रांची, 22 जनवरी (भाषा) पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद अब झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी भारतीय प्राशासनिक सेवा संवर्ग (आईएएस कैडर) के नियमों में केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को एकपक्षीय, कठोर और सहकारी संघवाद की भावना के विपरीत बताते हुए इन्हें तत्काल ‘दफन’ कर देने की प्रधानमंत्री से अपील की है।
सोरेन ने शनिवार को कहा कि केंद्र के इस कदम से संविधान में इस मुद्दे पर विचार विमर्श और सहयोग के लिए की गयी व्यवस्था खत्म हो जायेगी और स्वच्छंदता को बढ़ावा मिलेगा।
उन्होंने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखा पत्र आम लोगों के लिए जारी करते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘‘हमने आईएएस कैडर के नियमों में केंद्र के प्रस्तावित संशोधनों के खिलाफ प्रधानमंत्री कार्यालय को अपनी कड़ी आपत्ति के साथ पत्र लिखा है और स्पष्ट कर दिया है कि प्रस्तावित संशोधन सहकारी संघवाद की बजाय स्वच्छंदता को बढ़ावा देंगे।’’
सोरेन ने ट्वीट में कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि वह मेरे अनुरोध पर विचार करेंगे और नये प्रस्तावों को तत्काल दफन कर देंगे।’’
सोरेन ने पत्र में कहा कि झारखंड सरकार को केंद्र से एक प्रस्ताव मिला है जिसमें आईएएस (संवर्ग) नियमावली, 1954 में कुछ संशोधन प्रस्तावित किये गए हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने 12 जनवरी को लिखे अपने जवाब में ही नये प्रस्तावों पर अपनी असहमति व्यक्त कर दी थी।
पत्र में लिखा है, ‘‘लेकिन इस बीच, हमें अखिल भारतीय सेवाओं के संवर्ग नियमों में प्रस्तावित संशोधनों का एक और मसौदा प्राप्त हुआ है, जो प्रथम दृष्टया, पिछले प्रस्तावों की तुलना में अधिक कठोर और दमनकारी प्रतीत होता है। इसीलिए हमें अपनी घोर आपत्ति और आशंका व्यक्त करने के लिए यह पत्र विवशता में लिखना पड़ रहा है। इस पत्र के माध्यम से मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप तत्काल इन प्रस्तावों को ‘दफन’ कर दें।’’
उन्होंने कहा कि प्रस्तावित संशोधन सहकारी संघवाद की भावना के पूरी तरह विपरीत है और राज्य के अधिकारियों को नियंत्रित करने का एक माध्यम प्रतीत होता हैं जहां केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी से इतर पार्टी की सरकार है।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि यह कदम इसलिए भी उचित नहीं होगा क्योंकि एक तो पहले से ही राज्यों में अखिल भारतीय स्तर के अधिकारियों की कमी होती है, दूसरे मात्र तीन संवर्ग- आईएएस, आईपीएस और आईएफएस- के अधिकारी राज्यों को मिलते हैं और वे भी तय संख्या के मुताबिक नहीं। अगर केंद्र सरकार इन्हें भी अपनी इच्छानुसार राज्य से हटा देगी तो राज्य की योजनाएं प्रभावित होंगी।
उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि केंद्र की भी लगभग सभी योजनाएं राज्य के माध्यम से ही लागू होती हैं। राज्य की योजनाओं को जनता तक पहुंचाने का जिम्मा भी इन्हीं अधिकारियों के ऊपर होता है।
उन्होंने लिखा है कि इस समय यह संशोधन प्रस्ताव लाने का कारण भी साफ नहीं है। यदि केन्द्र में अधिकारियों की कमी प्रस्तावित संशोधनों का मूल कारण है तो केंद्र सरकार को अपने लिए ऐसे अधिकारियों का एक स्थायी कोर संवर्ग बनाने पर विचार करना चाहिए।
उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि झारखंड में अधिकारियों की पहले से ही भारी कमी है। आज की स्थिति में राज्य में आईएएस के स्वीकृत 215 पदों के मुकाबले केवल 140 आईएएस अधिकारी (65 प्रतिशत) कार्यरत हैं, जबकि 149 की स्वीकृत संख्या के विरुद्ध झारखंड में भारतीय पुलिस सेवा के मात्र 95 अधिकारी (64 प्रतिशत) कार्यरत है। इसी प्रकार राज्य में भारतीय वन सेवा संवर्ग के अधिकारियों की स्थिति भी बेहतर नहीं है। राज्य में अधिकारी एक से अधिक विभागों के प्रभार संभाल रहे हैं और अधिकारियों की इस भारी कमी के कारण प्रशासनिक कार्य प्रभावित हो रहा हैं।
मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में कहा है कि किसी अधिकारी की उसके संवर्ग के बाहर अचानक प्रतिनियुक्ति निश्चित रूप से उसके और उसके परिवार के लिए व्यवधान का कारण बनेगी। यह उनके बच्चों की शिक्षा में भी बाधा डालेगी।
आखिर में अपने पत्र में सोरेन ने लिखा है, ‘‘उपर्युक्त सभी संदर्भों के मद्देनजर मैं भारतीय प्राशासनिक सेवा संवर्ग के नियमों में संशोधन के नये प्रस्तावों पर घोर आपत्ति दर्ज कराते हुए आपसे अनुरोध करूंगा कि इन पर पुनर्विचार करें, ताकि संविधान में तय केन्द्र और राज्यों के बीच विचार विमर्श और सहयोग की व्यवस्था एकपक्षीय न हो जाये अथवा स्वच्छंदता न ले ले।’’
भाषा इन्दु अमित सुरेश
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