नयी दिल्ली, 26 जनवरी (भाषा) भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) इस विषय पर अध्ययन करेगा कि भाटी माइंस में मलबे या कंक्रीट जैसे अपशिष्ट को फेंका जाना क्षेत्र की वनस्पतियों और जीवों को किस तरह प्रभावित कर सकता है। भाटी माइंस अब असोला वन्यजीव अभयारण्य का हिस्सा है।
राष्ट्रीय राजधानी में तीन नगर निगमों की ओर से दक्षिण दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) ने 2020 में रेत, कंक्रीट, मलबा जैसे अपशिष्ट को फेंकने के लिए 477 एकड़ के 30 मीटर गहरे चार गड्ढों का उपयोग करने का प्रस्ताव रखा था क्योंकि उनके पास इस तरह का अपशिष्ट फेंकने के लिए कहीं और जगह नहीं है।
राजधानी के फेफड़े माने जाने वाले दिल्ली रिज (वन क्षेत्र) की रक्षा के लिए उच्चाधिकार प्राप्त रिज मैनेजमेंट बोर्ड (आरएमबी) ने प्रस्ताव की जांच के लिए पिछले साल मार्च में पांच सदस्यीय समिति का गठन किया था। पिछले साल 29 जुलाई को हुई बैठक में समिति ने सुझाव दिया था कि क्षेत्र की वनस्पतियों और जीवों पर अपशिष्ट के फेंकने के संभावित असर पर एक अध्ययन किया जाना चाहिए।
वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि डब्ल्यूआईआई इस मामले में पर्यावरण प्रभाव का आकलन करेगा। पांच सदस्यीय समिति में डब्ल्यूआईआई का भी एक प्रतिनिधि है। अधिकारी ने कहा, ‘‘डब्ल्यूआईआई ने इस महीने की शुरुआत में एक प्रस्ताव भेजा था और हमने इसे आरएमबी को भेज दिया है। बोर्ड अपनी अगली बैठक में इस पर फैसला करेगा।’’
उन्होंने कहा कि डब्ल्यूआईआई के अधिकारियों ने वन विभाग को आश्वासन दिया है कि आरएमबी द्वारा अध्ययन प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) जल्द से जल्द पूरा किया जाएगा।
इससे पूर्व, अधिकारियों ने कहा था कि मलबा, या कंक्रीट जैसे अपशिष्ट को खदानों में फेंकने के प्रस्ताव को खारिज किए जाने की संभावना है क्योंकि समिति के अधिकतर सदस्यों ने इसका विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि यह इलाका दशकों से पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील जल पुनर्भरण क्षेत्र बन गया है और विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों तथा तेंदुओं सहित कई जीवों का निवास स्थान है।
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