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मंगलवार, 24 जून, 2025
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पुणे स्थित एनआईवी ने निपाह वायरस का पता लगाने के लिए पोर्टेबल किट विकसित की

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नयी दिल्ली, 24 जून (भाषा) भारत में अब निपाह वायरस का पता मिनटों में लगाया जा सकेगा, क्योंकि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के तहत पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) ने वायरस की जांच के लिए एक पोर्टेबल ‘प्वाइंट-ऑफ-केयर’ किट विकसित की है।

एनआईवी के निदेशक डॉ. नवीन कुमार ने कहा कि यह किट प्रयोगशाला के बाहर भी तुरंत परिणाम दे सकती है और इसे जल्द ही केरल तथा पश्चिम बंगाल जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में इस्तेमाल में लाया जाएगा।

डॉ. कुमार ने कहा, ‘‘हमने निपाह वायरस का त्वरित और विश्वसनीय तरीके से पता लगाने के लिए लैंप आधारित पोर्टेबल किट विकसित की है। यह प्रयोगशाला की आवश्यकता के बिना कुछ ही मिनटों में परिणाम देती है। किट का पेटेंट भी कराया गया है।’’

निपाह वायरस मुख्य रूप से चमगादड़ों (फ्रूट बैट) के माध्यम से फैलता है और भारत में कई बार इसका प्रकोप देखा जा चुका है।

पचास प्रतिशत से अधिक मृत्यु दर के साथ, यह सबसे घातक वायरल रोगों में से एक है।

एनआईवी की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रज्ञा यादव ने कहा कि भारत में निपाह वायरस की जांच की क्षमता केवल एनआईवी पुणे में ही है, जहां जीनोमिक विश्लेषण, टीका विकास और दवा परीक्षण भी किए जाते हैं।

निपाह संक्रमण के इलाज के लिए मोनोक्लोनल एंटीबॉडी विकसित करने के वास्ते एनआईवी एक फार्मा कंपनी और अनुसंधान साझेदारों के साथ काम कर रहा है। इसके अतिरिक्त, संस्थान निपाह वायरस के लिए एक स्वदेशी टीके के विकास पर भी काम कर रहा है, जिसके आने वाले वर्षों में परीक्षण के चरणों में प्रवेश करने की उम्मीद है।

डॉ. कुमार ने कहा कि आंकड़ों के अनुसार, भारत में अब तक पाए गए निपाह वायरस के नमूने ‘जीनोटाइप बी’ श्रेणी के हैं, जो बांग्लादेश और भारत दोनों में देखे गए हैं।

वायरस का यह स्वरूप तेजी से फैलता है और गंभीर लक्षण पैदा करता है, जबकि मलेशियाई स्वरूप (जीनोटाइप एम) तुलनात्मक रूप से कम संक्रामक है।

उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में भारत में निपाह वायरस के अधिकांश मामले केरल और पश्चिम बंगाल से सामने आए हैं।

डॉ. कुमार ने कहा कि एनआईवी ने इन राज्यों में विषाणु की जल्द पहचान और रोकथाम के लिए विशेष प्रयोगशालाएं और निगरानी प्रणाली स्थापित की हैं।

साल 1998 से 2018 तक भारत, मलेशिया और बांग्लादेश में निपाह के 700 से ज्यादा मामले सामने आए। भारत में पहला मामला 2001 में पश्चिम बंगाल में दर्ज किया गया था, जहां मृत्यु दर 74 प्रतिशत थी। उसी क्षेत्र में 2007 में फैले इस रोग के प्रकोप में 100 प्रतिशत मृत्यु दर देखी गई।

भारत में निपाह संक्रमण पर छह-सात अध्ययनों का नेतृत्व करने वालीं डॉ. यादव ने खुलासा किया कि एंटीबॉडी सर्वेक्षणों में नौ राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में 20 प्रतिशत चमगादड़ों में निपाह वायरस के एंटीबॉडी पाए गए, जो वायरस के पूर्व संपर्क का संकेत देते हैं।

भाषा वैभव पवनेश

पवनेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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