए) का मामला अभी झेलना पड़ रहा है.
आपको किस तरह की दिक्कतें झेलनी पड़ी ?
हास्पिटल ने मुझे नौकरी से निकाल दिया. मुझे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. एक लाख रुपये का उधार लेना पड़ा. मेरी तनख्वाह 23 हज़ार रुपये महीना है. मुझे अपनी जमीन बेचकर उधार चुकता करना पड़ा.
गजोधर साइकिल से ही चलते हैं. और अपने ऊपर लगे दो आरोपों से वे इतने परेशान हुए हैं कि वे पुरुष आयोग बनाने की मुहिम में जुट गए हैं. उनका एक फेसबुक पेज भी है, जिससे वो इस मुहिम से लोगों को जोड़ रहे हैं. गजोधर ने एक स्पेशल मोबाइल नंबर भी लिया है. जिसकी आखिरी की 6 डिजिट है..376498.
पुरुष आयोग की मांग कर रहे लोग अपनी बात को तार्किक ढ़ंग से रखने के लिए कुछ आंकड़ों के साथ मैदान में उतरे हैं.
जैसे कि एक साल में 91 हज़ार पुरुषों ने आत्महत्या की है. अपने तथ्य को रखने के लिए वे एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो) का आंकड़ा लाए थे. जिसके मुताबिक 100 घरेलू हिंसा के केस में से 57 केसों में पीड़ित एक पुरुष होता है.
इसको लेकर हमने कार्यक्रम के संयोजक अमित से पूछा कि आत्महत्या करने वाले 91 हज़ार पुरुषों में तो कर्ज में डूबा किसान और बेरोजगार युवा भी आ सकते हैं. ऐसे में ये कैसे पता लगता है कि खुदकुशी करने वाले केवल घरेलू हिंसा के शिकार थे ?
एसआईएफ संस्था के अमित बताते हैं, ‘हो सकता है कि इसमें बहुत सारे केस ऐसे हो जहां लोग बेरोजगारी और कर्ज में डूब के मरे हो लेकिन हमारे पास कई ऐसे केस हैं जहां निर्दोष पुरुष लोग घरेलू हिंसा का शिकार हुए हैं. कम से कम हमारी बात तो सुनी जाए. हमारे ऊपर आरोप लगाने से पहले उसकी जांच तो हो. हम जेंडर न्यूट्रैलिटी के पक्ष में है.’
इस मुहिम से कई महिलाएं भी जुड़ी हैं. दीपिका नारायण पुरुष आयोग को लेकर कई सालों से मांग उठा रही हैं. वो दहेज अपराध के दुरुपयोग के खिलाफ ‘मार्टियर्स ऑफ मैरिज’ नाम की डाक्यूमेंटरी भी बना चुकी हैं.
दिप्रिंट से बातचीत में वे कहती हैं, ‘हमारी मांग है कि जब हर किसी के लिए एक आयोग बना है, हर किसी को अपनी समस्या रखने का हक है तो पुरुषों को क्यों नहीं.’
वे आगे कहती हैं, ‘हम इस मुद्दे को लेकर पिछले साल की शुरुआत में ही मेनका गांधी से मिलने गए थे, लेकिन कुछ नहीं हुआ. उल्टा नेशनल कमीशन फॉर वूमेन वाले लोग चिढ़ भी गए, इसकी क्या जरूरत है. लेकिन हमारा ये संघर्ष जारी रहेगी.’
वहीं बरखा त्रेहन का मानना था कि ‘जब पुरुष महिलाओं की मुहिम में उनके साथ कंधे से कंधा मिला सकता है तो हम महिलाएं भी पुरुषों की लड़ाई में उनका साथ क्यों न दें.’
बीजेपी सांसद भी कर चुके हैं इसकी मांग
महिलाओं द्वारा पुरुषों की प्रताड़ना को लेकर होने वाली सुनवाई के लिए पिछले साल बीजेपी के दो सांसद भी पुरुष आयोग की मांग कर चुके हैं. उत्तर प्रदेश के घोसी से लोकसभा सांसद हरिनारायण वर्मा और हरदोई से सांसद अंशुल वर्मा का मानना है कि पीड़ित पतियों की सुनवाई के लिए एक आयोग का गठन जल्द से जल्द होना चाहिए.
प्रदर्शन में आए लोगों ने ‘मीटू मूवमेंट’ को बुराई मानकर, उसका अंतिम संस्कार किया और उसका पिंड दान करते हुए कहा, ‘ भगवान मीटू की आत्मा को शांति दे. ‘