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नयी दिल्ली, 11 जुलाई (भाषा) दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शुक्रवार को कार्यस्थल संस्कृति में बदलाव का आह्वान किया ताकि कानूनी अनुपालन के लिए केवल निर्धारित मानदंडों को पूरा करने के बजाय सार्थक सुधारों और समावेशी प्रथाओं के माध्यम से महिला कर्मचारियों को सक्रिय रूप से सहयोग प्रदान किया जा सके।
कौशल विकास एवं प्रशिक्षण केंद्र द्वारा आयोजित तीसरे राष्ट्रीय ‘पोश’ सम्मेलन एवं उत्कृष्टता पुरस्कार 2025 में महिला एवं बाल विकास विभाग की सचिव डॉ. रश्मि सिंह ने कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान केवल आंतरिक शिकायत समितियों (आईसीसी) के गठन तक सीमित नहीं होना चाहिए, जैसा कि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत अनिवार्य है।
उन्होंने अधिनियम के तीनों आधारों रोकथाम, निषेध और निवारण को समान गंभीरता से लागू करने की आवश्यकता को रेखांकित किया।
सिंह ने कार्यबल में महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों का उल्लेख किया, विशेष रूप से सक्षम बुनियादी ढांचे की कमी और असुरक्षित वातावरण का भावनात्मक बोझ।
उन्होंने/ कहा, ‘‘महिलाओं की क्षमता का पूरा उपयोग नहीं हो पाता क्योंकि कई कार्यस्थल अनुकूल नहीं हैं। हम हर महिला और लड़की को एक सुरक्षित वातावरण में सम्मानजनक करियर बनाने का अवसर देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’’
डॉ. सिंह ने दिल्ली सरकार द्वारा पोश तंत्र को मजबूत करने के प्रयासों को रेखांकित किया, जिसमें सभी विभागों में आईसीसी (आंतरिक शिकायत समिति) का गठन, अनौपचारिक क्षेत्र के लिए स्थानीय समितियों का नेतृत्व करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट की नियुक्ति, तथा शिकायत निवारण के लिए शिकायत पेटियों जैसे डिजिटल और भौतिक दोनों मंचों की उपलब्धता शामिल है।
उन्होंने कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए क्रेच सुविधाओं, सुरक्षित परिवहन, लचीले कार्य घंटों और अच्छी तरह से सुसज्जित शौचालयों जैसे सहायक उपायों के महत्व को भी रेखांकित किया।
वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत की पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने भी इस कार्यक्रम में अपनी बात रखी और विशाखा फैसले से लेकर वर्तमान पोश अधिनियम तक भारत में कार्यस्थल उत्पीड़न कानूनों के विकास पर विचार व्यक्त किए।
‘पोश’ का तात्पर्य यौन उत्पीड़न निषेध से है। कार्य स्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए उच्चतम न्यायायल के एक फैसले में जो दिशानिर्देश दिए गए थे, उन्हें ‘विशाखा फैसले’ के नाम से जाना जाता है।
भाषा धीरज माधव
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