नयी दिल्ली, दो मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उल्लेख किया कि प्रक्रियागत मुद्दे देश में मध्यस्थता व्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं और केंद्र से मौजूदा कानून में आवश्यक बदलाव करने को कहा।
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि दुर्भाग्य से मध्यस्थता और सुलह विधेयक 2024 ने मध्यस्थ न्यायाधिकरण को पक्षकार बनाने को लेकर कानून की स्थिति को बेहतर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
पीठ ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 में पिछले कुछ वर्षों में किये गए विभिन्न संशोधनों को रेखांकित किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मध्यस्थता की कार्यवाही शीघ्रता से की जाए और उसमें निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके।
पीठ ने 191 पृष्ठों के फैसले में कहा, ‘‘यह देखना वास्तव में बहुत दुखद है कि इतने वर्षों के बाद भी, इस मामले में शामिल प्रक्रियागत मुद्दे भारत की मध्यस्थता व्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं।’’
पीठ ने बताया कि विधिक मामलों के विभाग ने अब एक बार फिर मध्यस्थता पर मौजूदा कानून को मध्यस्थता और सुलह विधेयक, 2024 से बदलने का प्रस्ताव दिया है।
शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा हाल ही में दिये गए फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि मध्यस्थता के कानून में कोई भी अनिश्चितता व्यापार और वाणिज्य के लिए अभिशाप होगी।
पीठ ने कहा, ‘‘हम विधि और न्याय मंत्रालय के कानूनी मामलों के विभाग से आग्रह करते हैं कि वह भारत में प्रचलित मध्यस्थता व्यवस्था पर गंभीरता से विचार करे और जरूरी बदलाव लाए जबकि मध्यस्थता और सुलह विधेयक, 2024 पर अभी भी विचार किया जा रहा है।’’
उच्च न्यायालय के फैसले पर विचार करते हुए पीठ ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि आदेश पारित करते समय उच्च न्यायालय द्वारा कोई त्रुटि की गई है।
उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली अपील को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को उच्चतम न्यायालय के फैसले की एक प्रति सभी उच्च न्यायालयों और विधि एवं न्याय मंत्रालय के प्रधान सचिव को भेजनी चाहिए।
भाषा सुभाष माधव
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