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Sunday, 3 November, 2024
होमदेशप्रदर्शनकारी किसान अपनी नाराजगी का इज़हार लोहड़ी में कृषि कानून की प्रतियां जलाकर करेंगे

प्रदर्शनकारी किसान अपनी नाराजगी का इज़हार लोहड़ी में कृषि कानून की प्रतियां जलाकर करेंगे

वसंत की शुरुआत में अधिकतर उत्तर भारत में लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन लोग लकड़ियां इकट्ठी करके जलाते हैं और सुख एवं समृद्धि की कामना करते हैं.

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नयी दिल्ली: दिल्ली सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने कहा कि वह बुधवार को लोहड़ी के मौके पर प्रदर्शनस्थलों पर नए कृषि कानूनों की प्रतियां जलाएंगे.

वसंत की शुरुआत में अधिकतर उत्तर भारत में लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन लोग लकड़ियां इकट्ठी करके जलाते हैं और सुख एवं समृद्धि की कामना करते हैं.

किसान नेता मंजीत सिंह राय ने बताया कि सभी प्रदर्शन स्थलों पर आज शाम कृषि कानूनों की प्रतियां जलाकर वे लोहड़ी मनाएंगे.

प्रदर्शन कर रहे 40 किसान संगठनों का शीर्ष संगठन ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ आज दिन में आगे की रणनीति तय करने के लिए बैठक भी करेगा.

किसान संगठनों ने कल कहा था कि वे उच्चतम न्यायालय की तरफ से गठित समिति के समक्ष पेश नहीं होंगे और आरोप लगाया कि यह ‘सरकार समर्थक’ समिति है. किसान संगठनों ने कहा कि उन्हें तीनों कृषि कानूनों को वापस लिए जाने से कम कुछ भी मंजूर नहीं है.

उन्होंने तीन कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाए जाने के उच्चतम न्यायालय के आदेश का स्वागत किया. हालांकि समिति के सदस्यों की निष्पक्षता पर भी संदेह जताया है.

उच्चतम न्यायालय ने तीन नये कृषि कानूनों को लेकर केन्द्र सरकार और दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे रहे किसान संगठनों के बीच व्याप्त गतिरोध खत्म करने के इरादे से मंगलवार को इन कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगाने के साथ ही किसानों की समस्याओं पर विचार के लिये चार सदस्यीय समिति का गठन किया था.

हजारों किसान केन्द्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले साल 28 नवम्बर से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं.

इस साल सितम्बर में अमल में आए तीनों कानूनों को केन्द्र सरकार ने कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर पेश किया है. उसका कहना है कि इन कानूनों के आने से बिचौलिए की भूमिका खत्म हो जाएगी और किसान अपनी उपज देश में कहीं भी बेच सकेंगे.

दूसरी तरफ, प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों का कहना है कि इन कानूनों से एमएसपी का सुरक्षा कवच और मंडियां भी खत्म हो जाएंगी तथा खेती बड़े कॉरपोरेट समूहों के हाथ में चली जाएगी.

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