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Tuesday, 24 December, 2024
होमदेशपंजाब में बासमती की कम लागत-अच्छी उपज वाली नई किस्मों को एक 'क्रांति' मान रहे धान उत्पादक

पंजाब में बासमती की कम लागत-अच्छी उपज वाली नई किस्मों को एक ‘क्रांति’ मान रहे धान उत्पादक

इस मौसम में पहली बार उपजाई गईं पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1885 और पूसा बासमती 1886 किस्मों को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया है .

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संगरूर/पटियाला: वे रोगमुक्त हैं, पानी की आधी खपत का उपयोग करते हैं, इनके बढ़ने में लगने वाली लागत कम है, अधिक उपज देते हैं और अधिक कीमत भी प्राप्त करते हैं. इसलिए, इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि पंजाब में उगाई जा रही धान की तीन नई किस्मों को वहां के एक किसान हरप्रीत कालेका ने ‘क्रांतिकारी’ करार दिया है और उनका कहना है कि ये नई किस्में ‘अगले 20 वर्षों तक बाजारों पर राज करेंगी’.

पंजाब के संगरूर जिले के कमालपुर गांव में रहने वाले किसान कालेका पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1885 और पूसा बासमती 1886 की बात कर रहे हैं.

कटाई के इस मौसम में हरप्रीत, जिन्होंने जून में इन तीनों ही किस्मों को लगाया था, एक काफी खुश शख्श नजर आते हैं.

धान की इन किस्मों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (इंडियन कौंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चर रिसर्च आईसीएआर) के तहत आने वाले एक संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट – आईएआरआई) द्वारा विकसित किया गया है.

पूसा 1847, 1885 और 1886 क्रमशः पूसा बासमती 1509, 1121 और 6 , जिनका भारत से होने वाले बासमती चावल के निर्यात में 90 प्रतिशत हिस्सा है, के उन्नत संस्करण हैं. इन किस्मों को विकसित करने की आवश्यकता बैक्टीरियल ब्लाइट और ब्लास्ट जैसे पौधों के रोगों को रोकने के लिए पैदा हुई जो इन किस्मों की उपज और अनाज की गुणवत्ता को काफी अधिक प्रभावित करते हैं. परंपरागत रूप से, इन बीमारियों का उपचार स्ट्रेप्टोसाइक्लिन और ट्राईसाइक्लाज़ोल जैसे रसायनों के माध्यम से किया जाता है.

लेकिन, हरप्रीत के अनुसार, ‘अब चावल आयात करने वाले देशों, विशेष रूप से यूरोपीय देशों ने, इन रसायनों के साथ उपजाए गए चावल को लेने से इंकार करना शुरू कर दिया है.’


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कैसे शुरू हुआ यह बदलाव?

आईएआरआई के निदेशक डॉ ए.के. सिंह ने हमें बताया कि इस साल सितंबर में आयोजित ‘किसान संपर्क यात्रा’ के दौरान उन्होंने किसानों से बात की थी. सिंह ने दिप्रिंट को बताया,’हमने देश के विभिन्न हिस्सों में (इस साल की शुरुआत में) 10,000 किसानों को प्रति एकड़ 1 किलो बीज दिया था… इन किसानों को मेरी सलाह थी कि वे इन बीजों को बाजार में न बेचें और इसके बजाय अपने ब्लॉक और जिले के अन्य किसानों को दें ताकि बासमती की खेती के अधिकतम क्षेत्र को कवर किया जा सके.’

15 अक्टूबर को दिल्ली स्थित पूसा परिसर में आईएआरआई के धान के खेत में तीन किस्मों की समीक्षा के बाद केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने कहा, था ‘इन किस्मों में कीटनाशकों के छिड़काव की जरूरत नहीं होगी, जिससे बासमती चावल की लागत कम होगी और साथ हो साथ रासायनिक अवशेषों से मुक्त चावल का उत्पादन होगा, जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी कीमत दिलाएगा और किसानों की आय को सीधे तौर पर लाभ पहुंचाएगा.’

दिप्रिंट ने गुरुवार को जब हरप्रीत के खेत का दौरा किया, तब पूसा 1886 किस्म की कटाई की जा रही थी, जबकि अन्य किस्में (1847 और 1885) बिकने के लिए तैयार थीं.

उन्होंने कहा, ‘इन किस्मों की खेती की लागत भी पहले की तुलना में कम है, विशेष रूप से कम पानी के उपयोग और कीटनाशकों के उपयोग के कारण. यह विशेष रूप से पूसा बासमती 1847 के मामले में सच है.‘

इस फसल की दो किस्मों- पूसा 1847 और 1885- के लिए स्थानीय मंडी में मिल रही कीमत क्रमश: 4,050 रुपये प्रति क्विंटल और 4,200 रुपये प्रति क्विंटल है. दूसरी तरफ, पुरानी किस्मों को कम कीमतों पर बेचा जा रहा है. बासमती 1509 जहां 2,500-3,600 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है, वहीं बासमती 1121 किस्म की कीमत 3,800-4,000 रुपये प्रति क्विंटल है.

