नयी दिल्ली, 19 मई (भाषा) अस्पतालों में मौजूद ‘स्यूडोमोनास एरुगिनोसा’ नाम का आम, लेकिन खतरनाक जीवाणु चिकित्सकों और नर्सों द्वारा उपयोग किये जाने वाले चिकित्सा उपकरणों में लगी प्लास्टिक को नष्ट करने की क्षमता रखता है। यह भारत समेत पूरी दुनिया में मरीजों की सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है।
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि ‘स्यूडोमोनास एरुगिनोसा’ नामक जीवाणु अस्पताल में होने वाले 30 प्रतिशत संक्रमणों के लिए जिम्मेदार है।
लंदन स्थित ब्रुनेल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया है कि ‘स्यूडोमोनास एरुगिनोसा’ नामक एक दवा-प्रतिरोधी जीवाणु ‘पॉलीकैप्रोलैक्टोन’ नामक प्लास्टिक को नष्ट करने की क्षमता रखता है। इस प्लास्टिक का उपयोग चिकित्सा क्षेत्र में व्यापक रूप से होता है।
यह अध्ययन ‘सेल रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित हुआ है और यह स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में संक्रमण नियंत्रण को लेकर गंभीर चिंताएं उत्पन्न करता है।
शोध में पाया गया कि यह जीवाणु न केवल पॉलीकैप्रोलैक्टोन (पीसीएल) को नष्ट कर सकता है, बल्कि उसे अपने विकास के लिए एकमात्र कार्बन स्रोत के रूप में भी इस्तेमाल कर सकता है।
वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया में एक नया एंजाइम खोजा है, जिसका नाम ‘पीएपी1’
है। इसे जीवाणु के एक खास स्वरूप से निकाला गया। प्रयोगशाला में किए गए परीक्षण में इस एंजाइम ने सात दिन में 78 प्रतिशत प्लास्टिक को नष्ट कर दिया।
शोध में यह भी पाया गया कि इस प्लास्टिक को खाने से जीवाणु और मजबूत हो जाता है और वह बायोफिल्म नाम की चिपचिपी परत बना लेता है, जो उसे दवाइयों और शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली से बचाती है। यही कारण है कि इस जीवाणु से होने वाला संक्रमण जल्दी ठीक नहीं होता और बार-बार हो सकता है।
हालांकि, इस शोध में भारत का नाम नहीं लिया गया है, लेकिन अन्य अध्ययनों से पता चला है कि भारत में भी अस्पतालों में होने वाले 10 प्रतिशत से 30 प्रतिशत तक संक्रमण के लिये यही जीवाणु जिम्मेदार है।
भाषा
योगेश दिलीप
दिलीप
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