scorecardresearch
Friday, 27 December, 2024
होमदेशपंजाब 2024: किसानों ने शुरू किया दूसरा आंदोलन, शिअद को लगे एक के बाद एक झटके

पंजाब 2024: किसानों ने शुरू किया दूसरा आंदोलन, शिअद को लगे एक के बाद एक झटके

Text Size:

चंडीगढ़, 27 दिसंबर (भाषा) पंजाब में इस वर्ष काफी कुछ देखने को मिला, जिनमें किसानों का नया आंदोलन, शिरोमणि अकाली दल के नेताओं का अपनी ‘गलतियों’ के लिए सार्वजनिक रूप से प्रायश्चित करना, पार्टी के नेता सुखबीर सिंह बादल का एक हमले में बाल-बाल बचना जैसी घटनाएं और लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) को मिली करारी हार शामिल है।

लोकसभा चुनाव परिणाम कई कारणों से उल्लेखनीय रहे। कांग्रेस ने राज्य की 13 लोकसभा सीटों में से सात पर जीत हासिल की और कट्टरपंथी सिख उपदेशक अमृतपाल सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीतकर संसद पहुंचे। आप लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने में विफल रही। हालांकि साल के अंत में हुए विधानसभा उपचुनावों में पार्टी को चार में से तीन सीट पर जीत मिली।

किसानों ने निरस्त किए जा चुके कृषि कानूनों के खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शन खत्म करने के दो साल बाद, फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी समेत केंद्र सरकार को अपनी मांगों की याद दिलाने के लिए फरवरी में फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू किया।

संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के नेतृत्व में किसान ‘दिल्ली चलो’ मार्च के लिए पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू और खनौरी सीमा बिंदुओं पर एकत्र हुए। उन्हें हरियाणा के सुरक्षाकर्मियों ने रोक दिया।

खनौरी में प्रदर्शनकारियों और हरियाणा के सुरक्षाकर्मियों के बीच झड़प के दौरान एक किसान की मौत हो गई।

फरवरी से, किसान दो सीमा बिंदुओं पर डेरा डाले हुए हैं और दिल्ली की ओर मार्च करने के कई असफल प्रयास कर चुके हैं।

यह वर्ष विशेष रूप से 104 साल पुराने शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के लिए घटनाओं से भरा रहा, जिसकी राजनीतिक स्थिति पिछले कुछ वर्षों में कमजोर हुई है।

पार्टी ने विद्रोह देखा और 2007 से 2017 तक पंजाब में शिअद की सरकार द्वारा की गई ‘गलतियों’ के लिए अकाल तख्त ने पार्टी को फटकार लगाई।

सिखों की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त ने सुखबीर सिंह बादल को ‘तनखैया’ (धार्मिक कदाचार का दोषी) घोषित किया, जिसके बाद उन्होंने नवंबर में शिअद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।

शिअद नेताओं के एक वर्ग ने उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया था और लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया था।

विद्रोही नेताओं द्वारा अकाल तख्त से संपर्क करने के बाद, बादल और कई अन्य नेताओं ने शिअद के शासन के दौरान की गई ‘गलतियों’ के लिए प्रायश्चित करते हुए ‘सेवादार’ के तौर पर सेवा की और बर्तन और शौचालय साफ किए।

दिसंबर में, जब बादल स्वर्ण मंदिर के प्रवेश द्वार पर व्हीलचेयर पर बैठे थे, तो एक पूर्व खालिस्तानी आतंकवादी नारायण सिंह चौरा ने उन पर गोली चला दी, लेकिन सादे कपड़े पहने पुलिसकर्मी ने हमलावर को काबू कर लिया, जिससे बादल की जान बाल-बाल बच गई।

भाषा जोहेब मनीषा

मनीषा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments