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Sunday, 5 May, 2024
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‘न दुश्मनी, न कर्ज फिर क्यों की खुदकुशी’ पंजाब AAP कार्यकर्त्ता की आत्महत्या का कारण तलाश रहा परिवार

62 वर्षीय अजयपाल सिंह गिल को जब फांसी से लटका पाया गया, उससे कुछ दिन पहले ही उन्हें मच्छीवाड़ा कृषि सहकारी विकास बैंक का अध्यक्ष बनाया गया था. पुलिस का कहना है कि उन्होंने अपने पीछे कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा.

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मच्छीवाड़ा: बलजीत कौर कमरे में बैठकर शून्य में ताक रही हैं, यह वही कमरा है जिसमें कथित रूप से उनके पति ने शॉल से खुद को फांसी पर लटका लिया.

बलजीत कौर अपने पति की आत्महत्या के संभावित कारणों को समझने की कोशिश करती हैं, वो जानना चाहती हैं कि आखिर उनके पति ने यह कदम क्यों उठाया लेकिन उनके समझ में कुछ नहीं आता.

62 साल के पूर्व चिकित्सक और आम आदमी पार्टी (आप) के कार्यकर्त्ता अजयपाल सिंह गिल को 25 जून को लुधियाना के मच्छीवाड़ा में फांसी से लटका पाया गया.

मौत से दो दिन पहले ही उन्हें मच्छीवाड़ा कृषि सहकारी विकास बैंक का अध्यक्ष बनाया गया था.

पुलिस के अनुसार, गुल ने अपने बेडरूम में ख़ुद को फांसी से लटका लिया, और अपने पीछे कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा. उनके परिवार के सदस्यों ने दिप्रिंट को बताया कि अपने फोन पर आख़िरी तीन कॉल्स जो उन्हें मिलीं वो उनकी पत्नी की थीं, और ऐसा कोई संदेश नहीं था कि उन्हें किसी से कोई धमकी मिली या किसी का कोई दवाब था.

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केस की शुरुआती जांच करने वाले एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि किसी गड़बड़ी का भी शक नहीं है क्योंकि जिस कमरे में गिल को पाया गया वो अंदर से बंद था, उनकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि मौत फांसी लगने से हुई और शरीर पर कोई बाहरी घाव नहीं थे, और उनके परिवार को इसमें किसी के शामिल होने का शक नहीं है.

दुख में डूबी की गिल की पत्नी ने कहा कि ये सभी सवाल उन्हें ‘पागल’ कर रहे हैं. वो कहती हैं, ‘मेरी तो समझ में ही नहीं आ रहा कि उन्होंने ऐसे क्यों किया’.

गिल अपने पीछे अपनी पत्नी और तीन बच्चे छोड़ गए हैं. उनकी एक बेटी पुणे में रहती है, दूसरी दुबई में है, और उनका बेटा न्यूज़ीलैण्ड में है.

पुलिस सूत्रों का अंदाज़ा है कि हो सकता है कि गिल इस बात से परेशान हों कि उनका परिवार चाहता था कि वो राजनीति छोड़ दें. उनके परिवार के सदस्यों ने स्वीकार किया कि वो उनकी राजनीतिक गतिविधियों से ख़ुश नहीं थे, लेकिन साथ में ये भी कहा कि उन्होंने ‘बस एक दो बार उनसे इसका ज़िक्र किया था’. उन्होंने आगे कहा कि इसे लेकर कोई बहस या झगड़ा तक नहीं हुआ था.

उन्होंने कहा कि मृत पाए जाने से एक रात पहले, गिल ने ये तक ऐलान कर दिया था कि वो राजनीति छोड़ देंगे. लेकिन, उन्होंने कहा कि ग़ुस्सा या निराश होने की बजाय, वो झुंझलाए हुए ज़्यादा लग रहे थे.

