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Sunday, 6 October, 2024
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पीटीआई ‘फैक्ट चैक’: गोवा में समान नागरिक संहिता का अपना संस्करण (स्वरूप) है

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(रूपेश सामंत)

पणजी, चार अप्रैल (भाषा) उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शपथ लेने के तुरंत बाद कहा था कि उनकी सरकार राज्य में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने के लिए एक समिति बनाएगी। इसे देश में ऐसा करने वाली पहली समिति के रूप में पेश किया गया था। वास्तविकता में इसकी अर्थ ध्वनियां कुछ और है जो इतनी स्पष्ट नहीं है।

यूसीसी का एक संस्करण (स्वरूप) गोवा में पहले से ही मौजूद है। हालांकि इसमें कई अपवाद है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह मूल रूप से ईसाई शिक्षण में स्थापित एक यूरोपीय कानून है। फिर भी, यह गोवा के सभी निवासियों के लिए धर्म, लिंग आदि की चिंता किये बगैर समानता सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त है।

पिछले महीने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में दूसरी बार शपथ लेने वाले धामी ने हालांकि यह भी कहा था, ‘‘शायद यह गोवा में पहले से ही लागू है।’’ विभिन्न मंचों पर कई संगठनों ने उन्हें यह कहते हुए उद्धृत किया कि उत्तराखंड ऐसा करने वाला पहला राज्य होगा।

गोवा के एक वकील एवं कानूनी विशेषज्ञ, राधारो ग्रेसियस ने कहा, “हमारे लिए यह सौभाग्य की बात है कि, हमें विभिन्न धर्मों के कानूनों का कोई अनुभव नहीं है। सभी गोवावासियों के लिए कानून एक समान है।’’

गोवा के पूर्व महाधिवक्ता कार्लोस अल्वारेस फरेरा ने कहा, ‘‘गोवा में समान नागरिक संहिता धर्म, लिंग, जन्म के क्रम आदि के बावजूद सभी पर लागू होती है। इसलिए सभी अधिकार समान रूप से सभी के लिए होते है।’’

गोवा पुर्तगाली नागरिक संहिता 1867 का पालन करता रहा है, जिसे समान नागरिक संहिता भी कहा जाता है। पुर्तगाली शासन से अपनी मुक्ति के बाद, यूसीसी गोवा, दमन और दीव प्रशासन अधिनियम, 1962 की धारा 5(1) के माध्यम से अस्तित्व में है।

विशेषज्ञों ने कहा कि गोवा में एक यूसीसी की निरंतरता हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के साथ-साथ भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 या शरीयत (आवेदन) अधिनियम 1937 को लागू नहीं करने के बराबर है।

फरेरा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘पुर्तगाल, जिसने हमें 1867 में समान नागरिक संहिता दी थी, ने मौजूदा खामियों के कारण 1966 में इसे अपने देश में संशोधित किया है।’’

उनके अनुसार, गोवा में यूसीसी के संस्करण को कुछ खामियों के कारण ‘‘देश में सर्वश्रेष्ठ’’ नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि गोवा के यूसीसी को ‘‘बहुत हद तक हमारे भारत के संविधान के अनुरूप बताया गया है जो समानता के अधिकार की रक्षा करता है।’’ हालांकि, इसकी तुलना अखिल भारतीय यूसीसी से नहीं की जा सकती।

उन्होंने कहा, ‘‘जब हम महिलाओं को सशक्त बनाने की बात करते हैं ..यह एक ऐसा कानून है जो वास्तविक अर्थों में महिलाओं को सशक्त बनाता है।’’ उन्होंने कहा कि यह कमजोरों के अधिकारों की रक्षा करता है।

ग्रेसियस ने कहा, ‘‘गोवा में प्रचलित कानून पुर्तगालियों द्वारा अपने उपनिवेशों के लिए बनाया गया कानून है। यह कानून गोवा, दमन और दीव के लिए विशेष था। अन्य कॉलोनियों के लिए, उपयुक्त संशोधनों के साथ एक समान कानून थे।’’

कानूनी विशेषज्ञ और वकील क्लियोफाटो कॉटिन्हो ने अपनी राय देते हुए कहा कि एक यूसीसी हमेशा अच्छा होता है लेकिन गोवा के पास वास्तव में एक पुर्तगाली नागरिक संहिता है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह कानून देश के अन्य हिस्सों के कानूनों से काफी बेहतर है, ज्यादातर इसलिए क्योंकि यह लैंगिक न्याय प्रदान करता है।’’

संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव पी. डी. टी. आचारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि केंद्र और राज्य दोनों को इस तरह के कानून लाने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि शादी, तलाक, उत्तराधिकार और संपत्ति के अधिकार जैसे मुद्दे संविधान की समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं।

उन्होंने कहा कि एक राज्य विधानसभा उस राज्य में रहने वाले समुदाय के लिए कानून बना सकती है। उन्होंने कहा, ‘‘इसका मतलब है कि स्थानीय विविधताओं को राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानून के माध्यम से पहचाना जा सकता है।’’

लेकिन पूर्व केंद्रीय कानून सचिव पी. के. मल्होत्रा का मानना है कि केंद्र सरकार ही संसद में ऐसा कानून ला सकती है।

मल्होत्रा के अनुसार, हालांकि संविधान का अनुच्छेद 44 पूरे भारत में सभी नागरिकों को संदर्भित करता है, केवल संसद ही ऐसा कानून बनाने के लिए सक्षम है।

संविधान के अनुच्छेद 44 में यह प्रावधान है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।

यूसीसी देश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के चुनावी घोषणापत्र का लगातार हिस्सा रहा है।

भाषा

संतोष देवेंद्र नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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