प्रयागराज, सात अक्टूबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पुरुषों को “उनकी अलग रह रहीं पत्नियों द्वारा प्रताड़ित किए जाने” से “बचाने” के लिए केंद्र सरकार को एक कानून बनाने का निर्देश देने संबंधी जनहित याचिका खारिज कर दी।
जनहित याचिका में देशभर में पुरुषों की दयनीय स्थिति को रेखांकित करने वाले कई समाचारों को संलग्न किया गया था। याचिका में कहा गया था कि मौजूदा कानून महिलाओं के पक्ष में हैं जिनकी वजह से महिलाएं पुरुषों का उत्पीड़न करने और उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाने के लिए प्रोत्साहित होती हैं।
चंद्रमा विश्वकर्मा नाम के व्यक्ति द्वारा दायर इस जनहित याचिका को खारिज करते हुए मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने कहा, “याचिका पर गौर करने से संकेत मिलता है कि कुछ समाचारों के संदर्भों को छोड़कर याचिका में पूरी तरह से सरसरी बयानबाजी की गई है।”
अदालत ने 24 सितंबर, 2025 को दिए अपने आदेश में कहा, “इस याचिका को जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार करने का कोई औचित्य नहीं है।”
याचिका में आरोप लगाया गया है कि आजकल पत्नियां अपने पतियों को परेशान करती हैं और फर्जी मामलों में उन्हें तथा उनके परिजनों को फंसाती हैं, इसलिए अवैध मुकदमों पर रोकथाम के लिए एक कानून बनाने की जरूरत है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि पूर्व में उसने प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल और मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था, लेकिन आजतक कोई कदम नहीं उठाया गया जिसकी वजह से उसने न्याय पाने की उम्मीद में अंतिम प्रयास के तहत उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की।
भाषा सं राजेंद्र जोहेब
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