गिल के साथी पार्टी कार्यकर्ताओं ने दिप्रिंट को बताया कि वो मच्छीवाड़ा कृषि सहकारी विकास बैंक का अध्यक्ष बनने से बहुत ख़ुश थे, और अपना ‘कार्यकाल शुरू होने का इंतज़ार कर रहे थे’.

पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) हरविंदर सिंह खैरा ने दिप्रिंट से कहा कि चूंकि परिवार को उनकी मौत में किसी के शामिल होने का शक नहीं है- और चूंकि शुरुआती जांच में कोई ऐसे सुराग़ नहीं मिले हैं, जिनसे किसी गड़बड़ी का संकेत मिलता हो- इसलिए जांच जल्द ही पूरी कर ली जाएगी.

डीएसपी खैरा ने कहा, ‘(आपराधिक प्रक्रिया संहिता की) धारा 174 के अंतर्गत जांच शुरू कर दी गई है, और परिवार के सदस्यों के बयानात दर्ज करने के बाद , उनकी सहमति से जांच को बंद कर दिया जाएगा’.

उन्होंने आगे कहा, ‘ये तय हो गया है कि ये ख़ुदकुशी का केस है, लेकिन ये पता नहीं चल पाया है कि उन्होंने ये क़दम क्यों उठाया. उनकी किसी से दुश्मनी नहीं थी, न उन्हें किसी का कर्ज़ चुकाना था, और ना ही हाल में उनका किसी से झगड़ा हुआ था’.

कौन थे अजयपाल सिंह?

मच्छीवाड़ा में जन्मे गिल ने पालमपुर से चिकित्सा विज्ञान में स्नातक डिग्री हासिल की थी, और 20 साल तक उत्तर प्रदेश के बलिया में एक क्लीनिक में प्रेक्टिस की थी. अंत में वो अपने पुश्तैनी घर वापस आ गए, और इलाक़े के एक स्थानीय अस्पताल में दवाओं की एक दुकान खोल ली, जहां उन्होंने 2018 तक काम किया.

गिल के परिवार ने बताया कि उन्होंने ने मच्छीवाड़ा में एक स्थानीय हॉकी टीम भी शुरू की, और अपने ख़ाली समय में वो बच्चों को ट्रेनिंग देते थे.

आप से उनका जुड़ाव 2017 में शुरू हुआ, जब उन्होंने अपनी पत्नी को मच्छीवाड़ा से नगर निगम चुनाव लड़ने के लिए राज़ी कर लिया. हालांकि वो चुनाव हार गईं, लेकिन गिल ने पार्टी गतिविधियों में सक्रियता से हिस्सा लेना शुरू कर दिया, और परिवार के अनुसार, 2020-2021 में वो किसान आंदोलन का भी हिस्सा रहे.

आमतौर से गिल सुबह 6 बजे उठ जाते थे, फिर अपने कुत्ते को बाहर टहलाने के लिए ले जाते थे, रास्ते में ताज़ा फल और दूध ख़रीदते थे, और फिर आकर अपनी पत्नी के लिए चाय बनाते थे. हालांकि उनकी पत्नी ने कहा कि 25 जून को उनकी आंख कुत्ते के भौंकने से खुली थी.

बलजीत कौर ने कहा, ‘सुबह 7.30 बजे जब मैंने कुत्ते के भौंकने की आवाज़ सुनी, तो मैं सोचने लगी कि वो (गिल) अभी तक कैसे सो रहे हैं. मेरी (सबसे बड़ी) बेटी और मैं बग़ल के कमरे में सो रहे थे, इसलिए मैं उठकर उनके कमरे में देखने के लिए गई, लेकिन कमरा अंदर से बंद था. रात में जब वो सोने के लिए गए थे, तो दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ था, लेकिन हो सकता है कि आधी रात में उन्होंने उसे बंद कर लिया हो’.

उन्होंने कहा, ‘मैंने कई बार खटखटाया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला, इसलिए मैं घबरा गई. तब मैं दूसरे कमरे में गई और एक साझा खिड़की से अंदर झांकने की कोशिश की’.

