नई दिल्ली: अयोध्या में पांच एकड़ जमीन पर बनने वाले मस्जिद कॉम्प्लेक्स में मस्जिद, अस्पताल, कम्यूनिटी किचन के साथ ही लाइब्रेरी सेक्शन और म्यूजियम भी तैयार किया जाएगा. म्यूजियम व लाइब्रेरी सेक्शन के सलाहकार के तौर पर उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से स्थापित किए गए ट्रस्ट इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (आईआईसीएफ) ने इतिहासकार और जेएनयू के प्रोफेसर रहे पुष्पेश पंत को नियुक्त किया है.
इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के सचिव और प्रवक्ता अतहर हुसैन ने दिप्रिंट से कहा, ‘ट्रस्ट की तरफ से प्रोफेसर पुष्पेश पंत को सलाहकार नियुक्त किया गया है. पद्मश्री पंत अंतरराष्ट्रीय संबंधों के साथ भारतीय व्यंजन कला के भी जानकार हैं.’
उन्होंने कहा, ‘कॉम्प्लेक्स में एक फूड आर्काइव भी बनाया जाएगा. इसमें खानपान में भारतीय और इस्लामिक संस्कृति का कैसे मिश्रण हुआ है, पंत साहब इसको भी दर्शाएंगे.’
गौरतलब है कि हाल ही में इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन ने कॉम्पलेक्स निर्माण के लिए जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एसएम अख्तर को आर्किटेक्ट नियुक्त किया है.
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इंडो इस्लामिक कल्चर के जानकार हैं पंत
म्यूजियम व लाइब्रेरी सेक्शन के सलाहकार के तौर पर पंत का ही चयन क्यों किया गया इस सवाल पर हुसैन ने कहा, ‘भारत में अगर किसी ने इंडो इस्लामिक कल्चर पर काम किया है तो प्रोफेसर पंत ने किया है.’
हुसैन ने कहा, ‘पंत एक इतिहासकार हैं. इसके अलावा विदेश मामलों के विशेषज्ञ भी हैं.’
प्रोफेसर पुष्पेश पंत ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि वह सुन्नी वक्फ बोर्ड के इस फैसले से खुश हैं कि उन्हें कंसल्टेंट के तौर पर चुना गया. उन्होंने कहा, ‘म्यूजियम व लाइब्रेरी में हर जाति-धर्म के लोग आते हैं लिहाजा यहां सबके लिए कुछ न कुछ होना ही चाहिए.’
प्रोफेसर पंत ने 2-3 युवा साथियों के साथ इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू भी कर दिया है. लगभग 2 साल में यह काम पूरा होने की उम्मीद है.
हुसैन ने कहा कि वर्ष 2011 में प्रकाशित उनकी पुस्तक- ‘इंडिया: दि कुकबुक’ को न्यूयार्क टाइम्स सर्वश्रेष्ठ पुस्तक घोषित कर चुका है.
बता दें कि वर्ष 1947 में जन्मे प्रोफेसर पुष्पेश पंत जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के अंतरराष्ट्रीय संबंध अध्ययन विभाग के प्रोफेसर पद से रिटायर हुए हैं.
अवध कल्चर पर आधारित होगा म्यूजियम और लाइब्रेरी का डिजाइन
प्रोफेसर पंत ने बताया कि अवध कल्चर से उनका पुराना रिश्ता रहा है. उन्होंने कहा कि साल 1933-34 में उनके पिता ने लखनऊ में पढ़ाई की थी. वह बचपन में लखनऊ, बाराबंकी और फैजाबाद आया करते थे.
प्रोफेसर पंत ने कहा, ‘म्यूज़ियम और लाइब्रेरी के डिजाइन की थीम अवध के कल्चर पर बेस्ड होगी. इसमें किताबें, पेंटिंग्स के साथ डिजिटल आर्ट भी दिखेगी.’
उन्होंने कहा, ‘अवध के कल्चर से केवल लखनऊ से मतलब नहीं है. इसमें फैजाबाद का इतिहास भी होगा, बलरामपुर और बाराबंकी के किस्से भी होंगे.’
पंत ने कहा, ‘यहां फैजाबाद के मशहूर ‘मुर्ग शिकस्ता हरिपसंद’ जैसी पुरानी डिश के बारे में बताया जाएगा. जिससे नई पीढ़ी अंजान है. दरअसल ये डिश बेगम अख्तर ने एक बार राजा हरि सिंह के लिए तैयार कराई थी जब वे फैजाबाद आए थे. इसी कारण इस डिश का नाम ‘हरिपसंद’ पड़ा.’
प्रोफेसर पंत के मुताबिक, ‘इस तरह की तमाम डिशेज से जुड़ा इतिहास लाइब्रेरी में पढ़ने को मिलेगा. एक कम्यूनिटी किचन भी वहां खोला जाएगा जिसे कैंटीन के तौर पर भी कहा जा सकता है. यहां पर अवध का असली स्वाद लोगों को चखने को मिलेगा. कबाब, बिरयानी के साथ-साथ वेजिटेरियन फूड भी मेन्यू में रखा जाएगा.’
प्रोफेसर पंत ने आगे कहा, ‘लाइब्रेरी व म्यूजियम के लिए 500 स्काॅयर यार्ड ज़मीन मिलने की उम्मीद है. लाइब्रेरी में उर्दू की किताबों के हिंदी अनुवाद भी रहेंगे. वहीं म्यूजियम में उर्दू जुबान की कैलीग्राफी के उत्कृष्ट नमूने, भारतीय-इस्लामी कल्चर के बेहतरीन निर्माण रूमी दरवाजा, इमामबाड़ा, मकबरे, मंदिर आदि के मॉडल भी देखने को मिलेंगे.’
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सराहनीय कदम। व कफ बोर्ड के पास हजारों एकड ज़मीन,अरबों की संपत्ति है। सबमें अच्छे स्कूल,कॉलेज, university मुस्लिमों के लिए ही खोंले।
एक शानदार पहल, बहुत ही सुंदर और ऎसा काम और भी होना चाहिए. ? ? ???