केंद्र सरकार द्वारा 2022-23 के फसल वर्ष के लिए चावल (धान) का निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,040 रुपये प्रति क्विंटल है.

जहां तक इस साल की उपज की बात है, हरप्रीत ने कहा, ‘मैंने कुछ लोगों को स्थानीय मंडी में बुलाया था और उन्होंने कहा था कि यह किस्म (बासमती 1886) 4,500 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत दिलाएगी.’

हरप्रीत का कहना है कि इसके अलावा उनकी पैदावार में भी काफी इजाफा हुआ है. उन्होंने बताया कि इस वर्ष पूसा 1847 किस्म की उपज 31 क्विंटल हुई है, जबकि पूसा 1885 किस्म की उपज 22 क्विंटल थी. इसकी तुलना उन्होंने पहले इस्तेमाल की गई पूसा 1121 किस्म से की, जिसकी उपज 17-18 क्विंटल के आसपास थी.

हरप्रीत पूसा बासमती 1847 को रोपने के 94 दिनों के भीतर और पूसा बासमती (1885) को 145 दिनों में काटने में सफल रहे. उनका कहना है कि पूसा बासमती 1886 में एकमात्र कमी यह है कि इसमें अन्य दो की तुलना में अधिक समय (155 दिन) लगता है, लेकिन चावल की अच्छी गुणवत्ता की वजह से इसकी भरपाई हो जाती है.

हरप्रीत अब धान की इन नई किस्मों के बीज अपने गांव के अन्य किसानों को बांट रहे हैं.

संगरूर जिले के गेहलान गांव के एक अन्य किसान गुरमेल सिंह, जिन्होंने केवल पूसा 1847 बासमती धान की खेती की है, ने हरप्रीत द्वारा व्यक्त भावना के साथ सहमति दिखाते हुए इस किस्म को ‘क्रांतिकारी’ कहा.

पूसा बासमती 1847 के साथ पंजाब के संगरूर जिले के गेहलां गांव में गुरमेल सिंह | विशेष व्यवस्था

अनाज के लंबे दाने, जो उत्पाद की बेहतर गुणवत्ता को दर्शाता है, से संतुष्ट नजर आ रहे गुरमेल इस बात से भी सहमत हैं कि कीटनाशकों का उपयोग न करने के कारण खेती की लागत में काफी कमी आई है.

गुरमेल कहते हैं, ‘बीमारियों के अलावा, लॉजिंग की स्थिति में भी धान की पैदावार नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है. लेकिन यह किस्म (पूसा बासमती 1847) न तो बीमारी से प्रभावित है और न ही इसमें लॉजिंग की स्थिति स्थिति आती है.’

लॉजिंग का मतलब बारिश, तूफान या बीमारियों या अन्य कारणों से फसलों के झुकने से है, जिसके परिणामस्वरूप पौधे का तना कमजोर हो जाता है और वह फसल को खड़े रहने में मदद नहीं कर पाता है, जिसके परिणामस्वरूप उपज की बर्बादी होती है.

गुरमेल के मामले में पूसा बासमती 1847 धान की किस्म की फसल बोने के समय से कटाई के समय तक लगभग 115 दिन लगे.


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पटियाला में है इन तीन किस्मों की ज्यादा मांग

यंग फार्मर्स एसोसिएशन (वाईएफए) – एक कृषि अनुसंधान केंद्र जो नए बीजों और प्रौद्योगिकियों के बारे में भी जागरूकता फैलाता है – के अध्यक्ष भगवान दास ने कहा कि ‘पटियाला के किसान खास तौर पर पूसा बासमती 1847 से प्रभावित हैं.’

उन्होंने कहा, ‘सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन नई किस्मों में कोई बीमारी नहीं देखी गई है और इनकी पैदावार भी पिछली सभी किस्मों की तुलना में बेहतर रही है.‘ दास ने भी कहा कि पूसा 1885 किस्म, जो पूसा बासमती 1121 का एक उन्नत संस्करण है, लॉजिंग की समस्या का सामना नहीं करती है और यह 1121 से थोड़ी बेहतर किस्म भी है. दास ने कहा, ‘जहां तक उपज का सवाल है, पूसा 1886 सबसे उत्कृष्ट किस्म है. इसकी अधिकतम उपज होती है, विशेष रूप से फसल की लंबी अवधि (खेती में लगने वाले सबसे लंबे समय) के कारण. दूसरे, पूसा 1886 के मामले में चावल की गुणवत्ता भी बहुत बेहतर है.’

पटियाला में किसानों के बीच इन तीन नई किस्मों की काफी अधिक मांग देखने को मिल रही है. दास ने कहा, ‘(वाईएफए में) इसका प्रदर्शन देखने वाले किसानों के बीच इन किस्मों की भारी मांग है. वे पहले से ही इन बीजों को अपने लिए बुक (आरक्षित) करना चाहते हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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