उन्होंने आगे कहा कि खिंचे हुए पर्दों के बीच से झांकते हुए, उन्होंने देखा कि उनके पति छत के पंखे से लटके हुए थे.

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं बिल्कुल दहल गई. मैंने अपना चश्मा नहीं लगाया हुआ था, इसलिए मैंने अपनी बेटी से चेक करने के लिए कहा कि मैंने जो कुछ देखा क्या वो सही है, लेकिन डर के मारे उसकी देखने की हिम्मत ही नहीं हुई’.

उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता था कि किसे कॉल करूं या करूं भी तो कैसे, क्योंकि मेरे पास फोन नहीं है और पति का फोन जिससे मैं कॉल करती थी वो कमरे के अंदर था. मेरे पास कोई नंबर नहीं थे. फिर मैंने अपनी बेटी से कहा कि एक पारिवारिक मित्र से फेसबुक पर संपर्क करे, और उसे हमारे घर आने के लिए कहे’.

परिवार के अनुसार, जब तक पुलिस नहीं आ गई तब तक उन्होंने दरवाज़ा नहीं खोला.

जब पुलिस ने ताला तोड़ा तो उन्होंने सिंह को लटका हुआ पाया. वहां कोई सुसाइड नोट नहीं था, बस कुछ कपड़े पड़े हुए थे और पास में उनका फोन पड़ा हुआ था.

गिल परिवार ने जिस मित्र रंजीत सिंह से मदद मांगी थी, उसने कहा, ‘हमने पुलिस से कहा कि हर चीज़ चेक करे और घर की अच्छे से जांच करे. हमने उन्हें गिल का फोन भी दे दिया, इस उम्मीद में कि शायद उससे कुछ सुराग़ मिल जाए कि उसने ऐसा क्यों किया’.

उन्होंने आगे कहा, ‘ये हर किसी के लिए बेहद हैरान करने वाला था. हमने इसकी कभी ऐसा सोचा भी नहीं था. और ज़्यादा हैरानी की बात ये है कि उनके पास अपने आपको ख़त्म करने की कोई वजह नहीं थी’.

‘सियासत से दूर रहिए

दिप्रिंट को पता चला कि जिस रात गिल ने कथित रूप से ख़ुद को फांसी लगाई, वो सहकारी सोसाइटी चुनावों के सिलसिले में आप कार्यकर्त्ताओं के साथ पूरा दिन प्रचार करने के बाद देर रात घर लौटे थे.

उनके परिवार ने कहा कि बलजीत कौर ने उस दिन उन्हें जल्द घर लौटने के लिए कहा था, क्योंकि उनकी प्रेगनेंट बेटी उस दिन घर आ रही थी, और गिल को वापसी में फल और दूध लेकर आना था. हालांकि वो देर से घर लौटे लेकिन ग्रोसरी लेकर आए थे, और कौर के अनुसार उनका व्यवहार ‘सामान्य’ था’.

लेकिन, वे कथित रूप से उस समय नाराज़ हो गए, जब कौर ने उनसे कहा कि वो ‘राजनीति में ज़्यादा शामिल न हों’. उनके परिवार ने कहा कि उन्होंने ‘गाली’ देते हुए कहा कि ‘मैंने इस्तीफा दे देना है’. लेकिन परिवार ने आगे कहा कि उन्होंने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया, और इसपर कोई लड़ाई नहीं हुई.

गिल की छोटी बेटी अमृता ने कहा, ‘हम उनसे कह रहे थे कि वो राजनीति और नेताओं का साथ छोड़ दें. उस दिन भी चूंकि वो देर से घर लौटे थे, तो मेरी मां ने कहा था कि वो ज़्यादा इसमें न पड़ें. हालांकि इस बात पर वो ज़्यादा ग़ुस्सा नहीं हुए, लेकिन वो थोड़े झुंझलाए हुए थे और उन्होंने कहा कि वो जल्दी ही इसे छोड़ देंगे’.

उसने आगे कहा, ‘फिर वो अपने कमरे में चले गए. दरअसल इस बारे में कोई लड़ाई या बहस हुई ही नहीं, जिससे वो इतने नाराज़ हो गए हों’.

गिल के बेटे गुरकीरत सिंह ने कहा कि परिवार सियासत और नेताओं से उनके जुड़ाव के लेकर ‘बहुत सहज’ नहीं था, उनसे कहा था कि ये सब ‘उनके लिए नहीं था’.

उसने कहा, ‘हम इसे लेकर संशय में थे कि किस तरह उन्हें बस ऐसे ही तरक़्क़ी देकर अध्यक्ष बना दिया गया था. वो पार्टी के कामों में उतने ज़्यादा भी शामिल नहीं थे. इसके अलावा मैं चाहता था कि मेरे माता-पिता न्यूज़ीलैण्ड आकर मेरे साथ रहने लगें, और मैं नहीं चाहता था कि मेरे पिता सियासत में शामिल हों. इससे कभी किसी का भला नहीं हुआ है’.

उसने आगे कहा, ‘मुझे नहीं पता कि उनकी मौत का उनकी सियासत से कोई संबंध था, या उनपर कोई दबाव था. हम कभी नहीं जान पाएंगे’.

‘जवाब की तलाश

दिप्रिंट से बात करते हुए, समराला से आप विधायक जगतार सिंह दयालपुरा ने कहा कि गिल की मौत संगठन के लिए एक धक्का है.

उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ दिन पहले ही उन्हें (मच्छीवाड़ा कृषि सहकारी विकास बैंक का) अध्यक्ष नामज़द किया गया था, और वो बेहद ख़ुश थे. जो हुआ वो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, और हम सभी को इससे गहरा धक्का लगा है’.

‘जिस दिन उन्होंने खुद को फांसी लगाई, वो पूरे दिन पार्टी प्रचार के लिए हमारे साथ थे. हम साथ साथ एक गांव से दूसरे गांव गए थे, लेकिन उन्हें देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगा था कि वो नाराज़ हैं या किसी डिप्रेशन में हैं’.

एक दूसरे आप कार्यकर्त्ता सुखविंदर सिंह गिल ने कहा कि गिल को यक़ीन नहीं हो रहा था कि उन्हें अध्यक्ष पद के लिए चुन लिया गया है. उन्होंने कहा, ‘उन्होंने मुझसे कहा कि मारे उत्साह के उनकी टांगें कांप रही हैं. मैंने उनसे कहा कि उन्हें हमें एक पार्टी देनी चाहिए, और हम हंस पड़े थे. यक़ीन ही नहीं होता कि उन्होंने अपनी जान ले ली है’.

गिल की पत्नी और उनके बच्चों के लिए, उनकी मौत एक ख़ालीपन छोड़ गई है. उन्होंने कहा कि उनकी नज़र में ‘कोई संदिग्ध नहीं हैं, उन्हें किसी से शिकायत नहीं है’, उनके पास बस ‘सवाल’ हैं.

अमृता ने कहा, ‘उनकी किसी से दुश्मनी नहीं थी, किसी से लड़ाई नहीं हुई थी. हमारे ऊपर कोई क़र्ज़ नहीं था, कोई आर्थिक तंगी नहीं थी, तो फिर ऐसा क्यों किया? पूरी ज़िंदगी उन्होंने इतनी मेहनत की, उन्होंने सुनिश्चित किया कि उनके सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा और अच्छी नौकरियां मिलें. अब उनके आराम करने का समय था, रिटायर होने का समय था. उन्होंने ऐसा क्यों किया?’

गुरकीरत ने आगे कहा, ‘वो अपने पीछे हमारे लिए इतने सारे सवाल छोड़ गए हैं’.

उसने कहा, ‘अगर हमें पता चल जाए कि ऐसा क्यों हुआ, तो कम से कम हमें कुछ शांति मिल जाएगी. अब ये सवाल हमें हमेशा परेशान करता रहेगा’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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